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Outdoors & Nature | 23 Chapters
Author: Pankaj Malviya
This book attempts to understand, the holy river Ganga's journey of Bihar and the steps taken by “Raaj & Samaaj” in direction of restoring the incessant flow of it by recognising the problems. Ganga or any other river, pond or any other traditional water body, the issue of their cleanliness and health is linked to our intention. On this criterion of intention, we can see our righteousness and our reverence for them tightly. The fruits of se....
निवेदन
देश के सामने नदियों के अस्तित्व का संकट मुंह बाए खड़ा है, 70 फीसदी नदियां शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमण का शिकार होकर मरने के कगार पर हैं। यह उस देश में हो रहा है, जहां आदिकाल से नदियां मानव के लिए जीवनदायिनी रही हैं। उनकी देवी की तरह पूजा की जाती है और उन्हें यथासंभव शुद्ध रखने की मान्यता व परंपरा है। दरअसल प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का खामियाजा सबसे ज्यादा नदियों को ही भुगतना पड़ा है। लेकिन इस बात को याद रखना ही होगा कि हमारी संस्कृति में नदियों के जल के बिना न पूजा होती है, न उपासना, न कोई यज्ञ, न कोई ज्ञानसत्र चलता है। आधुनिक विज्ञान ने नदियों पर नियंत्रण करने की कोशिश प्रारंभ की और यहीं से परिदृश्य में बदलाव प्रारंभ हुआ। हमने अपनी परम्पराओं को भुला दिया और आधुनिकता का रंग ऐसा चढ़ा कि अब परम्पराओं के शेष चिन्ह भी नज़र नहीं आ रहे हैं। गलती यह हुई कि जो कुछ भी पुराना था, हमने उस सभी को पिछड़ा व पोंगापंथी मान लिया। नई सभ्यता का निर्माण करते वक्त हमने संस्कृति के पुराने संदेशों की अनदेखी की, हालांकि परिणाम भी सामने है।
नदी और प्रकृति को समझने की कोशिश में लगातार लगा हूं, लेकिन यह काम आसान नहीं है। क्योंकि नदी का अपना तंत्र व विज्ञान है और उसके जरिये ही उसका जीवन कायम रहता है। समाज का बड़ा हिस्सा यह महसूस करने लगा है कि वर्तमान दौर में विनाशकारी गतिविधियों को नियंत्रित करने का अब एक ही रास्ता शेष है- ‘सभ्यता’ एक बार फिर सांस्कृतिक संयम द्वारा संचालित हो और प्रकृति पर नियंत्रण की कोशिश बंद हो। इस क्रम में एक सुनी हुई बात याद आती है - “जब मनुष्य असभ्य था, तब हमारी नदी और तालाब स्वच्छ रहती थीं। आज जब मनुष्य सभ्य हो गया है, तब नदियाँ मलिन व विषाक्त और तालाब समाप्त हो रहे हैं। लेकिन इस बात को हमेशा याद रखना होगा कि जो समाज अपनी विरासत के निशानों को संभाल कर नहीं रख पाता, उसकी अस्मिता और पहचान एक न एक दिन नष्ट हो जाती है। मेरा यह निश्चित मत है कि बिहार का राज और समाज ऐसा कदापि नहीं चाहेगा? ऐसे में यहां का समाज पानी के प्राकृतिक श्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए अवश्य ही आगे आएगा, क्योंकि इसकी रक्षा अब लोक चेतना से ही सम्भव दिखती है।
वर्तमान माहौल में समाज सेवा जैसा पुनीत कार्य भी नदी और परम्परागत जल श्रोतों की तरह बाज़ारवाद का शिकार हो चुका है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि आप जब सामाजिक कार्य को लेकर आगे बढ़ते हैं तो पहले लोग संदेह भरी नज़रों से देखते हैं। ऐसे लोगों में उनकी संख्या सबसे अधिक होती है, जो समाजसेवा को ‘कैरियर’ मानते हैं और इसे अपनी कमाई का जरिया बनाए बैठे हैं। कुछ लोग ऐसे भी मिल चुके हैं, जो बिहार के प्रयत्न को अपने ‘नेटवर्क’ के जरिये अपने खाते में डालने में भी हिचकिचाहट नहीं महसूस करते। पुस्तक के रूप में इस दस्तावेज को प्रकाशित करने की यह एक बड़ी वजह है, ताकि बिहार में गंगा जी के लिये ‘राज और समाज’ द्वारा अब तक किये गये कार्यों का संक्षिप्त लेखा-जोखा उपलब्ध रहे और इस कार्य को लेकर आने वाले दिनों में कार्य करने की इच्छा रखने वाले सज्जनों को आगे की अपनी भूमिका तय करने में सहायता हो सके।
प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों की समझ रखने वाले राज और समाज के गंभीर लोगों द्वारा मेरे प्रयास में मिले समर्थन और सहयोग के लिए मैं उनका आजीवन आभारी रहूंगा। गंगा जी के साथ भावनात्मक रूप से लगाव रखने वाले देश के एक मात्र राजनेता श्री नीतीश कुमार जी का मैं विशेष रूप से आभारी हूं, जिन्होंने गंगा जी की समस्याओं को लेकर हमारे प्रयास को हमेशा महत्व दिया। प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक हो अथवा अन्य अवसर, उनके द्वारा गंगा जी को लेकर मन की पीड़ा को हमेशा व्यक्त किया जाता रहा है। इनके प्रयासों का ही नतीज़ा है कि गंगा जी तालाब बनने से बच गईं, पुस्तक के “गंगा और बिहार” अध्याय में गंगा जी के लिये उनके स्तर से की गई पहल को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। इस क्रम में नदी, पानी और जंगल से जुड़े अभियान ‘पानी रे पानी…’ को समर्थन और सहयोग देने वाले समाज के कुछ खास नामों की चर्चा आवश्यक समझता हूं। बिहार विधान सभा के अध्यक्ष और तत्कालीन जल संसाधन मंत्री श्री विजय कुमार चौधरी, सांसद एवं पूर्व जल संसाधन मंत्री श्री राजीव रंजन सिंह उर्फ लल्लन सिंह, शिक्षाविद व विधान पार्षद श्री केदारनाथ पांडेय, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री उपेंद्र कुशवाहा और आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति उदयकांत मिश्र जी का विशेष तौर पर आभारी हूं, जिनका मार्गदर्शन और सहयोग इस कार्य में हमेशा मिलता रहा।
इसके अतिरिक्त समाज में विशिष्ट पहचान रखने वाले ई. दिनेश मिश्र, मध्य प्रदेश भूजल वैज्ञानिक श्री कृष्णगोपाल व्यास, सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखक व पत्रकार श्री अरूण तिवारी (अमेठी), हिंदी इंडिया वाटर पोर्टल के श्री केसर सिंह, पर्यावरण विषय के लेखक व पत्रकार ज्ञानेंद्र रावत, का आभारी हूं, जिन्होंने समय-समय पर बिहार की चिंता से जुड़कर चिंतन के लिए समय निकालने की कृपा की। पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह को विशेष तौर पर धन्यवाद देना चाहता हूं, जिनके सक्रिय सहयोग से गंगा जी की समस्याओं को लेकर पूरे राज्य के अलावा विशेषज्ञों के साथ पश्चिम बंगाल में फरक्का बैराज़ के प्रभाव को समझने की कोशिश की गई और समाज को जागृत करने का सक्रिय प्रयास किया गया। आप सबों के सहयोग से तैयार यह दस्तावेज अवश्य ही बिहार में गंगा जी और अन्य नदियों की समस्या को समझने में और आगे का रास्ता तय करने में सहायक सिद्ध होगा। अभियान की विस्तृत जानकारी के लिये
इस पुस्तक में समाज के विशिष्टजनों के आलेखों और विचारों के जरिये गंगा जी की समस्याओं को दूर करने और नदियों को पुनर्जीवित करने के मामले में राज व समाज को रास्ता दिखाने की कोशिश की गई है। इस दिशा में किये गये प्रयास और परिणाम की चर्चा का एक मात्र उद्देश्य आने वाले समय में गंगा जी को लेकर काम करने वालों को पूर्व के प्रयासों की जानकारी देते हुये सहयोग करना है। इस दस्तावेज को तैयार करने के दौरान सामग्री संकलन से लेकर उसे अंतिम रूप देने में सहयोग के लिये ‘पानी रे पानी...’ अभियान के साथियों के प्रति आभारी हूं। विशेष तौर पर कीर्ति चावला, प्रीति यादव, राखी चौबे और जयराज मिश्र के प्रति आभार प्रकट करता हूं, जिनके द्वारा इस दस्तावेज को पुस्तक का रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी गई।
धन्यवाद, |
- सम्पादक |
नमामि गंगे! तव पादपंकजं
सुरसुरैर्वन्दितदिव्यरूपम्।
भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यम्
भावानुसारेण सदा नराणाम्॥
अर्थात् हे गंगाजी! मैं देव व दैत्यों द्वारा पूजित आपके दिव्य पादपद्मों को प्रणाम करता हूँ। आप मनुष्यों को सदा उनके भावानुसार भोग एवं मोक्ष प्रदान करती हैं। यही नहीं, स्नान के समय गंगाजी के १२ नामों वाला यह श्लोक भी बोला जाता है, जिसमें गंगाजी का यह वचन निहित हैं कि स्नान के समय कोई मेरा जहाँ जहाँ भी स्मरण करेगा, मैं वहाँ के जल में आ जाऊँगी।
स्कन्दपुराण का कथन है...
स्नानकालेऽश्रन्यतीर्थेषु जप्यते जाह्नवी जनैः।
विना विष्णुपदीं कान्यत् समर्था ह्यघशोधने।
इसका अर्थ यह है कि अन्य तीर्थों में स्नान करते समय भी गंगा का नाम ही लोग जपा करते हैं, गंगा के बिना अन्य कौन पाप धोने में समर्थ है? अग्निपुराण के मतानुसार तीर्थ के जल से गंगाजल का जल अधिक श्रेष्ठ है, “तीर्थतोयं ततः पुण्यं गंगातोयं ततोsधिकम्”। सहस्र नामों से पवित्र देवापगा गंगा के स्तवन गाये जाते हैं, तथा अपने अघ-मर्षण की अभ्यर्थना की जाती है, दूध, गंध, धूप, दीप, पुष्प, माल्य आदि से पूजा-अर्चना की जाती है। गंगा के भू पर अवतरण की तिथि पर गंग-दशहरा मनाया जाता है व स्नान-पुण्य आदि करके श्रद्धालु जन स्वयं को पवित्र करते हैं। इसी प्रकार...
गंगा सिंधु सरस्वती च यमुना गोदावरी नर्मदा
कावेरी सरयू महेन्द्रतनया चर्मण्यवती वेदिका।
क्षिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता जया गण्डकी
पूर्णाः पूर्णजलैः समुद्रसहिताः कुर्वन्तु मे मंगलम्॥
इस श्लोक का अर्थ भी यही है कि उपर्युक्त सभी जल से परिपूर्ण नदियां, समुद्र सहित मेरा कल्याण करें। गंगा की महिमा तो वर्णनातीत है। उसे प्रणाम कर अपना जीवन सार्थक करने की परंपरा अति प्राचीन है।
– पानी रे पानी..
दो शब्द
गंगा जी की अविरलता को लेकर गम्भीर आवाज सुनने को नहीं मिलती, जबकि अविरल धारा के बगैर उसकी समस्याओं का समाधान सम्भव नहीं दिखता है। पहले लोगों के बीच गंगा आये तो सही, उसके बाद ही स्वच्छता की बात करना ईमानदार प्रयास होगा। गोमुख से निकलने के बाद गंगा की स्थिति को जानने से साफ है कि गंगा का अस्तित्व बिहार तक पहुंचने की राह में लगभग समाप्त हो जाता है, लेकिन हम उसकी स्वच्छता के लिए अभियान चला रहे हैं। गंगा जल के बंटवारें और अन्य तथ्यों पर गौर करने से आप समझ सकेंगे कि गोमुख से निकलकर हरिद्वार के बाद कानपुर आदि शहरों से गुजरते हुए इलाहाबाद तक पहुंचते-पहुंचते मां गंगा मरणासन्न हो जाती है। ऐसे में गंगा जी के लिये कुछ करने का उत्साह दिखाने वालों को नदी की गहराई को समझना आवश्यक है, यह भी समझना होगा कि अठारहवीं सदी में अंग्रेजों द्वारा विकसित गंगा केनाल सिस्टम आदि कई व्यवस्था का विकल्प क्या हो। लेकिन इन सबके बीच एक सवाल यह भी है कि गोमुख से निकलने वाली गंगा का जल बिहार को भी मिले और अविरल बहते हुए सागर तक पहुंचे, तभी हमारे प्रयास को ईमानदार कहा जाएगा।
दरअसल बेचारी गंगा टूटते प्रवाह, घटती गहराई और वेग शुन्यता के संकट से जूझते-जूझते थक गई है। उसे केवल नाम के लिये “राष्ट्रीय नदी” का दर्जा तो दिया गया, लेकिन व्यवहार गंदे नाले जैसा जारी है। उल्लेखनीय है कि लगभग २५५० किलोमीटर की यात्रा के लिए गोमुख से निकली गंगा हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी एवं पटना होते हुए पश्चिम बंगाल में गंगा सागर में मिलने वाली गंगा इन शहरों की कचरे एवं मलमूत्र ढो रही है। ऐसे में इसे मोक्षदायिनी कहने योग्य बनाने के लिए सबसे पहले अविरल बनाना जरूरी है, ताकि अपने वेग से स्वंय को साफ करने की ताकत गंगाजी को मिल सके। गंगा जल के अधिक दोहन का नतीजा है कि गंगा हमारे बीच से समाप्त होने के कगार पर हैं, बिहार से तो गायब हो ही चुकी है। भले ही बरसात के मौसम में गंगा की राह में जल दिखने लगे, लेकिन वास्तविकता यह है कि गंगा जी का भरपूर दोहन भीमगौड़ा, बिजनौर, नरौरा व अन्य बैराजों से कर लिया जाता है। इसके बाद थोड़ी-बहुत जल राशि लेकर सागर की ओर बढ़ने वाली गंगा की दशा उसके काले पड़े हुए जल को देखकर लगाया जा सकता है। हालांकि सरकार की योजनाएं अपनी गति में जारी है और गंगा नदी के पर्यावरणीय प्रवाह को लेकर लिये गये निर्णय को सामने रखते हुए आने वाले दिनों में गंगा जी के अच्छे दिन लौटने का दावा करती है।
बिहार में कर्मनाशा, सोन, सरयु, माही, गंडक, बुढी गंडक, बागमती, कोसी आदि नदियों के जल को बिहारवासी गंगा का पानी मानने को विवश हैं। इन नदियों के संगम के दौरान उनके द्वारा साथ लाये गये कचरों का भी संगम होना स्वाभाविक है। बिहार में नदियों की समस्या के लिये सर्वाधिक चर्चित फरक्का बराज के कारण गंगा की राह में बढ़ते गाद ने बाढ़ और कटाव की समस्या को बढ़ाया है। केंद्र सरकार ने गंगा को लेकर कई योजनाओं की घोषणा की है, लेकिन योजनाएं घोषणा से आगे बढ़ती नहीं दिखती है। हाल तो यह है कि गंगा के नाम पर चिन्हित राशी का उपयोग शहरों और कस्बों में शौचालय व सिवर लाईन बनाने समेत तमाम कार्यों में किया जा रहा है। गंगा नदी के नाम पर खर्च की जाने वाली राशि से ही गंगा जी को गंदा किये जाने की बात को इस तरह से समझा जा सकता है। शहरों में शौचालय और सिवर लाईन बनाने के बाद शहरों का गंदा पानी गंगाजी में ही डालने की व्यवस्था लगातार जारी है। गंगा की पवित्रता और शुद्धता की कामना देश के हर कोने में रहने वाला व्यक्ति करता है, लेकिन हमने कभी यह समझने का प्रयास नहीं किया कि डोर टू डोर इक्कठा किया जाने वाला कचरा कहां जाता है।
गंगा नदी की समस्या ओं और सरकारी प्रयासों में अविरलता के मसले को गौण देखकर बिहार के प्रबुद्ध समाज के सहयोग से वर्ष २०१४ से पानी रे पानी... अभियान के तहत बिहार में एक प्रयास प्रारम्भ किया गया और सक्रियता का परिणाम भी सामने आते रहा है। इसके तहत पहला आयोजन १७ अगस्त २०१४ को पटना के गांधी संग्रहालय में किया गया था, जहां देश के कई जल विशेषज्ञों ने अपनी गंगा जी को लेकर चिंता व्यक्त की और बाद में पूरे राज्य में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इसके बाद आरा, छपरा, मुंगेर और भागलपुर समेत राज्यभर में अलग-अलग गंगा जी की समस्या को लेकर संगोष्ठी और संवाद का आयोजन किया गया। इस दौरान नदियों की समस्याओं पर व्यापक चर्चा की गई, जिसमें यह मत सामने आया है कि बिहार में गंगा जी की समस्याएं गंगाजल के अत्यधिक दोहन और फरक्का बराज के कारण उसकी राह में उत्पन्न गाद के कारण सबसे अधिक है। उल्लेखनीय है कि पदार्थ एवं शक्ति के अविनाशी सिद्धान्त के तहत सतही एवं भूमिगत जल का अनुपातिक सम्बन्ध होना चाहिए। इस क्रम में गंगा का जल दोहन ३० प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि फिलवक्त बैराजों से ९५ प्रतिशत से अधिक गंगा जल का दोहन हो रहा है। परिणामस्वरूप गंगा नदी का जलस्तर अचानक गिर गया है और उसका वेग कम हो गया और इससे स्वत: होने वाली प्रक्रिया गंगा नदी की उराही का काम नहीं हो रही है।
Outdoors & Nature | 23 Chapters
Author: Pankaj Malviya
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Ganga aur Bihar
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