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Vivek SreedharAuthor of Ketchup & Curryमित्रो! प्रस्तुत पुस्तक 'मैं कौन हूँ?' पदार्थ-आत्मा-ब्रह्म का एक वैज्ञानिक विश्लेषण है। साधारणतया लोग विज्ञान और अध्यात्म को ज्ञान की अलग-अलग विषय-वस्तु के रूप में प्रस्तुत करते हैं। किन्तु मेरा यह मानना है कि अध्यात्म अवैज्ञानिक हो ही नहीं सकता। पदार्थ की उत्पत्ति के साथ ही विज्ञान और अध्यात्म की शाखाएं एक साथ विकसित हुई हैं।
मित्रो, मैं जीव विज्ञान में स्नातक एवं अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हूँ। जीव विज्ञान के अंतर्गत जब मैंने कोशिका और इसके अन्दर होने वाली गतिविधियों का अध्ययन किया तब मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे में अद्यात्म की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक पढ़ रहा हूँ और अंग्रेजी साहित्य में वर्ड्सवर्थ की ये पंक्तियां-
'And it is my faith that every flower has a soul and it breathes.' पढ़ने के पश्चात हिन्दी कवि सुमित्रानंदन पंत की इन पंक्तियों- 'झूम झूम सिर नीम हिलाती सुख से विह्वल।' से गुजरता हुआ मैं पदार्थ-आत्मा और ब्रह्म का विश्लेषण करने के लिए बेचैन हो गया।
न्यूटन के पहले विश्व के लाखों लोगों ने सेव को पेड़ से नीचे गिरते हुए देखा लेकिन गति के नियमों का प्रतिपादन किसी ने नहीं किया।
बुद्ध के पहले जरा (बुढ़ापा) विश्व के सभी
लोगों ने देखा लेकिन परम शांति के सिद्धांत का प्रतिपादन किसी ने नहीं किया।
प्रस्तुत पुस्तक अध्यात्म को समझने का एक वैज्ञानिक प्रयास है जिसमें कल्पना का मुझे सर्वोत्तम सहयोग प्राप्त हुआ। कल्पना ही समस्त सृजन का आधार है, लम्ब इसका कर्म और कर्ण अपरिहार्य कर्मफल। इस प्रकार होमो सैपियन प्रजाति का प्रत्येक (मनुष्य) अर्धवृत्त (1800) से गुजरता हुआ अंततः पूर्ण वृत्त (3600) यानि दिव्यता को प्राप्त कर लेता है।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि इस पुस्तक को समाज के सभी वर्गों के लोग (कृषक, व्यापारी, शिक्षक, विद्यार्थी, नेता, अभिनेता और वैज्ञानिक) पढ़ना पसंद करेंगे।
एस.के.गर्ग
आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं पाश्चात्य संस्कृति के अध्येता लेखक श्री एस.के.गर्ग जी की पुस्तक “मैं कौन हूँ?” का सारांश पठन एवं मनन का अवसर प्राप्त हुआ। यद्यपि मैं कोई आलोचक या समालोचक नहीं हूँ, किन्तु उक्त विषय पर अभिरुचि के कारण कुछ लिखने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ। वास्तव में धर्म, विज्ञान, आत्मा पदार्थ जैसे गूढ़ एवं दार्शनिक विषय को समझना आसान नहीं है, किन्तु गर्ग जी ने प्रकृतिवादी कवियों वर्ड्सवर्थ तथा सुमित्रानंदन पंत की पंक्तियों, वैज्ञानिक न्यूटन का उद्धरण एवं महात्मा बुद्ध की ज्ञान-पिपासा का सूक्ष्म चित्रण करके विषय-वस्तु को सर्वग्राही एवं रूचिकर बना दिया है। भगवद्गीता ‘नैनं छित्दन्ति शस्त्राणी.........’तथा वैज्ञानिक तथ्य ‘Energy (Soul) is neither created nor be destroyed’ की यथार्थ समन्वयता ‘मैं कौन हूँ?’ में मुझे परिलक्षित हो रही है।
भाषा की सरलता एवं रोचक शैली लेखक की परिपक्वता को दर्शाती है। अतः मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक सभी वर्गों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगी। ‘होनहार विरवान के, होत चीकने पात की यथार्थता निश्चय ही सम्पूर्ण पुस्तक के अध्ययन से प्रमाणित होगी। अतः पुस्तक की अविलम्ब प्राप्ति हेतु लालायित हूँ। विद्वान लेखक श्री गर्ग जी की सतत रचना-कौशल की कामना करते हुए मैं उन्हें शुभाशीष एवं स्नेह प्रदान करता हूँ।
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