हर तरफ पानी का त्राहिमाम मचा हुआ था। हर तरफ हाहाकार और चीख-पुकार मची हुई थी। जिंदगियां एक-एक कर तबाह हो गई। जो गांव उस बाढ़ की त्रासदी से बच गए थे, उनमें से एक सामंतीवारा भी था। यहां के लोगों को इस बात का फक्र जरूर होता है कि वे भाग्यशाली थे, जो उन त्रासदी के कठिन वक्त से उबर गए थे। आज भी इस गांव के चारों दिशाओं में रेत के बड़े-बड़े टीले किसी पहाड़ के जैसे खड़े दिखते हैं। जिसके नीचे न जाने कितने गांव, कितनी जिंदगियां हमेशा के लिए दम तोड़ चुकी हैं। यह बात अलग है कि यहां अब कई 100 सालों के बीत जाने के बाद कुछ पौधों ने जमना शुरू कर दिया है।