उपोद्घात्
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नियति का विधान संसार के सब विधानों-संविधानों से ऊपर होता है।
हम योजनाएँ बना तो सकते हैं किन्तु सब योजनाएँ नियति के आधीन होती हैं। मैंने सोचा था इस वर्ष प्रत्येक पखवाड़े में एक एकल काव्य-संकलन प्रकाशित करवाऊँगा किन्तु स्वास्थ्य ने साथ नहीं दिया। जहाँ प्रतिदिन सामान्यतः दस से बीस कविताएँ आकार लिया करती थीं वह गति एकदम से बाधित हो गई। नियति तुम्हारी जय।
यह ३३वाँ एकल काव्य-संकलन आप तक पहुँचा पा रहा हूँ।
जीवन में अनेक रंग देखे और अभी भी नए-नए रंग दिखा रही है नियति। जैसी हरि इच्छा। अनेक विषयों को छू कर, कभी ओढ़ कर, कभी पकड़ कर चलती हैं मेरी कविताएँ। मेरी प्रत्येक कविता का मूल उत्स यथार्थ है।
मेरा उदास होना, प्रफुल्लित होना, मौन हो जाना, एकाकीपन की कारा में पड़े रहना, सब रंग मिलेंगे आपको मेरी कविताओं में।
मेरी प्रत्येक कविता में ईश्वर की उपस्थिति मुझे बल देती है। मैं पराजित नहीं होऊँगा, चलता रहूँगा जैसे भी बन पड़ेगा।
अभी तक प्रभु ने १९,००० से अधिक कविताएँ मुझसे लिखवा दी हैं।यह भी नियति की कृपा ही है कि वह मेरी गति में अवरोध तो उत्पन्न करती है किन्तु विराम नहीं लगने देती।
धन्यवाद तुम्हारा नियति।
आप कविताएँ पढ़ें और मेरे भीतर तक की सारी प्रदर्शनी देखें। हो सकता है कहीं-कहीं आप ठिठक कर ठहर जाएँ और आप को लगे कि मैंने आपकी आपबीतियाँ भी निचोड़ डाली हैं अपनी कतिपय कविताओं में। यदि ऐसा हुआ तो मेरा लेखन सार्थक हो जाएगा।
आशीर्वादाकांक्षी,
आपका
हस्ताक्षर
डॉ.विनय कुमार सिंघल,
"श्रीकृष्ण-पद-रज-अनुगामी"
अधिवक्ता/कवि
चलभाषः८१७८७३२१०६,९८९१४३५१४५
निवासः १४१२, ब्लॉक-सी, द्वितीय-तल, व्यापार केंद्र के निकट, पालम विहार, गुरुग्राम-१२२०१७, हरियाणा