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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalAchievements
मेरे द्वारा लिखित इस पुस्तक में मुख्य केन्द्र सामान्य स्तर के विद्यार्थियों को रखा गया है जो कि स्वयंपाठी के रूप में भी आसानी से इस विषय की व्यापक एवं गहन समझ को विकसित कर सकते
मेरे द्वारा लिखित इस पुस्तक में मुख्य केन्द्र सामान्य स्तर के विद्यार्थियों को रखा गया है जो कि स्वयंपाठी के रूप में भी आसानी से इस विषय की व्यापक एवं गहन समझ को विकसित कर सकते है। पुस्तक की भाषा शैली को बहुत ही सरल और सुबोध स्वरूप दिया गया है। हिन्दी माध्यम में इस तरह की पुस्तके उपलब्ध नहीं है और जो उपलब्ध है उन्हें समसामयिक राजनीतिक बदलावों के अनुरूप संशोधित और अद्यतन नहीं किया गया है। इसी के साथ राजनीति विज्ञान के उपागमों, सिद्धांतों एवं अवधारणाओं के सन्दर्भ मे सामान्य लेखकों, शोधार्थियों और पाठकों के बीच विद्यमान भ्रान्तियों को प्रामाणिक पुस्तकों और विश्वसनीय तथ्यों का सहारा लेकर दूर करने का सार्थक प्रयास किया गया है। पुस्तक में विषय वस्तु को न तो जटिल स्वरूप दिया गया हैं और न ही निरर्थक विस्तार दिया गया हैं। यह पुस्तक विशेष रूप से भारतीय विश्वविद्यालयों में एम. ए. और बी. ए. ऑनर्स के विद्यार्थियों के लिए तथा प्रतियोगी परीक्षाओं विशेषतः नेट, जे. आर. एफ., सेट, सहायक आचार्य, विद्यालय प्राध्यापक इत्यादि की तैयारी करने वाले प्रतिभागियों के लिए बहुत उपयोगी व सार्थक सिद्ध होगी। इसी के साथ यह पुस्तक राजस्थान प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को भी शामिल करती है। पुस्तक सुधार हेतु पाठकों के सुझाव सदैव सादर आमंत्रित है।
यह पुस्तक राजस्थान लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहद उपयोगी है। इस पुस्तक के अध्ययन के माध्यम से बिना कोचिंग किए भी प्रतियोगी भारत एवं राजस्थान की
यह पुस्तक राजस्थान लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहद उपयोगी है। इस पुस्तक के अध्ययन के माध्यम से बिना कोचिंग किए भी प्रतियोगी भारत एवं राजस्थान की राजनीतिक प्रणाली की अवधारणाओ को आसानी से समझ सकता है। यह पुस्तक विशेष रूप से द्वितीय श्रेणी शिक्षक प्रतियोगी परीक्षा के पहले पेपर के नवीनतम पाठयक्रम के अनुसार लिखी गयी है।
मेरे द्वारा लिखी गई इस पुस्तक में मुख्य केंद्र सामान्य स्तर के छात्रों के लिए रखा गया है जो एक स्व-विद्वान के रूप में विषय की व्यापक और गहरी समझ को आसानी से विकसित कर सकते हैं। पुस
मेरे द्वारा लिखी गई इस पुस्तक में मुख्य केंद्र सामान्य स्तर के छात्रों के लिए रखा गया है जो एक स्व-विद्वान के रूप में विषय की व्यापक और गहरी समझ को आसानी से विकसित कर सकते हैं। पुस्तक की भाषा शैली को बहुत ही सरल और बोधगम्य रूप दिया गया है। ऐसी पुस्तकें हिंदी माध्यम में उपलब्ध नहीं हैं और जो उपलब्ध हैं उन्हें समकालीन परिवर्तनों के अनुसार संशोधित और अद्यतन नहीं किया गया है। इसके साथ ही लोक प्रशासन के दृष्टिकोणों, अवधारणाओं और कार्यप्रणाली के संदर्भ में प्रामाणिक पुस्तकों और विश्वसनीय तथ्यों का सहारा लेकर सामान्य लेखकों, शोधकर्ताओं और पाठकों के बीच गलत धारणाओं को दूर करने के सार्थक प्रयास किए गए हैं। यह पुस्तक इस संदर्भ में पूर्व की अन्य रचनाओं से भी भिन्न है कि इसके अंतर्गत विषयवस्तु को न तो जटिल रूप दिया गया है और न ही अर्थहीन विवरण दिया गया है। यह पुस्तक विशेष रूप से भारतीय विश्वविद्यालयों में एमए को दी जाती है। और बी। ए। ऑनर्स छात्रों और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विशेष रूप से नेट, जे.जे. लोक सेवा आयोग की तैयारी करने वाले प्रतिभागियों के लिए बहुत उपयोगी और सार्थक होगी। इसी के साथ यह पुस्तक राजस्थान राज्य के लगभग सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को भी समाहित करती है।
भारत में संवैधानिक विकास की यात्रा के बारे विवेचन करने वाली मेरी इस रचना के अन्तर्गत ब्रिटिश इस्ट इण्डिया कम्पनी के एक व्यापारिक संस्थान से लेकर भारत में राजनीतिक सता के स्वरू
भारत में संवैधानिक विकास की यात्रा के बारे विवेचन करने वाली मेरी इस रचना के अन्तर्गत ब्रिटिश इस्ट इण्डिया कम्पनी के एक व्यापारिक संस्थान से लेकर भारत में राजनीतिक सता के स्वरूप को प्राप्त करने की कहानी को प्रामाणिक पुस्तकों की सहायता से सरल व सुबोध स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक वर्तमान स्वतंत्र भारत के संविधान में रूचि रखने वाले विद्यार्थियों को ऐतिहासिक स्वरूप में और उसके वर्तमान संविधान पर प्रभाव की स्पष्ट व्याख्या करती है। ब्रिटिश भारत की संवैधानिक संरचनाओं को विभिन्न तालिकाओं की सहायता से समझाया गया है। यह पुस्तक निस्सन्देह विविध प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले प्रतिभागियों के लिए भारतीय संविधान के इतिहास से सम्बन्धित भाग के लिए सफलता प्राप्त करने में मील का पत्थर साबित होगी। इसी के साथ यह रचना भारतीय विश्वविद्यालयों एवं अन्य महाविद्यालयों में इतिहास एवं राजनीति विज्ञान अनुशासन का अध्ययन करने वाले हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।
यह पुस्तक तुलनात्मक राजनीति के सिद्धांतो के संदर्भ में लिखी गयी है। इस पुस्तक के अंतर्गत तुलनात्मक राजनीति के विविध प्रतिमानो को बहुत ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यथा
यह पुस्तक तुलनात्मक राजनीति के सिद्धांतो के संदर्भ में लिखी गयी है। इस पुस्तक के अंतर्गत तुलनात्मक राजनीति के विविध प्रतिमानो को बहुत ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यथास्थान तालिकाओं और रेखाचित्रों का सहारा लिया गया है। पुस्तक की भाषा शैली आसान एवं बोधगम्य है।
यह पुस्तक लोक प्रशासन के पाठकों के लिए एक सारगर्भित रचना है। इस पुस्तक के अंतर्गत लोक प्रशासन के जटिल सिद्धांतो को बहुत ही सरल स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। हिंदी माध्यम के छ
यह पुस्तक लोक प्रशासन के पाठकों के लिए एक सारगर्भित रचना है। इस पुस्तक के अंतर्गत लोक प्रशासन के जटिल सिद्धांतो को बहुत ही सरल स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए यह रचना अति उपयोगी सिद्ध होगी। यह पुस्तक न केवल बी ए और एम ए के छात्रों के लिए अपितु प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतिभागियों के लिए भी बहुत उपयोगी साबित होगी।
मेरे द्वारा लिखित इस पुस्तक में मुख्य केन्द्र शोधार्थियों के साथ-साथ सामान्य स्तर के विद्यार्थियों को भी रखा गया है जो कि स्वयंपाठी के रूप में भी आसानी से इस सन्दर्भ की
मेरे द्वारा लिखित इस पुस्तक में मुख्य केन्द्र शोधार्थियों के साथ-साथ सामान्य स्तर के विद्यार्थियों को भी रखा गया है जो कि स्वयंपाठी के रूप में भी आसानी से इस सन्दर्भ की व्यापक एवं गहन समझ को विकसित कर सकते है। भारत का प्रत्येक नागरिक इस पुस्तक के अध्ययन से यह आसानी से जान पायेगा कि आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू की वैचारिक विरासत कैसे उनके विरोधियो के चिंतन मे भी आज प्रासंगिक बनी हुई है। पुस्तक की भाषा शैली को बहुत ही सरल और सुबोध स्वरूप दिया गया है।
इस रचना में नेहरू की प्रजातांत्रिक समाजवाद, लोकतंत्र, योजनाबद्ध विकास एवं औद्योगीकरण की अवधारणा का व्यापक, सार्थक, प्रामाणिक, विश्लेषणात्मक-तार्किक विवेचन किया गया है।
यह पुस्तक अन्य पूर्व रचनाओं से इस सन्दर्भ मे भिन्न है कि इसके अन्तर्गत सम्बन्धित पक्ष-विपक्ष को शामिल करने का प्रयास किया गया है जिससे कि नेहरू के विचारों का समग्र विश्लेषण किया जा सके। यह पुस्तक विशेष रूप से नेहरूवियन शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी व सार्थक सिद्व होगी।
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