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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palयह एक मूल तथ्य है की हमारे दोनों पहलुओं- बौद्धिक एवं व्यावहारिक जीवन में/के अनुभव प्राप्त करने के लिए हमारे समक्ष दो ही आयाम भी उपलब्ध है, पहला है ‘दूसरों के अनुभव से’ जो प्रायः psychologically/कल्पना से संबन्धित है एवं दूसरा है ‘practically/क्रियात्मक’ पहलू जिसमें स्वयं का सम्मिलन अनिवार्य होता है तथा दोनों ही विकल्पों में विवेचन आवश्यक होता है, बहरहाल एक theme में यह पहले किया जाता है तथा दूसरी theme में कृत्यों के पश्चात किन्तु यह कौन निर्धारित करेगा की विवेचन किन विषयों पर करना है? मेरे अनुसार यह आपको निश्चित करना चाहिए क्योंकि कड़वा है किन्तु तथ्य है की- “इस जीवन में आपका आपके अलावा और कोई नहीं है एवं सभी अनन्य है, यदि आप हो तो सब कुछ है अन्यथा जीवन की निरंतरता कभी बाधित नहीं होती है”, यहाँ विषय आपके/हमारे अस्तित्व का है जो पूर्णतः स्वेच्छा, विश्वास, विवेचन तत्पश्चात स्वीकार करने पर निर्भर करता है की यह कैसा होना चाहिए?
तीन ज्ञानेन्द्रियों/sense organs के माध्यम से समाज के कल्याण हेतु गांधीजी के तीन बंदर प्रचलित है किन्तु यदि विषय ज्ञानेन्द्रियों का ही है तो अन्य दो इंद्रियों से संबन्धित बंदर एवं उनके संदेश कहा अथवा क्या है? बहरहाल इनके द्वारा जो संदेश दिए गए है वो यह है की – “बुरा मत देखो, बुरा मत कहो एवं बुरा मत सुनो” जिनका आज ना तो कोई अनुपालन कर रहा है और ना ही अनुसरण, यदि कोई समूह कर भी रहा है तो वह अल्प संख्या में होंगे जिसके मायने भी अपने आप में अल्प ही होते है। वर्तमान में वास्तविकता भिन्न एवं विपरीत है, कदाचित मेरे ‘मन्तव्य’ से आपको इन तीनों के साथ ही अन्य दो इंद्रियों के भी आयाम, संबन्धित संदेश एवं आपके जीवन में विवेचन के उचित विषय प्राप्त हो जाए।
डॉ. प्रतीक राठौर
प्रतीक राठौर सन 1989 से अस्तित्व में हैं, वर्तमान में वे एक दंत चिकित्सक हैं जो इंदौर (मध्य प्रदेश) में अपनी चिकित्सा के प्रति अभ्यास रत हैं, इसके साथ ही वे एक लेखक एवं एक कलाकार भी हैं तथा जीवन के विभिन्न आयामों के प्रति सदैव आशावादी रहे हैं। उन्होंने वर्ष 2012 में अंग्रेज़ी भाषा में एक उपन्यास लिखा था जिसमें जीवन पर एवं जीवन के अनेक पहलुओं से संबन्धित विचारों का संक्षिप्त संस्करण था तथा वर्तमान में यह “मन्तव्य” के रूप में एक अन्य (हिंदी) भाषा में उसी आयाम का विस्तार है, इस पुस्तक की सम्पूर्ण शृंखला तथ्यों एवं जीवन के मूल सिद्धांतों, भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक जीवन के आयामों तथा पौराणिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कई अन्य सम्बंधित विषयों जैसे भक्ति, प्रेम, सम्बंधों आदि पर आश्रित है। वह एक शिव भक्त है किन्तु शिव के प्रति उनकी अपनी एक अलग धारणा है जो उन्हें अधिक उत्तम तथा विश्वसनीय लगती है जिसमें मन्तव्य यह है की जीवन का प्रत्येक आयाम केवल एक इकाई की अभिव्यक्ति है और वह आप स्वयं हो।
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