यह पुस्तक लाल सिंह चड्ढा के अतार्किक बहिष्कार का विश्लेषण करने के पश्चात लिखी गई है। मैंने इस फिल्म को 19 अगस्त 2022 को जन्माष्टमी के अवसर पर सरकारी अवकाश के दौरान देखा था। इसमें मैंने कुछ भी ऐसा नहीं पाया जो कि अनुचित हो। यह फिल्म इतिहास में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए तो बेहद ही महत्वपूर्ण थी। क्योंकि यह हमें भारत के पिछले 100 वर्षों के इतिहास का बोध कराती है। प्रथम विश्वयुद्ध की घटनाओं से लेकर 21 वीं सदी के दूसरे दशक तक की लगभग सभी प्रमुख घटनाओं का उल्लेख इस फिल्म में किया गया है। किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुछ लोगों ने आमिर खान का विरोध करने हेतू कुछ लोगों को प्रेरित किया और इस फिल्म में अंतर्निहित तथ्यपरक विशिष्ट ज्ञान से उन्हें वंचित रखने में सफलता प्राप्त की। शायद जिन लोगों ने यह फिल्म नहीं देखी, अगर वे इसे देखते तो वे अपने संकीर्ण अथवा विरोधाभासी विचारों में थोड़ा बहुत सकारात्मक परिवर्तन ला सकते थे। लेकिन शायद विधाता को कुछ और ही मंजूर था। शायद फिलहाल भी भारत के समस्त लोगों के मस्तिष्क की मानसिक गुलामी की बेड़ियों के टूटने का उचित समय नहीं आया है। क्योंकि इसके लिए आंतरिक जागृति का होना बहुत आवश्यक है। शायद हमें भारत की विशाल जनता के द्वारा शुरू किये जाने वाले बौद्धिक पुनर्जागरण की शुरुआत का और भी इंतजार करना होगा।
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