‘वेद, धर्म, ब्रह्माण्ड से कदापि नहीं मिट सकते, जब - जब धरा पापियों से घिर जाती हैं तो ईश्वर किसी ना किसी रूप में अवश्य ही अवतरित होते हैं, और पापियों का विनाश करते हैं’,
“दैत्य गुरु शुक्राचार्य कलयुग का लाभ उठाने हेतु अवनिंद्रा के नेतृत्व में पिशाचों और दैत्यों की एक विशाल दानव सेना का निर्माण करते हैं जिनके पाप और आतंक से सम्पूर्ण मंगल ग्रह, पृथ्वी और ब्रह्माण्ड त्राहि - त्राहि करने लगता हैं, परंतु ईश्वर जब स्वयं अवतरित नहीं होता तो अपने किसी दूत को पापियों के संहार करने हेतु भेज देता हैं। और स्वयं कुरुक्षेत्र में अस्त्र ना उठाके सारथी बन जाता हैं, उस रक्षक का कोई भी नाम हो सकता हैं हम उसे ईश्वर का अवतार या देवदूत भी कह सकते हैं”,