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प्रकृति की प्रतिकृति
प्रकृति की प्रतिकृति
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Book Description

“जब - जब मनुष्य इस धरती को आतंकित करता है। ये धरती खुद को संतुलित करती है अपने इक अलग अंदाज़ में।  कभी सुनामी लाती है, कभी विशालकाय भूकंप। कभी भयंकर तूफान आते है और मानव को उसकी वास्तविक औकात याद दिलाते है। इस वर्ष  प्रकृति कि लाठी कोरोना महामारी बन कर आयी है।”   यह पुस्तक एक साथ 7 कहानियों का संग्रह है। हर कहानी वास्तविक जीवन के कथानक से ली गई है। 10 साल की अवधि में ये पात्र मेरे सामने आए। हर कहानी अनोखी होती है, इसे "भगवान द्वारा लिखित, मेरे द्वारा रचित " कहा जा सकता है। इन कहानियों  के  पात्र वास्तविक हैं, उनकी कहानी मेरी कल्पनाओं के सार के साथ अभिभूत हुई है। हर कहानी भारतीय परिदृश्य में एक महिला के जीवन संघर्ष को व्यक्त किया गया है। पात्र वर्तमान युग के हैं, लेकिन उनका संघर्ष युगप्रतिष्ठ है। इन कहानियों की प्रमुख नायिका स्वयं प्रकृति हैं। मेरा मानना ​​है कि उनके द्वारा रचित हर कहानी अलग-अलग परिस्थितियों के साथ एक ही परिदृश्य में चित्रित हुइ है। यह शीर्षक स्वयं को परिभाषित करता है "प्रकृति की प्रतिकृति" या मातृ प्रकृति का अवतरण। मेरा मानना ​​है कि हर महिला में स्वयं माँ भगवती की आत्मा वास करती है।