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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palअपनी मां डा. सुमन लता की अनेक वर्षों की रुचि को अब एक पुस्तक के रुप में प्रकाशित होते देख मुझे अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। मां ने अपने तीन बहुत छोटे छोटे बच्चों ममता, गगन और मलिका के साथ घर के दायित्व को प्रेमपूर्वक निभाते Read More...
अपनी मां डा. सुमन लता की अनेक वर्षों की रुचि को अब एक पुस्तक के रुप में प्रकाशित होते देख मुझे अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। मां ने अपने तीन बहुत छोटे छोटे बच्चों ममता, गगन और मलिका के साथ घर के दायित्व को प्रेमपूर्वक निभाते हुए एम ए, एम फिल और पी.एच.डी. की शिक्षा ‘म्यूजिक एवं डासं डिपार्टमेंट’ कुरुक्षेत्र से प्राप्त की और साथ ही ‘यूनिवर्सिटी कालेज’ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया। यह मां की अपूर्व जीवन शक्ति और उनकी जीवन शैली का द्योतक है। उस समय के परिवेश की नीरसता और सुख दुख के उपजे अनुभव ही कलात्मक शब्दों में ढल कर काव्य गीत ग़ज़ल के माध्यम से अभिव्यक्त होते हैं जो मां के जीवन के निखरे बिखरे मूर्त और अमूर्त रुप को परिभाषित करते हैं।
संगीत में मेरी मां की रुचि सदा से ही रही है। इसीलिए उनकी रचनाओं में शब्दों के माध्यम से कहीं कहीं नाद सौन्दर्य और संगीत सौन्दर्य की सहज अभिव्यक्ति होती है जो स्वाभाविक रुप से उनके ह्रदय की आधार भूमि से जन्मी है और सरल बन कर उनकी आस्था के नए-नए स्वर स्वरुप को जन्म दे कर लयात्मक शैली में कम से कम शब्दों में कविता की गहराई के रहस्य को विस्तारपूर्वक समझाती है। लयात्मक होने के कारण इन्हें कहीं भी गुनगुनाया जा सकता है। अन्ततः ये कहूंगी कि मनोभावों का सुखद संचार ही उनके काव्य की आत्मा है।
डा. ममता खोसला
Achievements
“गीत विन्यास” मेरे मूर्त अमूर्त भावों का आकाश है जो हर पल रंग बदलता है। इन बेज़ुबान भावों की अलग अलग कहानी है। इस बदलते हुए रंग में मेरा अस्तित्व आकार ग्रहण कर के पंख फैलाता है और
“गीत विन्यास” मेरे मूर्त अमूर्त भावों का आकाश है जो हर पल रंग बदलता है। इन बेज़ुबान भावों की अलग अलग कहानी है। इस बदलते हुए रंग में मेरा अस्तित्व आकार ग्रहण कर के पंख फैलाता है और मैं भावों के आकाश के विस्तार को छन्दों में समेट कर अपनी पहचान के गीत बुनती हूं। अतएव ‘गीतविन्यास’ गीतों का वह वन्दनवार है जिस में शब्दों में पिरोए गए भावों को कितनी कितनी शक्लों में चित्रित किया है और वह शब्दों में भी दिखते हैं। शब्दों से ही भावों की देह जागती है। जीवन के हर क्षण को बीन बटोर कर सृजन के कतरों में बिखेर देना ही मेरी कविताओं का लक्ष्य है। शोर के इस संसार में भावों की मौन भाषा है। अत: ये कविताएं मुझ में रमी हुई मेरी खामोशी को रचने बुनने की परिभाषा हैं। मैं को स्वयं में खोजती हुई सन्नाटे में छन्द बुनती हूं, चेतना में वेदना की खरोंचे रचती हूं, प्रेम रस में तरती हूं, प्रकृति के मध्य रमती हुई हरियाली पंछी नदिया पहाड़ सन्नाटा चुनती हूं। आकाश के चांद सितारे सूरज का घेराव फैलाव तनाव का पूरा नक्शा उकेरती हूं। भक्ति की आस से जुड़ती हूं श्रद्धा आस्था से झुकती हूं। शब्दों का सन्तुलन साध कर सुख दुख के छन्द लय में गतिवान कर सूनेपन और नीरवता में अपने रंग बिखेरती हूं। यह मेरा आत्मिक वक्तव्य हैं जो शब्दों को उन की सही जगह पर बसाते हैं जिससे शब्दों को भी अपनापन मिलता है। शब्दों की नियति भी यही है कि वह अपनी सही पहचान बना कर सही स्थान पर सही पते पर पहुंचें। सच कहूं तो इन कविताओं में मेरा अपना मिज़ाज ही बोलता है जो शब्दों के बहुल बिम्ब संसार कविता में ढल कर मेरी संवेदना का विषय बन गया है।
डॉ. सुमन लता वोहरा विरमानी
‘सुमनमाला’ मेरी ज़िन्दगी की वास्तविकता से उभरे गीतों का गुलज़ार है, जिसकी परछाई मेरे गीतों में विद्यमान है। मैंने ज़िन्दगी के फूल शूल, धूप धूल, नमीं उष्मा को जो महसूस किया उन एहस
‘सुमनमाला’ मेरी ज़िन्दगी की वास्तविकता से उभरे गीतों का गुलज़ार है, जिसकी परछाई मेरे गीतों में विद्यमान है। मैंने ज़िन्दगी के फूल शूल, धूप धूल, नमीं उष्मा को जो महसूस किया उन एहसासों को तराश कर उसमें शब्द लय का सन्तुलन कर उसे मुकम्मल रुप देना ही मेरा उद्देश्य रहा। अपनी ज़िन्दगी के उन जीवन्त पलों को भाषा तथा शिल्प सौन्दर्य से सन्तुलित करने का यह मेरा मौलिक प्रयास है। अत: ‘सुमनमाला’ का गुलज़ार गीत बोल लय को स्वाभाविक शब्दों के माध्यम से व्यक्त अनुभवों की सत्यता को उजागर करता है जिस में अनुभूति की तन्मयता में ध्वनि गूंजने लगती है, सुर छेड़ती हुई कुछ ग़ज़लें, कुछ गीत, कुछ किस्से जिन में अक्षर अक्षर गाने लगते हैं, जिससे काव्य में नाद सौन्दर्य और गेयात्मकता आ गई है। इसलिए काव्य के सौन्दर्य को सुसज्जित करने हेतु मैंने अक्षरों को शब्दों में पिरो कर ‘सुमनमाला’ के गुलज़ार को महकाने का प्रयास किया है, जिस का अधिकाधिक विषय है - प्रेम शान्तिः स्थिरता! भावात्मक आत्मिक और मानसिक सौन्दर्य के स्वस्थ चित्रण में मेरी रुचि है। इसलिए कोमलता, गम्भीरता, मार्मिकता और एकरसता भी काव्य की आत्मा से निरन्तर प्रवाहित हो रही है। भाषा में शब्द, छन्द, लय का सरल एवं मधुर प्रवाह है। गीतों में गेयता का गुण भी विद्यमान है जो मेरे कोमल हृदय की अनुभूति की निधि बन कर मेरे वजूद का हिस्सा बन गई है।
डा. सुमन लता वोहरा विरमानी
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