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Thodi Si Zindagi Jee Li Maine / थोड़ी सी ज़िन्दगी जी ली मैंने

Author Name: Radhika | Format: Hardcover | Genre : Poetry | Other Details

"थोड़ी सी ज़िन्दगी जी ली मैंने..." पिछले बारह सालों की एक लम्बी मियाद से टुकड़ों में चुराई हुई थोड़ी सी ज़िन्दगी है जो नज़्मों के ज़रिये इस सफ़र के उन पहलुओं को बयान करने की कोशिश है जिनसे हम सभी किसी न किसी सूरत में बाबस्ता हैं। ज़िन्दगी की धूप में मुसलसल चलते हुए साथ चलने वाली परछाईं के बदलते आयाम नज़्मों के इस मजमुए को बख़ूबी बयाँ करते हैं। कभी यूँ भी होता है कि बदलते मौसमों में बादल घिर आते हैं और ज़हन की दीवारों पर वहीं कहीं शिगाफ़ से एक नज़्म फूट पड़ती है ठीक वहीं पर जहाँ धूप में पड़ने वाली परछाईं ने साथ छोड़ा था। मैंने ज़िन्दगी को कभी समझने की कोशिश नहीं की करती भी तो शायद कामयाब नहीं हो पाती। हाँ! हर मुमकिन कोशिश की है कि चाहे धूप हो या छाँव... जब तक साँस चल रही है जी पाऊँ... मुकम्मल तो नहीं टुकड़ों में ही सही... थोड़ी सी ज़िन्दगी जी ली मैंने।

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राधिका

धूप तपी जलती धरती पर बारिश की बूँदों-सी मैं, 

आँखो से पढ़ी और समझी जाए ऐसी बोली सी मैं

हर पल खुद को सुलझाती सी, खुद ही में उलझती मैं

जो छोड़ किनारे मदमस्त चली चंचल एक नदी सी मैं

नीले बादल के पीछे उड़ती एक चिड़िया सी मैं

पत्तो पे कभी ना टिक पाती फिसलती ओस की बूँद सी मैं

विस्तृत आसमान के जैसी हूँ समुद्रा से गहरी मैं

एक पल देखो तो सुलझन हूँ एक पल मे पहेली मैं

कभी बचपन का भोलापन हूँ कभी अनुभव की गहनता मैं

हूँ ढृढ़अचल कभी पर्वत सी कभी ममता की सरलता मैं

कभी आँसू सी नमकीन लगूँ मिस्री की डली कभी मैं

जो हो कर भी पूरी ना हो हूँ ऐसी एक ख़्वाइश सी मैं

 

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