डॉ मुकेश अग्रवाल व्यवसाय से डॉक्टर हैं, व्यवहार में मनुष्य ओर समाजसेवी हैं, ह्रदय से कवि हैं। सौम्यता इनका सबसे बड़ा आभूषण है। कुछ वर्ष पूर्व इनका पहला कविता संग्रह 'सिर्फ एक मानव हूँ मैं ' आया था और चर्चित रहा था।
पिछले एक वर्ष से हमारा देश कोरोना नामक संक्रामक रोग से जूझ रहा है। इसने हमारे स्वास्थ्य ही नहीं, हमारी दिनचर्या, हमारे संबंधो, हमारी प्रतिदिन की 'उड़ान' को बहुत प्रभावित किया है। बाजार सूने हैं, जबकि अस्पताल और श्मशान घाट जीवित और मुर्दों से पटे पड़े हैं। डॉ मुकेश अग्रवाल ने अपने इस कविता-संग्रह में कोरोना के सभी पक्षों को तुकबंदी के साथ सामने लाने का उपयोगी प्रयास किया है। बच्चों, युवा पीढ़ी, वृद्धों पर कोरोना के प्रभावों को सरल-सहज भाषा में उकेरा गया है। इस विकट काल में कवि हमे सावधान भी करता है और समाधान भी सुझाता है। कोरोना काल में डाक्टरों और प्रशासन की भूमिका, मजदूर वर्ग की परेशानियाँ, कोरोना काल में इटली द्वारा स्थापित आदर्श प्रबंधन आदि का कवि ने संतुलित चित्रण किया है। इनके अतिरिक्त इस वर्ष की अन्तर्राष्ट्रीय प्रमुख गतिविधियों को भी उकेरा है। इनमें चीन की विस्तारवादी नीति, अमेरिका की रंग भेद की नीति, युद्ध आदि का विरोध किया है। युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।
युद्ध कोई हो जीवन का,
केवल विनाश ही लाता है।
कवि कोरोना-काल में जीने के नए मार्ग सुझाता है, जो प्रशंसनीय है। आशा है, पाठक इस कृति को भी भरपूर स्नेह देंगें। कवि मुकेश अग्रवाल की कलम इसी तरह चलती रहे, नई-नई मंजिलें छूती रहे - ऐसी शुभ कामना करता हूँ।