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Prem Avataran

Religion & Spirituality | 12 Chapters

Author: Mitr Sut

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Confused about spirituality? Already done and read a lot, but feeling stuck in your growth?   Let your knowledge become your experiences, your own personal  Truth! This book will take you to a refreshing new realm of spirituality based on the teachings & experiences  with Divine Friend Dadashreeji 

अध्याय-1

आध्यात्मिक संघर्ष

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मेरी आँखें चौड़ी हो गई थीं, मैं भौचक्का हो कर उस व्यक्ति को देख रहा था। वो पूर्ण नग्न थे और नंगे पाँव सड़क पर चल रहे थे। पाँच-छः लोग जिन्होंने सफेद वस्त्र धारण किया हुआ था, वो उन्हें घेर कर, उनकी रक्षा करते हुए उनके साथ चल रहे थे। लोगों ने उनको देखा और उनके इर्द-गिर्द भीड़ जमा होने लगी। सफेद वस्त्रधारी लोग भीड़ को हटाते हुए, उन जैन मुनि के लिए जगह बनाते हुए चल रहे थे, जिससे वे सुरक्षित तरीके से आसानी से चल सकें।

उस महान सन्यासी ने अपना सर्वस्व त्याग दिया था। संसार की सारी वस्तुएँ यहाँ तक कि उन्होंने वस्त्र का भी त्याग कर दिया था। शायद इसलिए कि यह उन्हें सत्य का भान कराता रहेगा। परम सत्य तक पहुँचने के लिए यह कितनी कठिन तपस्या है? कम से कम मुझे ऐसा प्रतीत हुआ और मेरे अंदर उनके लिए अपार आदर का भाव उभरा। मैंने उन्हें मन ही मन विनम्र भाव से प्रणाम किया और उनसे आशीर्वाद माँगा कि मुझे भी ज्ञान और साहस मिले, जिससे मैं अतीन्द्रिय पर ध्यान केन्द्रित करने के योग्य बन सकूँ।

विरोधाभास-

मुझे यह कहा गया था कि मैं वो सब करूँ, जो मुझे स्वाभाविक और सहज महसूस होता है। दादाश्रीजी ने कहा था - ‘‘वास्तविक रहो, कठिन तपस्या, ध्यान, मंत्र जाप की जरुरत नहीं है। अपने स्वाभाविक रूप में रहो, दैविकता से जुड़े रहो और मैं तुम्हें वहाँ ले जाऊँगा।’’

सफेद चादर ओढ़े हुए, वे एक ऊँचे आसन पर विराजमान थे। उन्होंने एक सुन्दर-सा मोरपंखी रंग का कुर्ता पहन रखा था। साल 2013, जनवरी का महीना था। घुटने तक उनके पैर श्वेत अंगवस्त्रम से ढ़के हुए थे।

मैंने दोनों बातों को एकबारगी सोचा। अब तक जो मैंने सीखा था, यह शिक्षा ठीक उसके विपरीत थी। मेरे अंदर विरोधाभास उत्पन्न हो गया। मैंने सोचा, यह कैसे संभव हो सकता है? यह असंभव है!

एक क्षण रुकिए! चलिए शुरू से सारी कहानी क्रमानुसार बताता हूँ।

अनुबंधन-

जिस समय हम पैदा होते हैं, हम अपने वातावरण, माँ-बाप, दोस्त-रिश्तेदार इत्यादि से प्रभावित होने लगते हैं। एक छोटा शिशु जब रोता है या मुस्कुराता है, वह सभी के दिल को छू लेता है। कोई चिंतित और परेशान व्यक्ति भी उसकी मुस्कुराहट पर खुश हो जाता है। उसकी मुस्कुराहट किसी लहर की तरह चारों ओर फैलती है। लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, यह गुण धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। ऐसा क्यों होता है? यह माया का खेल होता है, जिस वजह से वास्तविक पवित्रता नई परतों के बीच ढ़क जाती है। अनुबंधन की वजह से हमारी वास्तविकता नई पहचान में गुम होने लगती है।

जैसे-जैसे हम व्यस्क होते हैं, हम पर हमारे चारों ओर के माहौल का असर होने लगता है। तरह-तरह के अनुभव, विभिन्न रंग हमारी पवित्रता पर अंकित हो जाते हैं और हमारे सत्य स्वरूप का पतन होना शुरु हो जाता है। हम अपने वास्तविक रूप से दूर हो जाते हैं। अगर हम पानी में कीटनाशक, क्लोरीन या कोई प्रदूषित पदार्थ मिला दें, चाहे वह अच्छा हो या बुरा हो, लेकिन शुद्ध पानी के जैसा वह नहीं बचता है। ठीक यही अंतर हमारी पवित्रता में हो जाता है।

जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूँ, मुझे लगता है, मैं भी इसी प्रक्रिया से गुजरा हूँ और हम सब एक समान इस राह से गुजरे हैं। आइए देखते हैं, मेरे लिए चीजें कैसे बदली और वास्तव में क्या हुआ था।

मिलन-परिवर्तन

“जब आप पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं, आपके गुरु प्रकट होते हैं।” आपकी यह इच्छा पूरी ईमानदारी से होनी चाहिए। “जिस समय अपने मार्गदर्शक से मिलने की इच्छा तीव्र होगी, गुरु मिलेंगे।’’ ‘‘गुरु आपके भीतर ही हैं।’’ इत्यादि, इत्यादि…। हम सबने इस तरह की कई पंक्तियाँ पढ़ रखी हैं। हमने ऐसा कुछ न कुछ जरुर सुन रखा है।

इसके अलावा कुछ लोग हैं, जो पूरी तसल्ली के साथ कहते हैं - ‘‘आपके साथ जो कुछ भी होता है या आप जीवन में जिस चीज का भी सामना करते हैं, वह आपको कुछ न कुछ सिखाता है। और इस तरह से सभी मेरे गुरु हैं। मुझे किसी अन्य मार्गदर्शक की आवश्यकता नहीं है। मैं अपना मार्गदर्शक स्वयं हूँ।’’

मैं दोनों तरफ के तर्कों से भली-भाँती परिचित था। मेरे अंदर कभी मार्गदर्शन पाने की इच्छा होती थी, कभी मैं इस इच्छा को तर्कों के तले मिटा देता था। कभी-कभी ऐसा लगता था - ‘सब कुछ मूर्खता है। अच्छे से रहो, अच्छे कर्म करो, खुश रहो और जिंदगी के मजे लो। आखिरकार सब कुछ अफवाह ही तो है। आध्यात्मिकता में किसी बात का प्रमाण कहाँ है?’

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