"अधूरा इश्क" ज़िंदगी का वो सच्चा बयां है, जो अतीत की गहराई में जाकर, फिर जीवंत होने के प्रयास में लगा है। जब किसी मोड़ पर अलगाव की स्थिति पैदा होती है, तब दर्द और मायूसी कदम मिलाए आपके साथ चलने लगती है, वो ऐसा रोग है जो धीरे-धीरे आपके मस्तिष्क को काबू में कर लेता है , जिसके आगे सोचने, समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। केवल वो अतीत का "एक ही आधार" आपके केंद्र में रहता है। समय के आगे बढ़ जाने से और अपनी ज़िंदगी को समझौते की नींव पर सुचारू रूप से चलाने हेतु, हम ये नहीं कह सकते कि हमने जो चाहा वो पाया है। विडंबना यही है कि वो ऐसे अनकहे शब्द होते है, जिसका बखान हम किसी और के आगे कर ही नहीं सकते। वो ऐसा अनसुलझा सवाल बन हर मोड़, हर कदम पर आपके साथ रहता है, जिसे आप हृदय की तरंगों में महसूस करते हैं।
मैं उस पड़ाव के हिस्से को अपनी कविताओं द्वारा, सुंदर और सरल शब्दों में इस पुस्तक में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं, कि इश्क़ भले ही अधूरा रह जाए मगर वो पूर्ण होता है अपने आप में, वो कभी मरता नही, वो जीवन पर्यंत आपके साथ रहता है, दिल की गहराई में सिमटा हुआ एक परछाई बनकर।
सही ही कहा गया है --
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"सिर्फ पाना ही चाहत नहीं,
कुछ खोना भी चाहत ही है।"