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Sunao fir se Geeta / सुनाओ फिर से गीता कविता संग्रह

Author Name: Dr. Mukesh Aggarwal | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

प्रस्तुत काव्यसंग्रह 'सुनाओ फिर से गीता' कर्म, भक्ति एवं ध्यान योग पर लिखी कविताओं का संग्रह है। वर्तमान काल मे जब मानव के पास कठिन जीवन के विभिन्न आयामों में संतुलन बनाने की महती जिम्मेदारी हो तो गीता के शास्वत सूत्रों की जरूरत और सार्थकता और भी ज्यादा बढ़ जाती है। इन्ही बातों को ध्यान में रख कर संग्रह की प्रतिध्वनित पहली कविता को ही शीर्षक के रूप में लिया गया है। हर कालखंड में गीता प्रासंगिक है क्योंकि हर व्यक्ति के भीतर एक अर्जुन बैठा है, जो जीवन के पड़ावो को पार करते करते थक कर हार गया है और उसने अपना गांडीवरूपी होंसला निराशा की चाशनी में लपेट कर जीवनरूपी रथ में रख दिया है, ऐसे में जरूरत है उसे एक कृष्णरूपी प्रेरणा की जो उसे ललकार सके, उसकी निशारूपी निराशा को दिनरूपी की आशा में बदल सके।

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डॉ. मुकेश अग्रवाल

डॉ. मुकेश अग्रवाल (14 सितम्बर 1974) 

जन्म स्थान : घरौंडा (करनाल)

शिक्षा : बी.ए.एम.एस., एम.ए. (एम.सी.), 

एल.एल.बी., एल.एल.एम., एम.डी. (ए.एम.),

डी.फार्मा, एन.डी.डी.वाई., पी.जी.डी.एच.आर.एम.

प्रकाशित काव्य-संग्रह: सिर्फ एक मानव हूँ मैं, वक़्त के दरमियाँ, भोर की ओर, कस्तूरी कुण्डल बसे, दुनिया गोल है बाबू , संस्कृति के झरोखे से,  हर घर तिरंगा

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