सर्दी से ठिठुरती अंधेरी रात थी | नौ बजे जैसे आधी रात हो गयी हो, सब अपने अपने घर मे कम्बल रजाई लेकर सो गए थे। एक सुनसान सी गली में एक कार रुकी। कार से अजय उतरा और अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा। अभी एक हफ्ता हुआ था उसने नया किराए का घर लिया था। जेब से चाबी निकालकर ताले के अंदर चाबी घुसाने की सोच ही रहा था कि उसने देखा कि ताला तो खुला हुआ था।
" शायद जाते समय ठीक से ताला नही लगाया होगा" सोचते हुए अजय ने कुंडे से ताला निकाला और दीवार पर ठुकी हुई कील पर चाबी समेत टांक दिया और कुंडे को खोलकर अंदर बढ़ गया।
अंदर गया तो उसकी आंखे खुली की खुली रह गयी।