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Be Possible like Pace of Universe / संभव हो जाता जग-गति सा

Author Name: Aditya Kumar Daga | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

संभव हो जाता जग-गति सा 

क्यों हम सब एक ऐसे दौर से गुजरते है जंहा, जब हमारे हाथ में कुछ नहीं होता । जितनी भी कोशिश करो होता वही है जो कहीं न कहीं नियति ने निश्चित कर रखा है । यदि आप के प्रयास व प्रयत्न सफल हो भी जाते हैं तो वो इसीलिए क्योंकि नियति ने वो सुनिश्चित कर रखा है और आपको लगता है कि ये आपके प्रयत्नों के कारण हुआ है । कुछ समय बाद आपको ये अहसास होने लगता हैं कि ये तो इसी तरह होना ही था । मगर क्यों ?  

संभव हो जाता जग गति सा : एक मानसिक उद्वेलन है, एक चेतना, एक विचारधारा कि जिस तरह ये जग-गति स्व निर्मित, स्व संचालित, स्व आधारित है ठीक उसी तरह हमारा जीवन स्व संचालित,  स्व आधारित,  स्व निर्मित क्यों नही है । हर प्रयत्न व  प्रयास के बाद भी जग गति सा एक धूरी पर स्थिर क्यों नहीं , क्यों सब कुछ इधर उधर बिखर जाता है, एक मानसिक द्वंद है कि क्यों सब कुछ प्रकृति की प्रवृति सा नहीं : क्यों नही संभव हो जाता जग गति सा ?

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आदित्य कुमार डागा

आदित्य कुमार डागा ने करीब तीस वर्षो तक एक प्रोजेक्ट व मार्केटिंग कंस्लटेन्ट के तोर पर स्वतन्त्र कार्य करते रहे जिस कारण कार्य क्षेत्र की व्यापकता ने विविध कार्यों को करने की प्रेरणा दी साथ ही व्यापक विविध क्षेत्रों के दौरे ने समाज के हर वर्ग को समझने का अवसर दिया तथा  मानव सवेंदनाओ की अनुभूति का चिज्ञण करने का मौका दिया। इसी विशेषता के कारण स्व अध्ययन के साथ साथ स्व आत्मिक अनुभूतियों ने ज्योतिष,  हस्तरेखा, अंकशास्त्र तथा वास्तु-शास्त्र के समग्र पठन पाठन का तथा सलाहकारिता का अवसर दिया। कई ब्लाग लिखे , चित्र – काव्य, काव्य ग्रंथों, कविताओं, कहानियों की कई किताबों की रचना की। 

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