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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palसौंदर्य व आस्था के करीब ...
‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ में कवयित्री ने मानव संवेदनाओं को समेटते हुए 62 कविताओं का समावेश किया है जिन्हें पाँच भागों में विभाजित किया है। वे हैं ‘उपासना’, ‘उद्बोधन’, ‘उत्कर्ष’, ‘उत्सर्ग’ और ‘उद्गार’। डॉ. आरती की कविताओं की विशिष्टता यह है कि वे जीवन की सुंदरता को अनुभव करती हैं, साथ ही सौंदर्य व आस्था को काफी करीब से महसूस भी। उनकी कविताओं में नारी प्रधानता भी दिखती है। डॉ. आरती की कविताओं में विनम्र बोध का भी अहसास होता है। जिसमें शिल्प हिन्दी की सहज लयात्मकता पर संरचित है। कहने का मतलब उनका यह संग्रह अत्यंत सहज, सरल ढंग से मानव अनुभूतियों के अतीत, वर्तमान और भविष्य को कविता के पटल पर जाँचता, परखता है जिसमें उनकी संवेदनाएँ, उनके लेखन, क्षमता व अन्वेषण दृष्टि का आभास दिलाती हैं।
डॉ. आरती 'लोकेश'
उत्तर प्रदेश के एक सुशिक्षित परिवार में जन्मी डॉ. आरती ‘लोकेश’ गोयल ने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर डिग्री में कॉलेज में द्वितीय स्थान व दिल्ली से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर में यूनिवर्सिटी स्वर्ण पदक प्राप्त किया। राजस्थान से हिंदी साहित्य में पी.एच.डी. की उपाधि हासिल की। अट्ठाईस वर्षों से अध्यापन कार्य में संलग्न हैं। पत्रिका तथा कथा-संग्रह संपादन कार्यभार भी सँभाला। डी.पी.एस. शारजाह, यू.ए.ई. में लगभग अट्ठारह वर्ष विभिन्न शैक्षणिक पदों पर कार्यरत रहने के उपरांत न्यू डी.पी.एस. शारजाह में सुपरवाइज़र के रूप में कार्यरत हैं।
डॉ. आरती ‘लोकेश’ की अब तक पाँच पुस्तकें प्रकाशित हैं। सन् 2015 में उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’, सन् 2017 में उपन्यास ‘कारागार’, काव्य-संग्रह ‘काव्य रश्मि’, कथा-संकलन ‘झरोखे’ तथा शोध ग्रंथ ‘रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना’ प्रकाशित हुए हैं। कुल प्रकाशित पाँच पुस्तकों में से दो उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’ तथा ‘कारागार’ बहुत चर्चित हुए हैं।
डॉ. आरती की कई कहानियाँ तथा कविताएँ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ‘शोध दिशा’, ‘इंद्रप्रस्थ भारती, ‘गर्भनाल’, ‘वीणा’, ‘परिकथा’ ‘दोआबा’ तथा ‘मुक्तांचल’ में प्रकाशित हुई हैं। कविता ‘माँ तुम मम मोचन’ साहित्यपीडिया द्वारा पुरस्कृत हुई है। अनेक यात्रा-संस्मरण तथा तथ्यात्मक आलेख पत्रिका ‘प्रणाम पर्यटन’, ‘वीणा’, ‘हिंदुस्तानी भाषा भारती’ तथा अंग्रेज़ी मैग्ज़ीन ‘फ्राइडे’ में प्रकाशित हुए हैं।
डॉ. आरती को लेखन का शौक बाल्यकाल से ही रहा। माता-पिता ने इस शौक को खूब बढ़ावा दिया तो साथ ही सभी संबंधियों का भी अनन्य सहयोग प्राप्त हुआ। पहले-पहल तो विद्यार्थी काल में विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने हेतु लेखन किया फिर एक अध्यापिका के रूप में अपने छात्रों को प्रतिभागी बनाने के लिए लेखन किया। परिजनों, मित्रों तथा सहयोगियों के प्रोत्साहन से विधिवत लेखन कार्य प्रारंभ किया।
डॉ. आरती स्त्री-पुरुष के समानाधिकार की समर्थक हैं। उनकी गद्य-पद्य सभी रचनाओं स्त्री के विचार, उद्गार और अंतर्मन चित्रित होते हैं।
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