Share this book with your friends

Wabasta / वाबस्ता

Author Name: Shantanu Sharma | Format: Paperback | Other Details

वाबस्ता एक एहसास है जो वक्त और हालात के फ़ासलों को भुलाकर उम्रभर, और शायद उसके बाद भी सिलसिले कायम रखता है। ऐसे ही चन्द जज़्बातो को शायरी की जुबां में दर्ज करने की कोशिश है “वाबस्ता”।

तेरी याद आई  और आती चली गयी

शबे-तन्हाई को हसीं बनाती चली गयी

तू करीब था तो हर खुशी पे इख़्तियार था

फिर हर खुशी दूर से मुस्कुराती चली गयी

 

तुम मेरी मोहब्बत को भी महफूज़ ना रख सके

मैंने तुम्हारे दिये ज़ख्मों की भी परवरिकी है

 

चिराग-ए-दिल ने अजब सी ख़्वाहिशें सजा रखी हैं

और ज़माने ने हक़ीक़त की आंधियां चला रखीं हैं

हो सके जो मुमकिन तो रोनी को चले आना

हमने उम्मीदों की हथेली से लौ बचा रखी है

Read More...
Paperback
Paperback 190

Inclusive of all taxes

Delivery

Item is available at

Enter pincode for exact delivery dates

Also Available On

शांतनु शर्मा

शांतनु शर्मा जयपुर के रहने वाले हैं तथा पेशे से वकील हैं एवं पिछले पंद्रह वर्षों से राजस्थान उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायायल में पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने इस दौरान कई सरकारी संस्थाओं एवं संवैधानिक मुद्दों में पैरवी की है। उन्हें पढ़ने का शौक़ है एवं उर्दू शायरी पिता डॉ श्रीकान्त एवं दादा प्रोफेसर चांदमल शर्मा से बतौर विरासत में मिली है। वाबस्ता शान्तनू की तीसरी पुस्तक है, इससे पहले वर्ष 2016 में रफाकतें और 2018 में दरमियां के जरिये वे उर्दू शायरी को किताब में दर्ज करा चुके हैं। शान्तनू का तखल्लुस "मेरी कलम” है।

Read More...

Achievements