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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
आवश्यकता और इच्छा का द्धन्द्ध जीवन में बना रहता है। हमारी आवश्यकता पूर्ण होते ही इच्छा के प्रभाव में नई आवश्यकता जन्म ले लेती है। इच्छा ही आवश्यकता की जननी है। इच्छा पर नियंत्र
आवश्यकता और इच्छा का द्धन्द्ध जीवन में बना रहता है। हमारी आवश्यकता पूर्ण होते ही इच्छा के प्रभाव में नई आवश्यकता जन्म ले लेती है। इच्छा ही आवश्यकता की जननी है। इच्छा पर नियंत्रण के लिए मेडिटेशन का अभ्यास, अच्छी संगत और शुद्ध खान पान जरूरी है। अशुद्ध धन से अशुद्ध अन्न, अशुद्ध मन और अशुद्ध तन का जन्म होता है।
इच्छा पर नियंत्रण के लिए अनुशासन जरूरी है। अनुशासन के लिए प्रेरणा का होना जरूरी है जो हमारे भीतर से आता है और इसके लिए मोटिवेशन का होना भी जरूरी होता है जो बाहर से आता है। जब बाह्य तत्व अथवा आधार कमजोर पड़ जाते हैं तब हमारा मोटिवेशन भी ढीला पड़ जाता है। जैसे जब पानी को गर्म करने के लिए गैस के चूल्हे पर रखते हैं तब वह गर्म होने लगता है लेकिन गैस बंद करते ही पुनः ठंडा होने लगता है। ऐसे ही हमारे जीवन में भी होता है।
जब हम अच्छी संगत में रहते हैं अथवा अच्छे वातावरण में रहते हैं तब अच्छा फील करते हैं और मोटीवेट होते हैं। लेकिन, इसके खत्म होते ही हमारा मोटिवेशन का स्तर नीचे आने लगता है। इसलिए हमारे अंदर की आने की प्रेरणा का होना जरूरी है। जब अंदर से प्रेरणा आती है तब बाहर से किसी मोटिवेशन की जरूरत नही पड़ती है। इसलिए हमें सेल्फ हीलिंग के लिए प्रेरणा को विकसित करना होगा। यदि स्वउन्नति को जीवन की प्राथमिकता में लाएंगे और अनुशासन में रहकर प्रैक्टिस करेंगे इसके बाद इससे धीरे-धीरे मिलने वाले पॉजिटिव रिजल्ट से स्वयं प्रेरित होते रहेंगे। स्व उन्नति के लिए अटेंशन, सजगता अथवा दृढ़संकल्प का होना जरूरी है।
आज का युवा वर्ग में ड्रग एडिक्शन की समस्या बढ़ती जा रही है। जीवन की रफ्तार में पीछे रहने का डर और असुरक्षा एडिक्शन का कारण बनता है। नशे की लत हमें न केवल अपने आप से दूर करती है, बल्कि
आज का युवा वर्ग में ड्रग एडिक्शन की समस्या बढ़ती जा रही है। जीवन की रफ्तार में पीछे रहने का डर और असुरक्षा एडिक्शन का कारण बनता है। नशे की लत हमें न केवल अपने आप से दूर करती है, बल्कि समाज और विश्व से कट आॅफ कर देती है। नशे का प्रभाव हमारे अंदर हीन भावना देता है। इसीलिए नशे से पीड़ित व्यक्त प्रायः डिप्रेशन का भी शिकार होता है। इस समस्या का समाधान राजयोग मेडिटेशन के माध्यम से देने का प्रयास किया गया है।
बीच-बीच में मूड आॅफ होने वाली समस्या की शिकायत आम होती जा रही है। इस सम्बन्ध में ड्रग के कनेक्शन को सामने लाया गया है। योग-मेडिटेशन के समाधान द्वारा हम अपने रहन सहन, योग और खानपान में सुधार कर सकते है। हमारी दिनचर्या ठीक हो जाने पर हम स्वतः ही नशे से दूर रह सकते है।
आज का युवा वर्ग में ड्रग एडिक्शन की समस्या बढ़ती जा रही है। जीवन की रफ्तार में पीछे रहने का डर और असुरक्षा एडिक्शन का कारण बनता है। नशे की लत हमें न केवल अपने आप से दूर करती है, बल्कि
आज का युवा वर्ग में ड्रग एडिक्शन की समस्या बढ़ती जा रही है। जीवन की रफ्तार में पीछे रहने का डर और असुरक्षा एडिक्शन का कारण बनता है। नशे की लत हमें न केवल अपने आप से दूर करती है, बल्कि समाज और विश्व से कट आॅफ कर देती है। नशे का प्रभाव हमारे अंदर हीन भावना देता है। इसीलिए नशे से पीड़ित व्यक्त प्रायः डिप्रेशन का भी शिकार होता है। इस समस्या का समाधान राजयोग मेडिटेशन के माध्यम से देने का प्रयास किया गया है।
बीच-बीच में मूड आॅफ होने वाली समस्या की शिकायत आम होती जा रही है। इस सम्बन्ध में ड्रग के कनेक्शन को सामने लाया गया है। योग-मेडिटेशन के समाधान द्वारा हम अपने रहन सहन, योग और खानपान में सुधार कर सकते है। हमारी दिनचर्या ठीक हो जाने पर हम स्वतः ही नशे से दूर रह सकते है।
जीवन की रफ्तार की गति बहुत तेज है किन्तु हमारी स्थिति कमजोर है। भाग दौड के जिन्दगी के बीच आराम और अच्छी गुणवत्ता की नींद ले पाना हमारे लिए चुनौती बना हुआ है। इस कारण अनिद्रा की सम
जीवन की रफ्तार की गति बहुत तेज है किन्तु हमारी स्थिति कमजोर है। भाग दौड के जिन्दगी के बीच आराम और अच्छी गुणवत्ता की नींद ले पाना हमारे लिए चुनौती बना हुआ है। इस कारण अनिद्रा की समस्या के कारण नींद का चक्र अव्यवस्थित है। इस समस्या का समाधान राजयोग के माध्यम से देने का प्रयास किया गया है।
इस सम्बन्ध में फूड का मूड के कनेक्शन को भी सामने लाया गया है। अनिद्रा का समाधान रहन सहन, योग और खानपान में सुधार से किया जा सकता है। फूड के मूड का कनेक्शन लाकर हैप्पीनेस इंडेक्स को बढाया जा सकता है।
साइंस की पॉवर से साइलेन्स की पॉवर अधिक होती है। साइंस की पॉवर का प्रयोग के अंतर्गत कारण से होकर फिर समाधान पर फोकस किया जाता है जबकि साइलेन्स की पॉवर के अंतर्गत बिना कारण जाने सी
साइंस की पॉवर से साइलेन्स की पॉवर अधिक होती है। साइंस की पॉवर का प्रयोग के अंतर्गत कारण से होकर फिर समाधान पर फोकस किया जाता है जबकि साइलेन्स की पॉवर के अंतर्गत बिना कारण जाने सीधे समाधान पर फोकस कर के समाधान प्राप्त कर लेते है।
वास्तव में जीवन मे अनेक समस्या है जिसका कोई कारण ही नही पता चल पाता है इसके कारण विज्ञान इन समस्याओं का समाधान नही कर पाता है। जबकि साइलेन्स की पॉवर अपनी इंटयूटिव पॉवर अंतर्ज्ञान से सीधे समाधान दे देता है।
साइंस की पॉवर सभी समस्याओं का समाधान नही दे सकता है क्योकि आधुनिक काल की अधिकांश समस्याएं मानसिक है। कहा जाता है कि अस्सी प्रतिशत रोग भी साइकोसोमेटिक ,मानसिक है।
इसलिये इन समस्याओं का समाधान साइंस की आधार भूमि भौतिक स्तर पर नही मिल सकता है। यह समाधान केवल और केवल साइलेन्स की पॉवर दे सकता है। साइलेन्स की पॉवर मनसिक स्तर के साथ भौतिक स्तर का भी समाधान दे देता है।
चालीस वर्ष पूर्व तक समाज में डिप्रेशन शब्द अप्रचलित था किन्तु आज एक बच्चा भी कहने लगा है मुझे डिप्रेशन फील हो रहा है। कोरोना काल में मानसिक समस्या विशेष रूप से सामने आ रही है। जब
चालीस वर्ष पूर्व तक समाज में डिप्रेशन शब्द अप्रचलित था किन्तु आज एक बच्चा भी कहने लगा है मुझे डिप्रेशन फील हो रहा है। कोरोना काल में मानसिक समस्या विशेष रूप से सामने आ रही है। जब साइंस की शक्ति कोरोना के समाधान का समाधान करने में अपने हाथ खड़े कर दिए तब साइलेन्स की शक्ति के रूप में इस पुस्तक ने अपना एक व्यवहारिक समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया।
हमने कभी भी रुककर अपने मन या आत्मा में झांकने का प्रयास नही किया है। मन या आत्मा पर ध्यान न देने के कारण हम अंदर से खालीपन अकेलापन का शिकार हो गये है। इससे हम भय चिंता निराशा और हताशा का जीवन जी रहें है।
आज हमारे बुद्धि ने प्रकृति के प्रकोप कोरोना, कोविड के सामने सम्पर्ण कर दिया है। क्योंकि हमने अपने भावनात्मक बुद्धि और आध्यत्मिक बुद्धि के विकास पर ध्यान नही दिया है। इसलिये हम मानसिक रूप से बाह्य परिस्थितियों से लड़ने में अपने को कमजोर महसूस कर रहे है।
अतः हमें भावनात्क बुद्धि और आध्यत्मिक बुद्धि के विकास पर बल देना होगा तभी हमारे मानसिक शक्ति में वृद्धि होगी। यह अच्छा अवसर है जब हमारे पास पर्याप्त समय भी है ,हमे अपने भीतर झांकने का समय मिला है। क्योंकि अभी तक हमें इसी बात की शिकायत रहती थी कि हमे तो अपने लिये समय ही नही मिलता है। वास्तव में हम,वर्तमान स्वयं पर ध्यान फोकस करके अपना मानसिक बल मजबूत कर सकते है।
इसके लिये मानसिक बल के आध्यात्मिक चिंतन, योग प्राणायाम की दिनचर्या अपनाना जरूरी है। प्रश्न है कि हम क्यो नकारात्मक चिंतन में आ जाते है। हमारी अवस्था ,ऊपर -नीचे होने का प्रमुख कारण है - व्यर्थ संकल्प। व्यर्थ संकल्प भी इसलिये है ,क्योकि हमारा मन खाली है ।
कोरोना का सबसे बुरा प्रभाव बढ़ती आत्म हत्या की प्रवृत्ति के रूप में देखा जा रहा है। फिल्म एक्टर सुशान्त सिंह द्वारा किया सुसाइड इस मुद्दे को बड़ी गम्भीरता के साथ लोग के सामने रखा ह
कोरोना का सबसे बुरा प्रभाव बढ़ती आत्म हत्या की प्रवृत्ति के रूप में देखा जा रहा है। फिल्म एक्टर सुशान्त सिंह द्वारा किया सुसाइड इस मुद्दे को बड़ी गम्भीरता के साथ लोग के सामने रखा है। फिल्म एक्टर सुशान्त सिंह तो एक प्रतीक हैं, जिसके पीछे कोरोना के कारण आर्थिक मंदी कार्य कर रही थी। लेकिन केवल आर्थिक मंदी ही बढ़ती सुसाइड की प्रवृत्ति का कारण नहीं है। क्योंिक यदि ऐसा होता तब भारतीय राजस्व सेवा के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा सुसाइड नहीं किया गया होता।
वास्तव में सुसाइड करनी की प्रवृत्ति अचानक नही आती है बल्कि इसके पीछे हमारे विश्वास, हमारी मान्यता और हमारी सोच बहुत हद तक कारक होती हैं। सुसाइड के पूर्व हम तनाव भरा जीवन जीते हैं। परिस्थितियों के सामने समर्पण करने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। क्योकि किसी भी चीज को देखने का दृष्टिकोण वह नहीं होता है, जो होना चाहिए।
कोविड समस्या नही बल्कि अवसर है। हमें अब कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा अपने जीवन की दैनिक दिनचर्या मे बदलाव करना होगा। कोरोना की वैश्विक महामारी आने के बाद लोगों में एक प्र
कोविड समस्या नही बल्कि अवसर है। हमें अब कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा अपने जीवन की दैनिक दिनचर्या मे बदलाव करना होगा। कोरोना की वैश्विक महामारी आने के बाद लोगों में एक प्रकार से जीवन के प्रति भय और नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा हुआ है। जिसके चलते लोग मानसिक तौर पर परेशान हैं और नींद एवं तनाव जैसी स्थिति का सामना कर रहे है। जिसके कारण लोगों की जीवन शैली पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
मौजूदा परिस्थिति में लोगों का जीवन ऐसे प्रभावित हुआ है कि लोग जल्द ही अपना आपा खो देते हैं। लेकिन हमें इस सच्चाई को भी स्वीकार करना होेगा कि अब हमें कोरोना के साथ ही जीना है।
अतः अब हमें कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा। लोगों को अपनी जिंदगी बचाने के लिए अपनी जीवनशैली को बदलना ही होगा। इसके साथ ही अपने भविष्य की चुनौतियों से लड़ने के लिए सभी को तैयार रहना होगा।
हमें करोनो वाइरस को समस्या के रूप में न देखकर एक अवसर के रूप में देखना होगा। करोनो वाइरस ने मानवीय सभ्यता को यह संदेश दिया है कि व न तो प्रकृति से खिलवाड़ करे और ने ही अपने शरीर से खिलवाड़ करें। इस रूप में हमें अपने सम्पूर्ण लाइफ स्टाइल को बदलना होगा। प्रकृति के संरक्षण पर विशेष ध्यान देते हुए शारीरिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि के उपायों पर ध्यान देना होगा। सोशल डिस्टेंसिग, सार्वजनिक स्थलों पर मास्क का प्रयोग हमारी जीवन शैली में आ चुका है।
कोविड समस्या नही बल्कि अवसर है। हमें अब कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा अपने जीवन की दैनिक दिनचर्या मे बदलाव करना होगा। कोरोना की वैश्विक महामारी आने के बाद लोगों में एक प्र
कोविड समस्या नही बल्कि अवसर है। हमें अब कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा अपने जीवन की दैनिक दिनचर्या मे बदलाव करना होगा। कोरोना की वैश्विक महामारी आने के बाद लोगों में एक प्रकार से जीवन के प्रति भय और नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा हुआ है। जिसके चलते लोग मानसिक तौर पर परेशान हैं और नींद एवं तनाव जैसी स्थिति का सामना कर रहे है। जिसके कारण लोगों की जीवन शैली पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
मौजूदा परिस्थिति में लोगों का जीवन ऐसे प्रभावित हुआ है कि लोग जल्द ही अपना आपा खो देते हैं। लेकिन हमें इस सच्चाई को भी स्वीकार करना होेगा कि अब हमें कोरोना के साथ ही जीना है।
अतः अब हमें कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा। लोगों को अपनी जिंदगी बचाने के लिए अपनी जीवनशैली को बदलना ही होगा। इसके साथ ही अपने भविष्य की चुनौतियों से लड़ने के लिए सभी को तैयार रहना होगा।
स्त्री सशक्तिकरण के लिए निर्णय लेने की शक्ति का अत्यधिक महत्व है। निर्णय लेने की शक्ति विकसित होने से किसी व्यक्ति का भय समाप्त होता है तथा व्यक्ति की निडरता निर्णय लेने की शक्
स्त्री सशक्तिकरण के लिए निर्णय लेने की शक्ति का अत्यधिक महत्व है। निर्णय लेने की शक्ति विकसित होने से किसी व्यक्ति का भय समाप्त होता है तथा व्यक्ति की निडरता निर्णय लेने की शक्ति को विकसित करता है। कहा जाता है कि जब तक आप डरते रहेंगे, आप के जीवन से संबंधित फैसले दूसरे लोग लेते रहेंगे।
यदि कोई स्त्री अपने निर्णय की जिम्मेदारी लेने से बचती है तब वह स्त्री अपने आप स्वयं से झूठ बोलकर अपना आत्मबल कमजोर कर लेती है। यदि कोई स्त्री अपने निर्णय के लिए आगे बढ़ कर जिम्मेदारी लेेती है तब वह अपने आत्मबल को मजबूत करती है।
स्त्री सशक्तिकरण के लिए निर्णय लेने की शक्ति का अत्यधिक महत्व है। निर्णय लेने की शक्ति विकसित होने से किसी व्यक्ति का भय समाप्त होता है तथा व्यक्ति की निडरता निर्णय लेने की शक्
स्त्री सशक्तिकरण के लिए निर्णय लेने की शक्ति का अत्यधिक महत्व है। निर्णय लेने की शक्ति विकसित होने से किसी व्यक्ति का भय समाप्त होता है तथा व्यक्ति की निडरता निर्णय लेने की शक्ति को विकसित करता है। कहा जाता है कि जब तक आप डरते रहेंगे, आप के जीवन से संबंधित फैसले दूसरे लोग लेते रहेंगे। यदि कोई स्त्री अपने निर्णय की जिम्मेदारी लेने से बचती है तब वह स्त्री अपने आप स्वयं से झूठ बोलकर अपना आत्मबल कमजोर कर लेती है। यदि कोई स्त्री अपने निर्णय के लिए आगे बढ़ कर जिम्मेदारी लेेती है तब वह अपने आत्मबल को मजबूत करती है। महिला सशक्तिकरण एक मूल्यात्मक अवधारण है। आत्म विश्वास, स्वमान, इच्छाशक्ति, समर्थ संकल्प इत्यादि नारी सशक्तीकरण के लिए महत्वपूर्ण मूल्य हैं। महिलाओं को अपने सशक्तिकरण के लिए अपने जीवन में जीवन मूल्य को स्थापित करना होगा तभी महिलाऐं आन्तरिक रूप से शक्तिशाली होती हैं। नारी को समझना होगा कि बदलाव के सम्बन्ध में निर्णय उनका एकदम साफ और स्पष्ट होना चाहिए, किसी के कहने-सुनने का प्रभाव हमारे निर्णय पर नहीं होना चाहिए, लेकिन हमें अपने निर्णय को लेकर संदेह होता है कि यदि हमारा निर्णय गलत होगा तब क्या होगा? आत्म विश्वास के आधार पर पुरूष भी नारी पर विश्वास करेगा।
जितना अधिक हम अपने बच्चे को सुविधा की चीजें देंगे, उतना ही अधिक हमारे बच्चे कमजोर होंगे। क्योकि इससे किसी चीज पर बच्चे की निर्भरता बढेगी और इस चीज का एडिक्शन बढ़ेगा। हम कहते है मे
जितना अधिक हम अपने बच्चे को सुविधा की चीजें देंगे, उतना ही अधिक हमारे बच्चे कमजोर होंगे। क्योकि इससे किसी चीज पर बच्चे की निर्भरता बढेगी और इस चीज का एडिक्शन बढ़ेगा। हम कहते है मेरे बच्चे एसी के बिना नही रहे सकते है। बच्चो को कम्फर्ट देना चाहिए, यह जरूरी भी है। लेकिन सभी सुविधा संतुलित रूप में ही देनी चाहिये। यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे द्वारा दी गई सुविधा, एडिक्शन में नही बदलने पाए। मैं अपने बेटे को राजा की तरह पालूंगा। लेकिन राजा की तरह पालने का यह अर्थ नही है कि हम अपने बच्चे को आराम, कम्फर्ट देकर बच्चे को कमजोर बनाना है। अपने बेटे को राजा की तरह पालने का अर्थ है कि अपने बेटे को राज्य करना बताना है। अपने बेटे को राजा बनाये। लेकिन राजा वह है, जो अपने मन पर राज्य करता है। अनुशासन के बिना शासन सम्भव नही है। जिसका अपने ऊपर अनुशासन है, वही राजा विषम परिस्थितियों को संभाल सकता है। राजा बनने के लिये अलग-अलग वातावरण में रहने की, क्षमता का होना जरूरी है। जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना करने की ताकत रखने वाला ही व्यक्ति ही राजा बन सकता है। पहले राज्य घराने के बच्चे एसी कमरे में नही पढ़ते थे। इसकी जगह राजकुमार जंगल मे, गुरुकुल में जाकर पढ़ते थे। राजा का बच्चा राज्य घरानों के भाग्य को छोड़ कर जंगलों और आश्रमो में रहकर पढ़ते थे। राजकुमार जिनके आस-पास, दास-दसिया रहती थी, इनको पानी का एक गिलास भी उठा कर नही पीना पड़ता था, ऐसे राजकुमार को सभी सुविधा से दूर रखकर जंगल मे पढ़ने भेजा जाता था।
Authority is not anger. We have to play our role responsibility but without getting disturbed. Use your authority but do not get angry. In anger, we internally get disturb and lose control on ourselves. We totally get unstable. But if we properly use our authority, we remain calm and stable. While using authority, we think and speak. We remain positive. In normal life, maybe there is a person who do not gets angry. But after a limit, anger starts to disturb us.
Authority is not anger. We have to play our role responsibility but without getting disturbed. Use your authority but do not get angry. In anger, we internally get disturb and lose control on ourselves. We totally get unstable. But if we properly use our authority, we remain calm and stable. While using authority, we think and speak. We remain positive. In normal life, maybe there is a person who do not gets angry. But after a limit, anger starts to disturb us. It is necessary for us to identify the limit. By saying natural, we cannot justify our anger. We will have to take the responsibility of not getting angry. We get strong by taking a responsibility and weak by giving excuses. If we take the responsibility of not getting angry, then definitely we will get the way to get rid of anger. If the remedies given in book, followed for 21 to 45 days, then controlling anger will become easy. Do not accept or reject anything without experience. Try it yourself. If we follow the solutions given in book, then 100% we will get rid of anger. if we follow even some of these remedies then our anger will go down to the lowest level. Social issues are expressed in this book. Motivational thoughts are reflected in this book.
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