सुनहरी

shilpisheen
वीमेन्स फिक्शन
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सुनहरी

हाँ मुझे सूरज से प्यार है उसकी तपिश को अपने ऊपर लेना मुझे बेहद पसंद है सुबह से लेकर शाम तक मैं रह सकती हूँ उसके साथ चाहे वो मुझे कितना भी सताये। नहीं नहीं सूरज मेरे बॉयफ्रेंड का नाम नहीं है। जी ठीक समझे आप वही सूरज जो हमारी पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर टँगा है वहीं अटका है मेरा दिल। सुबह भाग कर जाती हूँ छत पर ताकि उस लालिमा का कण भर भी मुझसे छूट न जाए जो बिखेरता है वो सारी क़ायनात पर जिससे हमें ऊर्जा मिलती है जीवन को गति मिलती है। मैं सारे दिन उस आग को अपने अंदर समाये रहती हूँ महसूसी रहती हूँ और साँझ ढले चटक नारंगी रंग के साथ वो मुझसे मुस्कुराता हुआ विदा लेता है फिर से मिलने के वादे के साथ। हाँ चटक नारंगी रंग से याद आया मुझे न आसमान के सूरज के साथ धरती पर उगने वाले पलाश के फूल भी बहुत प्यारे लगते हैं बहुत बहुत बहुत ज़्यादा। देखा है न कैसे समय आने पर जंगल में आग की तरह फैल जाते हैं। एक दिन मैं जब माँ पापा के साथ कार में जंगल से गुज़र रही थी तो कार रुकवा के ढेर सारे पलाश के फूल अंदर भर लिए। कितनी पगला रही थी उन रेशमी मखमली फूलों को छू कर ..... कुछ ही देर में पूरी कार में कीड़े-मकोड़े घूमने लगे। जो फूलों में छुपे बैठे थे टहनियों से चिपके पड़े थे। कहा था ना जंगली फूल हैं पापा लगे डांटने। मैं सहम गई आँखों में आँसुओं की नमी आ गयी।

सारे फूल समेटे आहिस्ता से रख दिये छोटी उगी हुयी घास में थोड़ा सा पानी भी छिड़क दिया अब ये जल्दी ही मर जाएंगे न पेड़ से अलग होकर। जड़ों से उखड़ा पेड़ और डाली से टूटा फूल कितनी देर तक जिंदा रह सकता है भला। लड़कियों का जीवन भी कभी-कभी ऐसा ही हो जाता है। माँ की बात याद आ गयी। छोटी है अभी परिपक़्व नहीं है समझ जाएगी। मैं कार में उनींदी सी हो रही थी कुछ शब्द मेरे कानों में पड़ रहे थे। कब बड़ी होगी स्वप्निल संसार में विचरती रहती है पापा के स्वर में चिंता थी।

एक उम्र होती है न हम सारी दुनिया को अपनी मुट्ठी में करना चाहते हैं सबको अपने जैसा बनाना चाहते हैं फिर धीरे-धीरे सब अपने-आप शांत होने लगता है अंदर तक ... माँ समझा रही थीं पापा को। उठो बिटिया घर आ गया उन्होंने मेरे माथे को हल्का सा चूमा मैंने अपनी बाँहे उनके गले में डाल दीं।

बस हो ली तुम्हारी बिटिया बड़ी पापा हँसने लगे।

कुछ ही देर में मैं अपने कमरे में नरम मुलायम बिस्तर पर थी।

खिड़की से हल्की सी रोशनी अंदर आ रही थी मैंने पर्दा हटाया और चट गोल चाँद मुझे अपनी ओर ताकता नजर आया। ओह! कितना आकर्षक! मैंने इसे पहले क्यूँ नहीं देखा।

चाँद मुझे तुमसे प्यार हो गया है हाँ सच। एक हवाई चुम्बन उसकी और उछाल दिया। फिर सूरज का क्या होगा जल जाएगा मारे जलन के। नहीं नहीं वो तो पहले से ही जल रहा है हमेशा से .... वही उसकी ताकत भी है। हाँ मुझे जला सकता है सनस्क्रीन लोशन भी नहीं लगाती मैं। प्यार में स्क्रीन कैसी। उफ्फ कैसी-कैसी बातें आ रही है दिमाग में दादी माँ जब तक जिंदा थीं हमेशा कहती रहीं मेरी दार्शनिक बावली बच्ची। ये दर्शनशास्त्र क्या होता है मुझे रत्ती भर नहीं पता। वनस्पति शास्त्र की ज्ञाता बनना चाहती हूँ। बॉटनी मेरा फेवरेट सब्जेक्ट है। 12th के बाद B.Sc फिर M.Sc उसके बाद Ph.D बस इतना ही सोचा है मैंने। सारा दिन की थकान फूलों की खुशबू नवेला दोस्त चाँद और .... और मैं नींद के आगोश में थी। अचानक कान-नाक में गुदगुदी सी हुई मैंने सर को हौले से झटका और सो गई फिर हल्की सी छुअन और जकड़न .... मैं किसी सम्मोहन पाश में थी बिस्तर में नमी और फूलों की खुशबू बढ़ने लगी। काँस मेरे आस-पास छा गया घास के नीले फूलों ने मेरे बालों को ढक लिया चंपा, चमेली, मोगरा, कुमुदिनी, गुलबहार, सदाबहार, कनेर, जूही, बेला नलिनी सब लिपटे जा रहे थे और मैं छुई मुई सी चुप कर पड़ी रही। माँग लो एक वरदान कानों में एक फुसफुसाहट सी आयी। क्या ... ? वरदान ...? मैं अचकचाई ... ओके ... विश ... हाँ विश ... ठीक है मैं खूब लिखना चाहती हूं। हाँ तो शुरू करो ... अभी ......? बिल्कुल अभी इसी पल .... पर मेरे पास इस समय .... मेरा असमंजस ख़त्म नहीं हो रहा था और गोल-मटोल चाँद मेरे सामने था। हाय कित्ता क्यूट है ये।

तुम्हारा पसंदीदा सुनहरा पीला कैनवास तुम्हारे पास है लिखो और मनचाहे रंगों से भर दो इसे। सूरजमुखी की टहनी उठाई और लिखना शुरु किया मैंने

तुम .... सब .... बड़ी .... समझ .... वाले ....

फूलों ने अपने सारे रंग बिखेर दिये कैनवास पर फिर सब कुछ गडमड।

मैंने अपने हाथ-पैर हिलाये चाँद, फूल, खुशबु, कविता सब गायब। ओहो कितनी लम्बी रात थी और वो सपना .... मैं मुस्कुरा रही थी पर अब मैं सब समझ गयी हूँ सूरज, चाँद, धरती, आसमान, नदी, पहाड़, फूल, भँवरे सब इस जीवन के रंग हैं सबके साथ घुलना-मिलना होगा साथ ले कर चलना होगा। लो हो गयी न मैं बड़ी .... समझदार। माँ-पापा को ये खुश खबरी देनी होगी और हाँ इस जन्म-दिन पर सिर्फ गुलाबी नहीं सारे रंग जश्न में शामिल होंगे।

सूरजमुखी की टहनी से चाँद के कैनवास पर लिखी कविता अब डायरी में उतर आयी है।

तुम सब बड़ी समझ वाले,

मैं तो हूँ बेकायदा।

मैं करूँ अपने मन की,

तुम देखो नुकसान-फायदा।

तुम लोगों का सही ग़लत

मुझे कब समझ आया है

फूलों संग काँटों से भी

मैंने घर सजाया है।

मुझे लगें रास्ते अच्छे

तुम्हे मंज़िलों की तलाश है,

तुम्हे भले-अच्छे चाहिये

मुझे बुरे से भी आस है।

तुम खोजो सबके मन का

मैं खोजूँ अपने आप को,

न जियूँ जो इस तरह

तो खो दूँ अपने-आप को।

हाँ हिस्सा हूँ इस दुनिया का

मैं ऐसी ही बेकायदा ...

दे सको तो दे दो यहाँ से

थोड़े सी ज़मीं थोड़ा आसमाँ ... ।

माँ बहुत खुश और पापा आश्चर्य चकित हैं। प्यार से मेरे माथे को चूमकर बोले मेरी मासूम परी ...

अरे मैं आपको अपना नाम तो बताना भूल ही गयी सुनहरी ... ।

शिल्पी

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