चोरी (सही या गलत)

कथेतर
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चोरी (सही और गलत)

एक लड़का महज ११-१२ साल का, बाल उलझे हुए, गोल सकल लेकिन धूप और धूल के कारण काली पड़ चुकी, हरे रंग की T-shirt और कला हाफ पैंट, टूटी चप्पल्ले, जिसमे चलाने पर चट्ट चट्ट की आवाज आ रही थी. खुद से बड़ी एक बोरी अपने सर पर टांगे था जिसका मुंह पीछे से खुला हुआ है, ये लड़का गंदी बोतल और बेकार प्लास्टिक उठा कर उसी बोरी डालता जरा था. (ये कल्लन/ अधिप है)

पीछे से कुछ (३-४) लड़के आए उससे थोड़ी सी उम्र में बड़े थे । उन सबके पास भी ऐसी ही बोरी थी

एक लड़का - क्यों कल्लन आज क्या क्या चुराया मार्केट से?

दूसरा लड़का - बिंदी, चूड़ी, लिपिस्टिक।

इसके इतने बोलते ही दोनो कल्लन पर हसने लगे।

तीसरा लड़का - अरे... उन दोनो पर बोतल फेकते हुए बोला

दोनो शांत हो गए. फिर वही तीसरा लड़का बोला - अरे भाई! वो सिर्फ बड़ा हाथ मरता है, पैसे चुराता है केवल . तफरी के अंदाज में कहा

हा हा हा हा हा हा हा हा तीनों हसने लगे....

कल्ला मुंह लटकाए सब सुनता रहा और फिर दूसरी ओर वापस लौट गया.

कबाड़ की दुकान में -

कल्लन - मालिक ७ किलो हुआ है। (एक बड़े तराजू में तौलता हुआ बोला)

मालिक - वहा रख दे और पैसे लेले आके. (एक तरफ बड़े सोफे में एक मोटा सा आदमी, सफेद कपड़े, मुंह में पान भरे बोला)

७ किलो १५ रुपए के हिसाब से पूरे १०५ हुऐ.

ले १०० रुपिया, पान पीकदान में थूकते हुए बोला।

अरे मेरे तो १०५ रुपए हो रहे है, सर्फ १०० क्यों? कल्लन बोला

"चाहिए तो ले वरना दफा हो यह से"। मलिक गुस्साते हुए बोला

"ठीक है। देदो लेकिन ये ५ रूपये अगले वाले में जोड़ देना", अधिप पैसे लेते हुऐ बोला।

एक टूटे फूटे से घर में पहुंचा और जैसे ही टाट का दरवाजा खोला वैसे एक चोटी सी बच्ची खिल - खिलाते हुए आई और उससे चिपक गई। उस लड़की की उम्र लगभग ४- ५ साल होगी। सलीके से सर में दो चोटी , साफ कपड़े पहने हुए, और एक हाथ में कपड़े की डॉल।

अधीप - ए छोटी तूने खाना खाया?

छोटी - दादा के साथ खाना था।

अधीप - तूने पढ़ाई करी?

छोटी - दादा के साथ करेंगे।

अधीप - आज स्कूल मे कैसा लगा? दोस्त बने तेरे?

छोटी - हां, दादा मेरा दोस्त है।

वो हाथ - मुंह धो कर, खाना निकाला और दोनो खाने को बैठ गए।

रात के वक्त ----

खुले तारो से भरे आसमान के नीचे, धीमी ठंडी हवा में, दोनो बाहर एक खाट पर लेते थे। छोटी - ऊपर आसमान की तरफ़ हाथ उठाते हुए बोली, "दादा! वो देखो मां"।

अधीप - हां, अब सो जाओ। कल स्कूल भी जाना है।

अगली सुबह

एक बोरी प्लास्टिक का कबाड़ भर कर फिर से मालिक की दुकान पहुंचा। अपनी बोरी तराजू में तोलते हुए बोला,"मालिक ९ किलो है"।

मालिक - वहा रख दे और पैसे लेले आके. (वही आदमी एक तरफ बड़े सोफे में एक मोटा, सफेद कपड़े, मुंह में पान भरे बोला)

९ किलो १५ रुपए के हिसाब से पूरे १३५ हुऐ.

ले १०० रुपिया, पान पीकदान में थूकते हुए बोला।

अरे मेरे तो १३५ रुपए हो रहे है, सर्फ १०० क्यों? अधीप बोला

चाहिए तो ले वरना दफा हो यह से"। मलिक गुस्साते हुए बोला ।

मालिक देदो पूरे पैसे छोटी की स्कूल की फीस भरनी है। बहुत जरूरी है मालिक वरना उसे स्कूल से निकाल दिया जायेगा।

मालिक - चल चल भाग यहां से, बहुत देखे हैं तेरे जैसे और उनकी जरूरते। खाने - पहनने के पैसे नही । स्कूल की फीस भरना बहुत जरूरी है।

अधिप - उदास हुआ और फिर से बोरी उठा कर, प्लास्टिक भरने चला गया।

कूड़े के ढेर से एक पर्स मिला, जिसमे बहुत सारे रूपये थे जितने से अधिप की कुछ दिनों की काम हो जाता जैसे छोटी की फीस, खाने का सामान, खुद के लिए चप्पल, खाना बनाने के लिए गैस। कई ऐसी चीजे जिनके बिना उसका काम नही चल सकता।

उसने अपने आस पास, इधर - उधर देखा, फिर उसने धीरे से पर्स अपने उसी बोरी डाल लिया और घर की ओर जाने लगा। तभी वो तीनों सैतान बच्चे फिर से उसके पास से कूड़ा बिनने के लिए निकले। कल्लन को देखते ही उनमें से एक लड़का बोला, "ओय! कल्लन बड़ी जल्दी घर जा रहे हो? लगता है आज कोई बड़ा हाथ मारे हो"। तीनों हसने लगते है। कल्लन एक बार उन्हें पलट कर हस्ता हुआ देखता है और घर की तरफ मूड कर चलने लगता है।

रास्ते में सून सान देख कर उसने फिर से पर्स निकाला और सोच विचार करते हुए उसकी तलाशी करने लागा। उसमे से एक विजिटिंग कार्ड निकला। "अमित कुमार,no. ७७५५३२२१७८, senior journalist, ये क्या होता है?" बड़ा सोचते हुए धीमे से बोला। ढलते हुए सूरज को देखते हुए बुदबुदाया,"अगर मैं इसको रख लेता हूं तो मेरी सारी जरुरते पूरी हो जायेगी लेकिन ये लोग मुझे जो चोर बुलाते है वो सच हो जायेगा और अगर मैं देने गया तो कही वो लोग मुझे ही चोर न समझ ले इस सब के जैसे और अगर मैं फेक दिया तो कोई न कोई उठा ही लेगा। "करू तो क्या करू", माथे में हाथ मारता हुआ फिर बुदबुदाया।

टेलीफोन बूथ

"हेलो, आप अमित कुमार बोल रहे है?

हां, बेटा। आप कोन?

आपका पर्स मिला मुझे, उसमे से आपका नो.

मेरा पर्स, तुम कहा हो, मैं मैं मैं अभी आता हूं।

उसने पता बताया कि वो कहा h ।

Same place, Amit Kumar entry with bike

Booth वाले से पूछते हैं,"अभी एक बच्चे ने मुझे यहां से कॉल किया था, आपने देखा क्या?

बूथ वाला "जी वो बैठा h", एक पेड़ के नीचे बैठे बच्चे की तरफ उंगली करते हुए बोला।

अमित भागते हुए बच्चे के पास गया और बोला

"ऐ बच्चे, अभी तुमने ही फोन किया था न"?

"आप ही अमित कुमार, सीनिओर जर्नॉलिस्ट", कार्ड में घोक के पढ़ते हुए बोला।

"हां! मैं ही अमित कुमार, senior journalist hoon", अमित संतुष्टि जताते हुए बोला।

"ये लीजिए आपका पर्स, वहां कबाड़ के पास पड़ा मिला। मैने कहीं से चुराया नहीं था और पर्स से कुछ निकाला भी नहीं। सच्ची छोटी कि कसम।

"ठीक है मैं मानता हूं, तुम्हें ये सिर्फ मिला था और तुमने इससे पैसे भी नहीं निकाले", पर्स उससे ले कर बैक पॉकेट में रखते हुए कहा।

"तुम्हारा नाम क्या है?" अमित ने कल्लन से पूछा

"मेरा नाम... अधिप है, मां ने रक्खा था

बहुत प्यारा नाम है, क्या हम दोनों एक फोटो ले सकते है साथ में?

हां, क्यों नहीं

"थैंक यू अधिप, इसमें बहुत जरूरी चीजे थी जो तुम्हारी बज से मुझे मिली है। ये लो ५०० ₹

"नही ये मैं नहीं ले सकता", अधिप

क्यों", अमित ने पूछा।

कमाए हुए पैसे ही अपने होते हैं बाकी सब खैरात होती हैं।

पर मै तुम्हे खैरात नही उपहार स्वरूप दे रहा है।

फिर भी उसने मना कर दिया। बोला कि ये मुझे नहीं चाइए बस आप मेरे मालिक से मेरे पैसे दिलवा दो। मुझे मेरी छोटी की फीस जमा करनी है अगर नहीं करी तो उसे स्कूल से निकाल दिया जायेगा।

ठीक है, कल मै तुम्हे तुम्हारे पैसे तुम्हें मिल जायेंगे।

मालिक की दुकान

अगली सुनहरी सुबह, जब लोग के गल्ले पे बैठने का वक्त हो चुका था। सब अपनी दुकान खोल कर साफ-सफाई में लगे थे। कबाड़ की दुकान पर वही बड़े में सोफे में मोटा आदमी पान खा रहा था और अखबार पढ़ रहा था।

और एक लड़का उसकी दुकान में फटका मार रहा था।

मालिक पान खाते हुए बोला ,"अबे आज के पेपर में ऊऊऊ कल्लन की फोटो निकली है"।

लड़का सफाई करने वाला सफाई करते हुए बोला,"कहे चोरी में पकड़ा गया क्या? पक्का किसी के पैसे चुराए होगा"।

मालिक - मिलिए मजबूरी में भी गलत क़दम न उठाने वाले अधिप से

अरे! इसका नाम अधिप है का। हम तो इसको कल्लन ही नाम से जानते थे।

Same scene Amit and अधिप ki entry

मालिक - ए कल्लन देख तेरी फोटो निकली h अखबार में (same paan ko थूकते हुए बोला)

अमित

जी, आपकी भी छाप सकता हुं। अगर अपने इसको इसके पूरे पैसे न लौटाएं तो। बड़ी सी तस्वीर पहले पेज पर वो भी हथकड़ी के साथ।

मालिक: माफ कीजिए, आगे से ऐसा नहीं होगा।

अमित: आगे से कोई complaint आनी नही चाइए मुझे आपके खिलाफ। वैसे ही बाल मजदूरी का आरोप लगा सकता हुं आप पर, लेकिन छोड़ रहा हुं कुछ सोच कर।

मालिक:- जी, जी बिलकुल... हाथ जोड़ते हुए बोला

अमित अपने बाइक में बैठता हुआ। "तुम परेशान मत हो, छोटी की फीस जमा हो गई है और तुम्हारी भी। ये सब काम बाद में पहले सिर्फ पढ़ाई जरूरी h। और कभी भी कैसी भी कोई दिक्कत हो तो बेझिझक मुझे फोन कर लेना। तुम्हारी उम्र में हम नेकर पहन कर इधर उधर खेलते रहते थे बस और यहां तुम इतनी जिम्मेदारियां अपने नन्हे कंधो पर ले कर चल रहे हो।

Proud of you beta।

उसके सर पे हाथ फेरा और अपना कार्ड दिया... और चला गया।

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