यह उपन्यास 2-3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को भोपाल की एक औद्योगिक इकाई-यूनियन कार्बाइड में हुए भीषण गैस कांड को ध्यान में रखकर लिखा गया है । उपन्यास के कथानक में वर्णित अधिकाँश पात्र उस औद्योगिक इकाई के आसपास बसी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उस गैस दुर्घटना का शिकार हुए एंव जिन्होंने उस कथित रासायनिक दुर्घटना के प्रभावों को झेला व भोगा । उपन्यास में उन झुग्गी-झोपड़ियों या गंदी बस्तियों में रहने वाले लोगों की बोलचाल व जीवनशैली की मूल भावना को यथार्थ रूप में प्रस्तुत करने की भरसक कोशिश की गई है । ऐसे में, हो सकता है पात्रों द्वारा बोले गए कुछ वाक्य य शब्द पाठकों को अश्लील या अमर्यादित लगें । पर ऐसे पात्रों की सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं उनकी व्यक्तिगत आदतों एवं रूचियों को ध्यान में रखकर उनके द्वारा उद्धरित शब्दों को जानबूझकर ज्यों-का-त्यों रखा गया है ताकि उनकी चरित्रगत विशेषतायें निष्कलंक, स्पष्ट व यथार्थ रूप रहें । अतः उपन्यास के उन अंशों को कथानक के समग्र प्रभाव के आधार पर जाचाँ जाना उचित होगा ।