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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalAbhinav upadhyay is an Independent writer from Bhojpur, Bihar. He is currently a Bachelor of Arts(sociology hons.) student at Bangabasi College under Calcutta university. He plays professional club level cricket in kolkata for more than a decade. He writes Poems,Lyrics, short stories and have a very critical eye for society and thus his most of the writings rovolves around life and problems and behaviour of society. Read More...
Abhinav upadhyay is an Independent writer from Bhojpur, Bihar. He is currently a Bachelor of Arts(sociology hons.) student at Bangabasi College under Calcutta university. He plays professional club level cricket in kolkata for more than a decade. He writes Poems,Lyrics, short stories and have a very critical eye for society and thus his most of the writings rovolves around life and problems and behaviour of society.
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एक संवाद, एक बात चित जो बार बार अंतः मन को कुरेदने का प्रयास करता हुआ लगता है, जो भीतर छुपे अर्णव को पुकारता है उसे तलाशने की कोशिश करना चाहता हो
कुछ इसी किस्म के संवादों से
एक संवाद, एक बात चित जो बार बार अंतः मन को कुरेदने का प्रयास करता हुआ लगता है, जो भीतर छुपे अर्णव को पुकारता है उसे तलाशने की कोशिश करना चाहता हो
कुछ इसी किस्म के संवादों से कविताओं से बना है अभिनव उपाध्याय का तीसरा किताब अर्णव.
तरुण मीमांसा और मुक्तकंठ से, के बाद अर्णव अभिनव का तीसरा काम है
जिसमें जीवन के भगदड़ में कहीं नीचे दब गए सवालों को उठाने की जगाने की कोशीश होती नज़र आती है
समाज, धर्म, प्रथा, कला, विज्ञान, देश तथा समग्र संसार या किसी भी चीज़ के विकाश और सुधार हेतु सबसे अधिक आवश्यक है उसकी आलोचना और इसी प्रकार मानव प्रजाति के बौधिक तथा संपूर्ण रूप से
समाज, धर्म, प्रथा, कला, विज्ञान, देश तथा समग्र संसार या किसी भी चीज़ के विकाश और सुधार हेतु सबसे अधिक आवश्यक है उसकी आलोचना और इसी प्रकार मानव प्रजाति के बौधिक तथा संपूर्ण रूप से विकाश और विस्तार के लिए उनका आलोचनात्मक होना अनिवार्य है, आलोचनात्मक होने के लिए जितना जरूरी है विभिन्न दृष्टियों से सोच समझ पाने की क्षमता और निस्पक्षता उतना ही जरूरी है आलोचन करता का मुक्तकंठ होना।
और इसी आलोचनात्मकता पर आधारित है अभिनव उपाध्याय द्वारा लिखी यह किताब, मुक्तकंठ से: अँधेरे पर प्रकाश।
यह किताब कुछ आलोचनात्मक कविताओं
का संग्रह है। ऐसी कविताएँ जो की समाज के विभिन्न अंगों की बात करती है, समाज में चली आ रही कुरीतियों- नीतियों की निंदा करतीं हैं साथ ही समाज के कुछ पिछड़े विचारों की सुधार की मांग करती हैं वही देश दुनिया की कुछ बातों पर प्रकाश डालती हैं। वहीं कुछ कविताएँ युद्ध के प्रभाव से होने वाले क्षति पर भी नज़र डालती हैं और मानवता से गुहार लगाती हैं, आगे बढ़ने की विकसित होने की, संवेदनशील होने की, सहानुभूतिशील होने के, सभी चीजों के परे सर्वप्रथम मानव होने की।
यह कविताएँ साथ ही आवाज़ है अधिकार के लिए, दमन के खिलाफ, अमन के साथ, विरोध की।
काव्य गीत नहीं जीवन दर्शन है
और ऐसी ही और ऐसे ही कविताओं का संग्रह है तरुण-मीमांसा जो एक साधारण लड़के के असाधारण बनने की चाह और अपने अगल- बगल के लोगों से हट कर अपने समाज और स्वयं
काव्य गीत नहीं जीवन दर्शन है
और ऐसी ही और ऐसे ही कविताओं का संग्रह है तरुण-मीमांसा जो एक साधारण लड़के के असाधारण बनने की चाह और अपने अगल- बगल के लोगों से हट कर अपने समाज और स्वयं से आगे बढ़ कर सबसे अलग स्वप्न देखने की और अपने अत्यंत बड़े स्वप्नों को साकार कर दिखाने की, लक्ष्य को पाने की हार से जूझने की लडाई के संघर्ष पर प्रकाश डालता है और साथ ही जनता से पाठकों से अपील करती है जाग उठने की और जीवन को निरस निगाहों से छोड़ एक नए ढंग से देखना शुरू करने की, अपने मन को मारना छोड़ देने की थोड़ा अधिक प्रयासरत रहने की थोड़ा अधिक प्रश्रमि बनने की।
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