96 Views

Sia

Literature & Fiction | 12 Chapters

Author: Vinay Namdeo

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The story is about the love blomming in IT industries and offices and the growth of modern men and women and how they overcome many hurdles and obstacle in life. The story also takes the reader to different cities of world and India. It also explain how a small group of people can help in transforming life of unfortunates and aggrieved.

अध्याय १ ‘मुंबई हॉस्पिटल १: इम्तिहान’

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मुंबई हॉस्पिटल १: इम्तिहान

आज की रात उसके जीवन की एक महत्वपूर्ण रात है, आँखों में आंसू तो यूही है वो तो स्ट्रांग है बहुत शायद मुझसे भी|

पूर्णिमा की रात मुंबई के एक अस्पताल में ऑपरेशन थिएटर के बाहर एक उम्रदराज व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग् ५० से ५५ होगी| जिसके हाथ में मोबाइल फ़ोन, आँखों पे नजर का चश्मा, चेक शर्ट और ब्लैक पैंट, ऐसा लग रहा है जैसे ऑफिस से सीधा हॉस्पिटल आ गया है| जिसके चेहरे पे चिंताओं की लकीरो को साफ़-साफ़ देखा जा सकता है| चिंता हो भी क्यों न, बात ही कुछ ऐसी है की उसे आनन् फानन में यहाँ आना पड़ा| बार-बार उसका फ़ोन बज रहा है और वो बार बार कह रहा है|

-कैंसिल माय आल अपॉइंटमेंट्स

अरे परिचय देना तो भूल ही गया जो व्यक्ति बैठा है उसका नाम है अभिमन्यु सिया रॉय| यहाँ सिया उसकी माँ का नहीं उसकी वाइफ का नाम है | लोग प्यार से उसे अभि बुलाते है और ज्यादा प्यार से भी अभि ही बुलाते है| बाजु में उसका लड़का बैठा है| अभी-अभी अब्रॉड से आया है, जिसका नाम

आर्यन है जो लगभग २८-३० साल का है| थोड़ा मोटा और आँखों पे एक मोटा सा चश्मा|

वहीं पर सामने ऑपरेशन थिएटर में लाल रंग का बल्ब जल रहा है|

आसपास नर्सों और मरीजों की आवाजाही लगी हुई है| घड़ी में रात के 11:00 बजे हैं|

(तभी एक दुबली पतली सी नर्स ग्लव्स उतारते हुए अभि के पास आती है)

नर्स- सर आप लोग थक गए होंगे कोई जरूरत होगी तो मैं आपको कॉल कर दूंगी आप घर जा सकते हैं|

-नहीं, नहीं मैं और मेरा बेटा रात यही रुकेंगे मेरी पत्नी है वह आखिर उसे इस हालत में छोड़ कर घर कैसे जा सकते हैं|

सही कहा ना आर्यन?

-हां पापा, आप सही कह रहे है हम कहीं नहीं जाएंगे मां के पास ही रहेंगे |

-आर्यन तुम अभी फ्लाइट से आये हो काफी थक गए होंगे कुछ खा लो फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे वैसे भी आज की रात बहुत लंबी लग रही है| मैं अकेला होता तो ना जाने कैसे क्या करता |

- पापा आप टेंशन मत लीजिये मैं हु ना, माँ को कुछ नहीं होगा |

ऑपरेशन थिएटर का बल्ब बुझ जाता है| डॉ बाहर आते है

-डॉ मेरी माँ कैसी है अब?- आर्यन ने पूंछा

डॉक्टर- अभी कुछ कहा नहीं जा सकता आप ब्लड का इंतजाम कीजिये एक और सर्जरी होनी है उनकी(चश्मे को उतारते हुए डॉक्टर ने एक हाथ आर्यन के कंधे पे रखते हुए दिलासा देते हुए कहा)

आर्यन- डॉ मेरा भी ब्लड ग्रुप A पॉजिटिव है और माँ का भी

डॉक्टर- ठीक है आप मेरे साथ आईये

हमारे पास समय कम है जल्दी आईये

(समय मुट्ठी मे बंद रेत की तरह फिसलता जा रहा है आर्यन और डॉ, लैब मे जाते है मैं दरवाजे मैं लगे कांच से सिया को देखता हूँ बेसुध सिया आसपास बस पाइप और वेंटिलेटर ही नजर आरहे है| चाहकर भी उससे मिल नहीं पा रहा हूँ मुझे एक बार सिया से बात करनी है, उसे सॉरी कहना है, उसे प्यार करना है, उससे माफ़ी मांगनी है| इस बार बस ठीक हो जाओ कभी-भी छोड़कर नहीं जाऊंगा|

पैसे कमाने मैं इतना बिजी हो गया की तुम्हे टाइम ही नहीं दे पाया आज जब मैं तुम्हारे पास हूँ तो तुम कुछ बोल भी नहीं रही हो)

-डॉक्टर, क्या मैं एक बार सिया से मिल सकता हूँ?( आँखों से आंसू पोंछते हुए संभलते हुए खुद को मजबूत दर्शाते हुए मैंने डॉक्टर से पूंछा)

डॉक्टर- नहीं मिस्टर रॉय |अभी मैडम खतरे से बाहर नहीं है दुआ कीजिये की ये सर्जरी सफल हो जाये फिर आराम से मिल लीजियेगा |

(एक बार फिर ऑपरेशन थिएटर के दरवाजे बंद होते है और लाल बल्ब जलता है मैं बस ऑपरेशन थिएटर की तरफ अपनी आंखे गड़ा कर देख रहा हूँ की कब सर्जरी ख़तम हो और

अपनी सिया से मिल सकू, सब कुछ होने के बाद भी आज खुदको गरीब महसूस कर रहा हूँ, रोना चाहता हूँ लेकिन कोई कन्धा ही नहीं है जिसपर आंसू बहा सकू)

-अभि, अभिमन्यु रॉय,हेलो, अभि उठो यार (कॉलेज फ्रेंड यश शेखर ने गले से लगते हुए कहा मैंने भी बिना कुछ बोले बस रो दिया| आंसुओ को ऐनी अंदर खींचते हुए लम्बी सांस लेते हुए)

-अरे यश तुम? क्यों परेशान हुए भाई?

यश- भाई भी कहते हो और ये भी कह रहे हो की क्यों परेशान हो रहे हो, मेरी भी भाभी है सिया और तुम को ऐसे अकेले तो नहीं रहने दे सकते ना | चलो पहले खाना खालो, आर्यन कहा है ?

- वो बाहर तक गया है बस आता ही होगा | लो देखो आ भी गया

आर्यन- यश अंकल कैसे है आप?( यश के पैर छूते हुए)

यश- ठीक हूँ बेटे , आप कैसे हो और कब आये लंदन से ?

आर्यन- बस अंकल थोड़ी देर पहले ही |

(यश का फ़ोन बजता है)

यश- हेलो, हेलो हाँ अभिषेक कहा पहुंचे भाई ?

हाँ हम यही है बॉम्बे हॉस्पिटल मैं ही, ऑपरेशन थिएटर के पास

हाँ, हाँ, जल्दी आओ, हम इंतजार कर रहे है

अभि- अभिषेक? हमारा बैच मेट?

यश - हाँ, मैं जब सिंगापोर से निकला था तो उसे भी कॉल कर दिया था| यार तुझे ऐसी हालत मैं कैसे अकेला छोड़ देता याद हैना हम परिवार ही तो है तो सुख दुःख भी तो हम सबके है| साथ मिलकर बाँट लेंगे

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