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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palईश्वर एक ऐसा रहस्य जिसे आज तक कोई नहीं सुलजा पाया। मगर ईश्वर के रहस्यो को सुलजते सुलजते कभी कभी इंसान एक नए ही मोड पर आकार खड़ा हो जाता है जिस मोड पर से इंसान उस राह पर सिर्फ और सिर्फ ईश्वर को ही पता है। इंसान को अपने ईश्वर को पाने के लिए, उन्हे देखने के लिए हर पल अपनी आँखें खुली रखनी होगी। हमारी आँखों पर पड़े धरम और मज़हब के पर्दो को हटाना होगा। न जाने ईश्वर हमे कब और किस रूप मे मिल जाए। धरम और मज़हब के बंधनो से परे जाकर भी ईश्वर का एक बहोत बड़ा रूप है जिसे देखने के लिए हमे इन बंधनो को तोड़ना ही पड़ेगा। शायद इन बंधनो की वजह से ही हम ईश्वर को पा नहीं पाते और धरम और मज़हब जैसे बंधनो मे बंध कर रेह जाते है और ईश्वर को पाने की नाकाम कोशिशें करते रेहते है। ईश्वर के तो अनेक रूप है हम उसे जिस भी रूप मे चाहे देख सकते है, चाहे वो एक दोस्त के रूप मे हो या किसी ओर रूप मे। बस हमारे पास वो नज़र होनी चाहिए ईश्वर को पेहचानने की।
जिग्यासा जाटिया
गुजरात के एक छोटे से शहेर मे रहने वाली जिग्यासा जाटिया जो एक स्कूल टीचर है और अपने व्यवसाय के अनुकूल ही बच्चो को वास्तव मे जो शिक्षा देनी चाहिए, जिस शिक्षा की आज के वक्त मे हमारे देश और पूरी दुनिया को ज़रूरत है उस शिक्षा को लेकर जिग्यासा ने अपनी पेहली ही किताब “सात कदम” की कहानी के द्वारा बख़ूबी तरीके से समाज को और लोगो को धरम और मज़हब का सही अर्थ समजाने की कोशिश की है। आज के सोशियल मीडिया के ज़माने मे जहाँ युवा पीढ़ी इन सब चीजों से दूर जा रही है और धरम और मज़हब के मूल तत्वों से बेखबर होती जा रही है वहाँ धरम और मज़हब जैसी गंभीर और महत्वपूर्ण बाते बताने का और उनका सही मतलब समजाने ने का जिग्यासा ने एक नया रास्ता निकाला है। आज का युवा धरम और मज़हब को किस प्रकार देखता है और किस प्रकार समजता है वो हम जिग्यासा के विचारो के द्वारा जान सकते है। धरम और मज़हब को लेकर आज के ज़माने की पीढ़ियों से चली आ रही विचारधारा से परे जाकर जिग्यासा ने धरम और मज़हब का एक नया रूप दुनिया के सामने अपने विचारों से और इस कहानी के द्वारा रखा है।
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