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Submitted to Contest #4 in response to the prompt: 'You break the one unbreakable rule. What happens next? '

🌸 प्रस्तावना (Hello Style Introduction)


"Hello! मेरा नाम एक नर्स है। हर दिन सफेद कोट पहनती हूँ, लेकिन मन के भीतर हज़ारों रंगों की कहानियाँ छुपी हैं।

मैं हर दिन जिंदगी से लड़ते मरीजों की आँखों में उम्मीद देखती हूँ, और हर रात अपने आँसुओं को अपनी तकिए के नीचे छुपा लेती हूँ।

ये डायरी मेरी है — लेकिन इसमें आप भी मिलेंगे, आपके अपने जैसे लोग, जिनकी कहानियाँ ICU, वार्ड और ओटी से निकलकर इस किताब के पन्नों तक आई हैं।"


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🩺 Chapter 1: पहली ड्यूटी, पहला डर

6:30 AM। मैं हॉस्पिटल के बाहर खड़ी थी। हाथ काँप रहे थे, दिल तेज़ धड़क रहा था। यह मेरी पहली नाइट ड्यूटी थी। नर्सिंग स्कूल में किताबों में बहुत कुछ पढ़ा था, लेकिन ICU की गंध, मॉनिटर की बीप और पेशेंट की साँसों की लड़ाई किताबों से अलग होती है।

“सिस्टर, पेशेंट का बीपी ड्रॉप कर रहा है!” यह आवाज़ आई और मैंने दौड़कर पहली बार किसी को इमरजेंसी दवा दी...

उस रात मैंने जाना — एक नर्स सिर्फ इंजेक्शन नहीं लगाती, वह किसी की माँ, बेटी और कभी-कभी भगवान जैसी उम्मीद भी बन जाती है।


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❤️ Chapter 2: उसने मेरा हाथ पकड़ लिया था...

वार्ड नंबर 5 में आज फिर एक नया मरीज आया था — नाम था "रामलाल जी", उम्र लगभग 70 साल। चेहरा बुझा-बुझा था, साँसे धीमी थीं, पर आँखें... आँखों में कोई बेचैनी नहीं, सिर्फ इंतज़ार था — किसी अपनापन का।

मैं हर 2 घंटे बाद उनकी निगरानी करने जाती थी। दवाइयाँ देती, BP चेक करती, और चुपचाप लौट आती थी।

तीसरी रात थी। मैं उन्हें नींद में समझ रही थी, पर जैसे ही मैंने कंबल ठीक किया, उन्होंने धीरे से मेरा हाथ पकड़ लिया।

बोले — "बेटा... तू रोज़ आती है, दवा भी देती है, प्यार भी। अब कोई अपना भी नहीं आता... बस तू ही दिखती है जैसे बेटी हो मेरी।"

मेरे गले में कुछ अटक गया। मैं चाहकर भी कुछ बोल नहीं पाई। बस मुस्कुरा दी — और उन्होंने मेरी हथेली को हल्का सा थपथपाया।

उस रात पहली बार लगा — नर्स होना सिर्फ प्रोफेशन नहीं है, ये तो किसी के अधूरे रिश्तों को पूरा करने का नाम है।


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🌧️ Chapter 3: एक माँ की चीख

डिलीवरी वार्ड की उस रात को मैं कभी नहीं भूल सकती। बाहर बारिश थी और अंदर एक माँ की चीख गूंज रही थी।

उसका बच्चा जन्म से पहले ही दुनिया छोड़ चुका था। मैं उसके सिरहाने खड़ी थी, और उसकी आँखों में सिर्फ एक सवाल था — "क्यों?"

मैंने उसका हाथ पकड़ा। उसने मुझे देखा, जैसे जवाब मुझसे ही चाहिए हो। पर मेरे पास कोई जवाब नहीं था।

उस दिन मैं पहली बार ड्यूटी से बाहर निकलकर छत पर जाकर रोई थी। एक नर्स होकर भी मैं सिर्फ इंसान थी — टूटने वाला इंसान।


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🌻 Chapter 4: ड्यूटी और दुआ के बीच

एक बच्चा भर्ती था — 6 साल का, नाम था "आरव"। डेंगू की हालत में ICU में भर्ती था। डॉक्टर्स को उम्मीद नहीं थी। माँ हर पल भगवान को पुकार रही थी।

मैंने आरव के सिर पर हर रात हाथ फेरा और अंदर ही अंदर दुआ माँगी।

तीन दिन बाद जब उसकी आँखें खुलीं, तो उसने सबसे पहले मुझसे पूछा — "आप मेरी माँ हो?"

मैं मुस्कुरा दी। शायद मैं सच में कुछ पलों के लिए माँ बन गई थी।


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🌈 Chapter 5: आखिरी पन्ना

इस डायरी में बहुत कुछ बाकी है, लेकिन कुछ दर्द ऐसे होते हैं जो शब्दों में नहीं ढलते। कुछ आँसू ऐसे होते हैं जो सिर्फ अंदर गिरते हैं।

मैं नर्स हूँ — दिन-रात ड्यूटी करती हूँ, लेकिन दिल कहीं पीछे रह जाता है।

अगर आप इस किताब को पढ़कर एक नर्स की आँखों से दुनिया देख पाए, तो ये मेरी सबसे बड़ी जीत है।

धन्यवाद।

🌙 Chapter 6: आज की ड्यूटी — चुपचाप सह जाना

इस अध्याय में दिखाया गया है कि कैसे एक नर्स सिर्फ दवाई नहीं देती, बल्कि दर्द भी चुपचाप बाँटती है — बिना किसी को बताए।

अगर आप चाहें तो कल की ड्यूटी पर एक और अध्याय लिख सकते हैं, जैसे:

"डॉक्टर की डाँट और मेरी चुप्पी"

"मरीज की मुस्कान ही मेरी सैलरी है"

"रात के दो बजे की प्रार्थना"

🌺 Chapter 8: जब मरीज ने मेरी शादी के लिए दुआ की

वार्ड में एक बुजुर्ग महिला भर्ती थीं — शकुंतला देवी। उम्र थी करीब 75 साल। बात-बात पर मुस्कुरातीं, पर बीमारी अंदर से तोड़ रही थी। मैं हर दिन उनकी सेवा करती, बाल बनाती, दवाई देती और कभी-कभी दो मिनट हँसी-मज़ाक भी कर लेती।

एक दिन उन्होंने मुझे अचानक पूछ लिया — "बेटा, तू शादीशुदा है क्या?"

मैंने हँसकर कहा — "नहीं दादी, अभी नहीं।"

उन्होंने मेरी हथेली पकड़ी और बोलीं — "तेरे जैसी प्यारी लड़की के लिए मैं रोज़ भगवान से दुआ करूँगी। तू बहुत खुश रहे।"

उनकी आँखों में आशीर्वाद था, और मेरे दिल में एक सुकून — जो शायद किसी डॉक्टर की तारीफ से भी बड़ा था।

एक नर्स को हर दिन थैंक यू नहीं मिलता, लेकिन जब कोई मरीज आपके लिए दिल से दुआ कर दे — वो एहसास शब्दों से परे होता है।





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