हाउसकीपिंग ब्वॉय

रोमांस
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जब हम पहली बार घर को छोड़ बाहर निकलना चाहते हैं। वो जीवन का अगला पड़ाव शुरू होने का संकेत होता है। हमें आभास होने लगता है कि बहुत सारी चीजें अब बदलने बाली हैं पर ये बदलती हुई चीजें किस रूप में सामने आएगी ये कोई नहीं कह सकता।ऐसा ही कुछ विशाल मिश्रा के साथ हुआ।

मैनपुरी शहर के एक गाँव आलीपुर खेड़ा के विशाल मिश्रा माँ-बाप के लाख मना करने के बाद भी एक दिन घर से तो बड़े जोश में दिल्ली आ गए थे पर जैसा सोचकर आए थे वैसा सब कुछ उनके साथ हुआ नहीं।
अब यहाँ चीजों को बदलने की आहट उन्हें साफ-साफ सुनाई दे रही थी।महीनों दिल्ली में तमाम ऑफिसों की खाक छानते- छानते उनका जोश धीरे-धीरे ठण्डा पड़ने लगा था। बहुत जल्दी ही घर याद आने लगा था।

अपनी अब तक की जिंदगी में वह ऐसे कभी अकेले नहीं रहे थे। जिस किराये के कमरे में रह रहे थे अब वो उन्हें काटने को दौड़ता था । लगता था ये उन्हें अभी खा जाएगा। विशाल मिश्रा को माता, पिता, दोस्त, पड़ोसी, गाँव की यहाँ बहुत याद आ रही थी। याद करते-करते कभी-कभी तो बच्चों की तरह रोने और बिलखने लगते। पर नहीं, ऐसे रोने से तो सपने पूरे होने से रहे।

रोज की तरह उस दिन भी तड़के ही विशाल मिश्रा नौकरी की तलाश में गुरुग्राम निकल चुके थे। एंबिएंस मॉल अभी खुला नहीं था। सो वह मॉल के बाहर ही एक बैंच पर बैठ गये और जब बैठे बैठे नहीं रहा गया तो वहीं टहलने लगे।
मॉल के पास ही बना हुआ था दिल्ली एन.सी.आर. का मशहूर पांच सितारा होटल द लीला एंबिएंस ।विशाल मिश्रा को अचानक ही मन में विचार आया कि अगर यहाँ काम मिल जाए तो जिंदगी बन जायेगी ।
विशाल मिश्रा ने एंबिएंस मॉल में जाने का विचार त्याग दिया और 'द लीला एंबिएंस' के बाहर एक जगह पर खड़े होकर होटल के एन्ट्री गेट पर नजरे गड़ा दी।
करीब आधे घण्टे के बाद विशाल मिश्रा ने देखा कि काला कोट पेन्ट पहने एक लम्बा, तगड़ा और बेहद खूबसूरत व्यक्ति होटल से बाहर निकला और बाहर खड़े स्टाफ-मेम्बर्स को कुछ निर्देश देने लगा।आखिरकार विशाल मिश्रा ने हिम्मत की और सीधे उस व्यक्ति के पास पहुंच गये।
"सर काम की तलाश में हूँ।"
विशाल मिश्रा ने याचना भरी नजरों से देखते हुए कहा।
उसने ऊपर से नीचे तक विशाल मिश्रा को घूरा।उसका परिचय पूछा फिर कुछ सोचते हुए बोला
-"मैं हाउसकीपिंग डिपार्टमेंट में सुपरवाइजर हूँ मिस्टर विशाल मिश्रा हमारे डिपार्टमेंट में एक जगह खाली है चाहो तो ज्वाइन कर सकते हो।"
हाउसकीपिंग डिपार्टमेंट का नाम सुनते ही विशाल मिश्रा के चेहरे पर मायूसी छा गई और
वह व्यक्ति अपनी टाई को ठीक करते हुए अंदर चला गया।
एक गहरे द्वंद्व मे था विशाल मिश्रा।क्या करे क्या न करे?मुश्किल से एक नौकरी सामने आई है,पर घर पर क्या कहेगा,गाँव के प्रख्यात पंडित के बेटे को ये साफ-सफाई वाला काम! नहीं-नहीं..ये ठीक नहीं...पर और नौकरी भी तो नहीं ,ठीक है ज्वाइन कर ले विशाल,कुछ दिनों बाद दूसरी नौकरी मिल ही जाएगी ।
आखिर लम्बी जद्दोजेहद के बाद विशाल मिश्रा हाउसकीपिंग विभाग के सुपरवाइजर के केबिन में जाकर खड़ा हो गया।
-"सर मुझे आपके अंडर काम कर के खुशी होगी।"
" ठीक है अपना रिज्यूमे मुझे दे दो मैं एच.आर. ऑफिस में उसे सबमिट कर दूंगा। कल से तुम्हारी ज्वाइनिंग है।सुबह ठीक आठ बजे ज्वाइन करो"

अगले दिन से विशाल मिश्रा की ड्यूटी शुरू हो गई।अब काम तो काम था होटल में अतिथियों की जूठन उठाने से लेकर वॉशरूम की साफ-सफाई सब करनी पड़ रही थी ।
वॉशरूम की फर्श और दीवारों को साफ करते हुए विशाल मिश्रा को बड़ी बेचैनी होती। वेस्टर्न टॉयलेट कमोड को साफ करते हुए बड़ी घिन आती थी। एक दो बार तो वॉशरूम मैं ही घबराहट में उल्टी हो गई।
मगर आखिर में धीरे-धीरे सारे काम आदत में शुमार होते चले गए।

एक दिन होटल की सीढ़िया साफ करते हुए गलती से विशाल मिश्रा हाउसकीपिंग डिपार्टमेंट में ही काम करने वाली सुलक्षणा से टकरा गए और ऐसा टकराए कि सुलक्षणा अपना दिल ही हार बैठी।उस दिन के बाद तो सुलक्षणा विशाल मिश्रा के आस-पास आने के बहाने ढूंढ़ती ही रहती थी।विशाल मिश्रा भी सुलक्षणा के इरादों से अनजान नहीं थे। मगर सुलक्षणा विशाल मिश्रा के लिये उसी रास्ते जैसी थी जहाँ जाना ही नहीं तो उसके कोस क्यों गिनना।
"मिश्रा जी मुझसे इतना दूर क्यों भागते हो..?
बच्चे तो हो नहीं जोकि कुछ समझते ना हो "
मुझे पता है यहाँ के स्टाफ ने जरूर आपको बताया होगा।
मैं दलित हूँ कहीं इसलिए तो नहीं..?
सुलक्षणा विशाल मिश्रा के पास आकर बोली।
विशाल मिश्रा हाँ ही कहना चाहते थे मगर उस समय कह नहीं पाए।
उस दिन विशाल मिश्रा की शिफ़्ट खत्म होने में सिर्फ दो घण्टे रह गये थे
वॉशरूम को एक तरफ से विशाल मिश्रा ने साफ करना शुरू कर दिया। लास्ट में वेस्टर्न टॉयलेट कमोड ही साफ करने को बचा था। उन्होंने देखा कमोड के पीछे चमकीले कपड़े की थैली में कुछ बंधा हुआ पड़ा था विशाल मिश्रा को जिज्ञासा सी हुई क्यों ना इसे खोल कर देखा जाए.
खोल कर देखा तो चौंक गए ।
उसमें छोटे-छोटे चार चमकीले पत्थर थे जो हीरे जैसे लग रहे थे।
मिश्रा को अचानक से याद आया गुजरात के सूरत शहर में उनके गाँव के कई लड़के हीरों की कटाई का काम करते हैं लड़के जब छुट्टी पर गाँव आते थे उन्हें असली और नकली हीरे के फर्क को बहुत अच्छी तरह समझाते थे। उस अनुभव से विशाल मिश्रा की छठी इन्द्रिय कह रही थी यह हीरे ही है। जो कोई मामूली कीमत के नहीं है। अगर सही सलामत इन्हें बाहर निकाल ले गये तो जिंदगी के सब कलेश दूर हो जायेंगे और डर यह भी लग रहा था अगर कहीं पकड़े गये तो हो सकता है कि जान से भी जायें विशाल मिश्रा को पता था होटल में बहुत सारे स्मगलर, गुण्डे, बदमाश भी आते हैं क्या पता उन्हीं में से किसी के हों ।
आख़िरकार बिना देर लगाये विशाल मिश्रा ने चमकीले पत्थर अपनी जेब में रख लिये और कमोड साफ करने लगे।
उस दिन भी सुलक्षणा विशाल मिश्रा की वजह से वॉशरूम का चक्कर लगाने चली आयी।
सुलक्षणा ने देखा विशाल मिश्रा पसीने से लथपथ थे और कांपते हुए हाथों से वॉशरूम की फर्श पर पोंछा लगा रहे थे। सुलक्षणा भांप गई कि कोई तो बात है। इतना नर्वश उसने विशाल मिश्रा को कभी नहीं देखा था।
" मिश्रा जी आपकी तबीयत तो ठीक है न आपके हाथ पैर कांपते से नजर आ रहे हैं।क्या बात है? "विशाल मिश्रा की ऐसी हालत को देख कर सुलक्षणा बहुत घबरा गई थी।
" कुछ नहीं सुलक्षणा आज तबीयत ठीक नहीं है।
"कोई बात नहीं मिश्रा जी अभी चले जाओ घर मैं सुपरवाइजर से बात कर लेती हूँ, मुझसे तो आप सेवा करवाओगे नहीं , नहीं तो मैं आपके घर चली चलती।"
सुलक्षणा अपनी पूरी बात जब तक कर पाती तभी हड़बड़ी में विशाल मिश्रा की जेब से चमकीले कपड़े की थैली निकलकर जमीन पर गिरी जिसमें से एक चमकीला पत्थर बाहर निकल कर आ गया था।
चमकीले पत्थर को देख सुलक्षणा की आंखे खुली की खुली रह गई। देखते ही सुलक्षणा के मुंह से निकला यह तो असली डायमंड लग रहा है।

" तो ये बात है मिश्रा जी मैं तो आपको बहुत सीधा समझ रही थी आप तो बड़े कांडी आदमी हो।" कुछ सोचते हुए सुलक्षणा बोली "
बिना देर लगाए सुलक्षणा ने एक बहुत बड़ा फैसला ले लिया था।
"मिश्रा जी मैंने कहीं पढ़ा था ज़ंग और प्यार में सब जायज होता है। अब सीधे मुद्दे पर आते हैं।मैं बहुत जिद्दी हूँ। अब आप इसे सही समझना या गलत।या तो आप मुझसे शादी करने को तैयार हो जाओ या फिर जिंदगी भर जेल में सड़ने को तैयार हो जाओ। मैं आपकी शिकायत जनरल मैनेजर को करने जा रही हूं आपके पास सिर्फ 15 मिनट हैं जो दिल करे हाँ या ना का जवाब दे देना।"
विशाल मिश्रा की हालत उस समय काटो तो खून नहीं जैसी हो चुकी थी।
विशाल मिश्रा ने सुलक्षणा से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि
" हम यहाँ से बाहर निकलकर बात करें क्यों बखेड़ा खड़ा कर रही हो
पहले पता तो लगे कि यह हीरे असली ही है।"
" मैं कुछ भी नहीं सुनना चाहती। बहुत सह लिए तुम्हारे नखरे।"
" जाओ जो भी दिल में आये वो कर लो जाकर लेकिन मैं तुमसे शादी नहीं कर पाऊंगा।"
विशाल मिश्रा को भी गुस्सा आ गया था।
सुलक्षणा बोली "ठीक है कोई बात नहीं "और वह वॉशरूम से बाहर चली गई। विशाल मिश्रा ने बहुत देर तक और दूर तक का सोचा और फैसला लिया कि सुलक्षणा से शादी करने में ही भलाई है। न करने का मतलब बहुत बड़ी मुसीबत मोल लेना। किसी हाल के नहीं रह जाएंगे और लड़की की कौन सी जाति होती है जिसके घर ब्याही वो ही उसकी जाति हो जाती है।
विशाल मिश्रा को इतना तो पता था सुलक्षणा इतनी तो बेवकूफ नहीं है जो सीधी जनरल मैनेजर के पास चली जाए।
विशाल मिश्रा तुरंत वॉशरूम से बाहर निकले और सुलक्षणा को होटल में ढूंढ़ने लगे। सुलक्षणा होटल की लॉबी में थी।
विशाल मिश्रा ने अपने पास सुलक्षणा को बुलाने का इशारा किया।
" स्टाफ कैन्टीन के पास जो सीढ़ियाँ हैं तुम वहां मुझसे मिलो मैं तुम्हारा वहां इंतजार करूंगा। "
विशाल मिश्रा ने सुलक्षणा से धीरे से कहा।
"हां मिश्रा जी तो फिर आपने क्या फैसला लिया है..?।"

विशाल मिश्रा ने मुँह से कोई जवाब नहीं दिया ।
बिना देर लगाये सुलक्षणा को आगोश में भर लिया। आगोश में भरते ही सुलक्षणा की आंखों में आंसू आ गए थे।
"मिश्रा जी आपको क्या लग रहा था मैं आपकी शिकायत क्या सच में जनरल मैनेजर से कर देती।" सुलक्षणा भर्रायी आवाज में बोली।
" नहीं मुझे पता था तुम ऐसा नहीं करोगी ।"
इसे विशाल मिश्रा की किस्मत समझो या इत्तेफाक एक हफ्ता हो गया था। होटल में चमकीले पत्थरों का कोई जिक्र नहीं हुआ था।
जो सच में ही हीरे थे।
बहुत सी माथापच्ची के बाद गांव के एक लड़के के जरिए जो सूरत में हीरों की कटाई का काम करता था।दो हीरे अच्छे खासे दामों में बिक गए थे।
"अब समय आ गया है कि हम अपने-अपने परिवार को सूचना दे दें।" सुलक्षणा गंभीर होते हुए बोली।
एक दिन हिम्मत करके धड़कते हुए दिल से
विशाल मिश्रा ने गाँव फोन किया, फोन उनकी माँ ने उठाया।
माँ को विशाल मिश्रा ने सुलक्षणा से शादी और घर के बारे में सारी बाते बतायीं ।
माँ हैरान थी -" क्या बकवास कर रहे हो, दिल्ली जाकर तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया। अपने कुल और वंश में दाग लगवाओगे क्या? पिताजी को पता लग गया तो जहर खा लेंगे। सीधे घर चले आओ, बहुत हो गई तुम्हारी दिल्ली की नौकरी-वौकरी।"-विशाल की माँ गुस्से में चिल्लाते हुए बोली।
विशाल मिश्रा इतने दिल के कहां मजबूत थे वो रोने लगे
माँ,आप ऐसा मत बोलो।
विशाल मिश्रा ने रोते हुए फोन काट दिया।
उसी समय विशाल मिश्रा ने सुलक्षणा के आगे हाथ जोड़ लिये।

" इस शादी से मैं खुश नहीं रह पाऊंगा,सुलक्षणा मुझे माफ कर दो मैं ये शादी नहीं कर पाऊंगा। ये घर और बचे हुए पैसे सब तुम्हारे मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।"

इतना सुनते ही सुलक्षणा ने गुस्से से अपना आपा खो दिया।वो सीधी कमरे में गई और वहाँ से बचे हुए दोनों हीरे निकाल कर विशाल मिश्रा के मुँह पर फेंक कर चीखते हुए बोली ।
"चला जा यहां से मैं तेरी अब एक मिनट भी शक्ल नहीं देखना चाहती, बड़ा आया दानवीर।"
मुँह पर फेंके हुए हीरों को बिना उठाये विशाल मिश्रा जल्द ही सुलक्षणा की आंखों से ओझल हो गए। पर निकलते निकलते उनके कानों से सुलक्षणा की तीखे शब्द टकराए-''और सुनो, अब तुम कोई मिश्रा-विश्रा नहीं रहे,यहाँ तुम्हारी एक ही पहचान है हाउसकीपिंग बॉय...यही तुम्हारा नाम है..यही तुम्हारी जात..''

दिल्ली शहर को छोड़ते हुए विशाल मिश्रा के भीतर एक अजीब किस्म की उदासी और शून्यता थी। जैसे किसी स्वप्न से वो अभी-अभी गुजरे हों। गुजरते हुए पल के साथ-साथ सुलक्षणा की धीमे स्वर में एक गूंज सुनाई दे रही थी।
" मिश्रा जी आपको क्या लग रहा था मैं आपकी शिकायत क्या सच में जनरल मैनेजर से कर देती।"
"और सुनो, अब तुम कोई मिश्रा-विश्रा नहीं रहे,यहाँ तुम्हारी एक ही पहचान है हाउसकीपिंग ब्वॉय...यही तुम्हारा नाम है..यही तुम्हारी जात..''
सोचते- सोचते ही अचानक विशाल मिश्रा के अंदर का जैसे कोई तिलिस्म सा टूटा हो।आखिर उनके पैर गाँव को जाने वाली बस में चढ़ने को तैयार क्यों नहीं हो रहे है।बिना देर लगाए विशाल मिश्रा ने अपने गाँव जाने का फैसला त्याग दिया और वापस सुलक्षणा के पास जाने के लिए मेट्रो मे बैठ गये थे।

- अवशेष चौहान

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