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Poetry | 31 Chapters
Author: Rajeev Kumria
Ever since human kind developed language, it did not remain a means of mere communication, it became larger than its primary cause and evolved into a tool of expression. The highest form of that expression is poetry. Indian civilization in its entirety is poetic. Kaanch pe padhi boonden or Raindrops on the Glass are a collection of poems representing a select few emotions and poetic expressions from the myriad raindrops that fall on us. The ....
राज़दारों पे खुलने को अभी कुछ राज़ है बाकी |
बड़ी पोशीदा ख़ामोशी है कुछ अल्फ़ाज़ है बाकी ||
तुम चलो हमसे आगे हम तुम्हारे पीछे आते हैं |
अभी कुछ मंज़िलें बाकी हैं और कुछ रात है बाकी ||
चिराग जलता है जब तक उसमे तेल है बाकी |
वगरना बाती की किस्मत में तो ख़ाक है बाकी ||
सफर लम्बा है, यहाँ मिलते हैं लोग बहुत से |
बहुत देखे हैं यां अंजाम एक आगाज़ है बाकी ||
किसी उम्मीद के मंज़र पे गुमसुम बैठा है राज़ी |
सब पी चुके तो फिर क्यों मेरा जाम है बाकी ||
राज़ मेरे पहले प्रयासों में से एक है, त्रुटियों से भरपूर| मेरे जानने वालो को अंदर बैठे एक लेखक के बारे में पता नहीं था| मेरे इस प्रयास को सराहना और सम्भावना दोनों का संबल मिला| राज़ केवल हमारे किर्याकलापों, कर्मों और विचारों के नहीं परन्तु भावनाओं के भी होते हैं| इन राज़ों को हम संजो के रखते हैं| डरते हैं इनके ज़ाहिर होने में जैसे ये कोई धरोहर हो| हमारे जाने के साथ ये राज़, ये ख़ज़ाने लुप्त हो जाते हैं, बेमानी से| हम सबसे अनजान ही रहते हैं और फिर आकाशगंगा में विचरण करते उन प्रकाश पुंजों की तरह जिनका प्रकाश अब बुझ गया है, निस्तेज और निरर्थक| पर ये राज़ तो नहीं | इस रचना से ही अपना काव्यिक नामकरण हुआ राजीव कुमरिया "राज़ी "|
- राज़ी
शब्दार्थ
राज़दार; हमराज़| पोशीदा; गुप्त; छिपा हुआ; ढका हुआ| अल्फ़ाज़; शब्द
Poetry | 31 Chapters
Author: Rajeev Kumria
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Kanch Pe Padhi Boondein
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