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Akash Surya Dharti aur Manushya / आकाश सूर्य धरती और मनुष्य

Author Name: Dr Rajendra Kumar | Format: Paperback | Genre : Educational & Professional | Other Details

पुस्तक में आकाशमण्डल और सूर्य , पृथ्वी पानी और मनुष्य आपस में अप्रत्याशित रूप से जुड़े, विषयों पर चर्चा करी गई है। खगोल शात्र में यह हमेशा कौतुहल का विषय रहा है कि आकाश, तारा मण्डल आदि का कब और कैसे अस्तित्व हुआ। सूर्य और सौर मण्डल कब और कैसे बने। क्या वे अमर है या उनका भी अन्त होना निश्चित है।
 पृथ्वी का जन्म सूर्य से हुआ है; वह जन्म के समय आग का गोला थी। उसकी अग्नि भी सूर्य की दी हुई थी। स्पष्ट है कि उस समय वह अपने ऊपर सृश्टि नहीं    सम्भाल सकती थी। उसको सृष्टी सम्भालने लायक बनने के लिये तीन बार अपना “कायाकल्प” करना पड़ा, अथवा अवतार लेना पड़ा। तीसरे “अवतार” में उसने धरती रूप धरा। वह कैसे आबाद हुई! इस विषय पर निबन्ध पौणानिक गाथाओं और वर्तमान वैज्ञानिक चिन्तन का मिश्रण है।
 पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, मनुष्य आदि पाँच सार्वभौमिक तत्वो के बने हुये हैं - क्षिति जल पावक गगन समीरा; पन्च तत्त्व बना शरीरा। प्रश्न यह है कि आकाश के अलावा बाक़ी चार “तत्त्व” कैसे आये। इन सब विषयों की चर्चा इस पुस्तक में है।
 हवा का धाम तो अनन्त आकाश है किन्तु पानी के धाम तो धरती मे और धरातल पर हैं। वे समस्त धरती पर बराबरी से बँटे हुये भी नहीं हैं। एक बार नष्ट हो गये तो फिर से बनाये भी नहीं जा सकते। इनकी विस्तार से चर्चा करी गई है।
 पृथ्वी ने सूर्य की दी हुई आग को अपने धरती रूपी अवतार में अपने गर्भ में क़ैद कर लिया। अग्नि वैसे तो सब भस्म कर देती है पर “क़ैद” अग्नि “वैश्वानार” के रूप में जगत की पालनहार है। इसके वैश्वनार रूप धरने के दौरान ही महाव्दीप, पहाड़, पहाड़ी मैदान, नदियाँ, ताल-तलैय्या, खेती योग्य ज़मीन बनी।
    जीवन के लिये पानी परमावश्यक है। इसलिये इस विषय पर विस्तार से चर्चा की गई है। मनुष्य का अवतरण धरती पर कब, कहाँ और कैसे हुआ इस गूढ़ विषय पर प्रारम्भिक जानकारी दी गई है।

 

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डॉ राजेंद्र कुमार

काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से धातु कर्म इन्जीन्यरिंग में वर्ष 1950 में स्नातक होने के बाद शेफील्ड युनीवर्सिटी, यू.के. से M.Met., और Ph.D करने के उपरान्त यूनिव र्सीटी ने उनको D.Met., डिग्री से १९७४ में सम्मानित किया। भारत सरकार ने इनको National Metallurgists Day Award से भी सम्मानित किया १९७९-८० मे ऊनको एस्ट्न यूनिवर्सिटी, बरमिंघम, यू.के. ने Visiting Professor पद पर एक वर्ष के लिये आमंत्रित किया। भारत सरकार ने दक्षिणी अमेरिका के कुछ देशो में भेजे गये अपने प्रतिनिधी मंडल मे सदस्य के रूप में शामिल किया। UNIDO ने विकासशील देशो कि धातुकर्म से सम्बन्धित उद्योग की ज़मीनी हालत से अवगत कराने के लिये भेजा।
    कई वर्षो तक जमशेदपुर की राष्ट्रयीय प्रयोगशाला में साइन्टिस्ट डयरेक्टर रहने के बाद, भोपाल की सीएसआइआर की रीजनल रिसर्च प्रयोगशाला के डायरेक्टर रहे।
 1989 में सेवा निवृत हो जाने के बाद अपनी पुत्री डा. श्रुती माथुर, एमिटी यूनिवर्सिटी, जयपुर के अनुरोध से पर्यावरण और पानी की उपजती कमी की ओर ध्यान आकर्शित करने के काम से जुड़ जाने का दबाव डाला। इस उपलक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य से उसके साथ Water on Earth (Rawat Publishers, Jaipur) और धरती पर पानी (राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादेमी) पुस्तके प्रकाशित करीं। फिर छत्तीसगढ हिन्दी ग्रन्थ अकादमी ने इनकी पुस्तक “पानी की व्यथा, बच्चों ने सुनी कहानी नाना की ज़बानी”, प्रकाशित करी। धातु-कर्म इन्जियरिंग पर अंग्रेज़ी भाषा में भी कई पुस्तके प्रकाशित हुईं हैं।

 

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