कहानी दो रह्श्यमयी पिशाच वंशों की

फंतासी
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एक कहानी तीन दोस्तों और दो रह्श्यमयी वंशों की, एक कहानी जो वेम्पायर्स के भारत से उद्गम का समर्थन करती है, एक कहानी जो कोई कॉलेज ड्रामा नहीं, भारत के अनछुए पहलु से रूबरू कराने वाला अहसास है, जिसकी ये तो बस शुरुआत है...

ये है जोधपुर, सनसिटी भी बोलते है इसे... हाँ, सही सुना आपने, सूरज की नगरी। मौसम अभी थोड़ा ठंडा है सुबह के 6 जो बजे है, एक वीरान सड़क, अँधेरा है पर साफ़ दिख रहा है कि रोशनी जल्द ही उसे मिटा के छा जाएगी। इस वीरान सड़क पर तभी किसी के पैरों की आवाज सुनाई देती है, यह एक 18 साल का लड़का है तक़रीबन 5.8 फुट लंबा, थोड़ा सांवला, गोल पर तराशा हुआ-सा चेहरा। गले में एक रेड टाई पहने और ब्लैक बैग लटकाए हुए, 15 मिनट हो चुके है पर इस सड़क से इसके अलावा कोई गुजरता हुआ नहीं दिखा, शायद वह कुछ बड़बड़ा रहा है या यूँ कहु गुनगुना रहा है। मुझे शब्दों के प्रयोग में सावधानी बरतने की ज़रूरत है, खेर किसी तेज़ रोशनी ने अँधेरे के उस सन्नाटे को चीर दिया। ओह ये एक बस है, वो लड़का उस बस में बैठने के लिए काफी तेज़ी से बढ़ा, शायद वह इंतज़ार करते-करते थक चूका था, खिड़की के पास वाली जगह... बढ़िया पसन्द। मैं भी वही बैठना पसंद करता अगर में बैठता पर आप जानते है... मैं उड़ सकता हूँ। तो मुझे नहीं लगता मुझे बस की ज़रूरत होगी। ओह माफ़ कीजिएगा, मैने अपना परिचय तो करवाया ही नहीं, मैं हूँ ख्वाहिश, मैं किसी एक जगह रहना कभी पसंद नहीं करता। वो लड़का अब खड़ा हो गया है और हाँ बस भी अब रुक गयी है, ये कोई चौराहा है, पास ही बहुत सारे कबूतर है, सूरज की लाली, ठंडी हवाएँ और इन पंछियो का एक साथ उड़ना, कितना अच्छा दृश्य है, जहा से मैं आया हूँ वहा ये संयोग बहुत कम देखने को मिलता है, हमे पैसा, प्यार, सब मिलता है पर प्रकृति नहीं। पास की दूकान के बोर्ड पर देखे तो लिखा है- टी स्टाल। वो लड़का अब भी धीरे कदमों से चलता जा रहा है, और सूरज की रोशनी भी, जैसे उन दोनों में कोई पुराना रिश्ता हो, उसके कदम थम जाते है एक इमारत के आगे, जिस पर लिखा है, आपका अपना विश्विद्यालय। पर उसके कदम चेहरे पर एक मायूसी लिए वापस मुड़ जाते है, गेट पर एक बड़ा-सा ताला लगा है और पास ही नोटिस बोर्ड पर लिखा है- आज अद्ययन कार्य नहीं होगा। उसी रास्ते पर जिस पर वह कुछ लम्हों पहले ख़ुशी से कदम बढ़ा रहा था, अब मायूसी से पार कर रहा था और वह अपने घर आकर चुपचाप उसी बिस्तर पर जो उसे हटाना था, पर सो जाता है। यह जिससे आप अभी मिले है, इसका नाम अभय है, हमेशा से इसका ये नाम नहीं था पर हमारे जनाब अभय रायचन्द के फैन है तो इन्होंने खुद को उसी नाम से पहचान दी। बहुत साधारण-सी ज़िन्दगी है यहाँ इनकी, घर से कॉलेज, कॉलेज से घर, बीच में थोड़ी मस्ती और थोड़ी पढाई, आज इनका कॉलेज बंद था और इन्हें दोस्त ने नहीं बताया, चलिये हमारे अभय की नींद तो खुली, देखते है आगे।

"ध्रुव तूने मुझे बोला क्यू नहीं!"

"क्या नहीं बोला?"

"यही की आज कॉलेज बन्द था"

"अरे! बताया तो था यार..."

"तू पिटेगा साले, मिल तू मुझे।"

"अरे सॉरी यार मैं भूल गया था बताना।"

"मुझे नहीं सुननी तेरी बकवास..."

~ फोन कट ~

ये था ध्रुव, हमारे अभय का बेस्ट फ्रेंड। अभय का गुस्सा, बाप रे बाप, सबसे ज़्यादा इसी पर निकलता है, अभय उससे कई बार परेशान हो जाता है लेकिन उसे प्यार बहुत करता है। चलो अब मुझे जाना है वापस कही और इसकी बोरियत भरी ज़िन्दगी में ऐसा कुछ नहीं जो आप सुनना चाहेंगे, आप भी जाइये।

~~~

अभय!

अभय!

कॉलेज नहीं जाना क्या, 6 बज चुके है।

चाय भी बना दी है, ठंडी हो जाएगी।

उठ गया मम्मी।

चलो बिस्तर भी सही कर लेता हूँ।

मम्मी चाय कहा है...

पहले मुंह तो धोले और ब्रश भी कर...

कर रहा हूँ...

मम्मी मैं जा रहा हूँ...

बटुआ ले लिया?

हाँ, माँ

और फोन?

हाँ, माँ वह भी...

इस सड़क पर मैं अकेला हूँ, कुछ लोग मॉर्निंग वॉक पर है। मैंने सुबह सपना देखा, यही सब, एक ख्वाहिश नाम का आदमी, वो मेरे बारे में बता रहा था, और ध्रुव के भी।

उसने जाते हुए कुछ बोला था, ...हाँ बोरियत भरी ज़िन्दगी।

सही तो कहा था, मैं अब बस में अकेला, कॉलेज जाऊंगा, क्लासेस होगी फिर वापस इसी बस से अकेला घर।

बस यही सिलसिला।

ऐसा नहीं है कि मेरी कॉलेज लाइफ बोरिंग है, वहाँ मज़ा आता है, लैब में दिमाग की और कीबोर्ड की धज़्ज़िया उड़ाना। ध्रुव के साथ सबके मज़े लेना, अवनि से बातें।

अवनि हमारी तिकड़ी का हिस्सा।

मैं, ध्रुव और अवनि।

अवनि इंटेलीजेंट भी बहुत है जैसे कि आइंस्टीन... की बहन। दोनों जान है मेरी, उनके बिना ज़िंदगी... मैं सोच भी नहीं सकता। दोनों मुझे वैम्पायर बुलाते है, मेरा नंबर भी इसी नाम से सेव किया है। मै कई बार वैम्पायर्स की बाते करता हूँ ना इसलिए। सच बोलू तो वैम्पायर्स कितने गजब के होते है ना, मैंने ट्वाईलाइट, वैम्पायर डायरीज, फनाह, प्यार की ये एक कहानी और बहुत-सी वैम्पायर पिक्चर्स देखि है और मैं हमेशा से उनमें से एक बनना चाहता हूँ।

"ओए वैम्पायर!"

तू आ रहा है या मैं और अवनि जाये - ध्रुव

आ रहा हूँ...

देखा ध्रुव, ये वैम्पायर फिर से अपने से ही बात कर रहा था, ये पागल है सच में! अवनि ने मुझे हल्का-सा धक्का देते कहा...

हमारा आज गुमने जाने का प्लान है ना इसलिए, तो मैं चला।

~~~

3 साल बाद...

1 मिनट बाद ही मेरा 21वां जन्मदिन शुरू, हमेशा की तरह इस बार भी ध्रुव मुझे सबसे पहले विश करने में कामयाब हुआ और अवनि उसके बाद।

सुबह खूब मौज मस्ती की, दिन का जमकर मज़ा लिया, फिर शाम को ध्रुव ने कहा कि उसने और अवनि ने प्लान बनाया है, फॉरेस्ट कैंपिंग का और मुझे आना है कैसे भी करके। मेने माँ को पूछा, अजीब बात है माँ ने एक बार में ही हाँ बोल दिया, हम 9 बजे पास ही के ब्लैक बक फॉरेस्ट में मिले, वहाँ कैम्प लगाया, यह कॉलेज का आखिरी साल भी था तो हम इस लम्हे को पूरा जीना चाहते थे।

गाने और खाने के बाद हमने अपने पुराने लम्हें, कुछ जोक्स जो की हम कई बार सुन चुके थे, से वक़्त बिताया। फिर हम अपने कैम्प में सोने चले गए...

मैंने ध्रुव की ओर देखा, मेरे दिमाग में वो सारे लम्हे एक फ़िल्म की तरह चलने लगे जो हमने साथ बिताए, वो सारे पल जब मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ बुरा बर्ताव किया। बाद में मैंने अवनि को देखा, वो आज कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत लग रही थी, जैसे रात की चाँदनी उसी से है, चाँद से नहीं, जैसे कि हर कोई सोचता है एक ड्रीम गर्ल।

वो मेरी ज़िंदगी में अकेली ऐसी दोस्त थी जिसने उन शब्दों को ग़लत साबित किया कि "लड़कियां लड़कों जितने शिद्दत से दोस्ती नहीं निभा सकती", ऐसे कई मौके आए जब मुझे उससे अच्छा कोई संभाल नहीं पाता या सलाह देता। उसके बदले में मैने उसे या ध्रुव को कुछ नहीं दिया, ना उनके जितना प्यार, ना ही कुछ छोटे शब्द की - थैंक यू या आइ लव यू...

पर आज पता नहीं क्यू मन में एक अजीब से बेचैनी थी, की आज इन्हें बताऊ की मैं इनसे कितना प्यार करता हूँ, यही सोचते-सोचते कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला।

सुबह ध्रुव के चिल्लाने की आवाज मेरे कानों में पड़ी।

"अवनि!"

"अभय!"

"अभय... वो अवनि...!"

किसी अनहोनी की आशंका ने मुझे उस और खिंचा और अवनि को देखकर मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था, वो कुछ ऐसे लग रही थी जैसे कि उसे बहुत गहरा सदमा लगा हो, वो कुछ भी हलचल नहीं कर रही थी। हमने बिना देर किए, हॉस्पिटल जाना सही समझा।

डॉक्टर्स ने कहा कि ये इमरजेंसी केस है, हालत बहुत नाजुक है, डॉक्टर्स उसे आई.सी.यू. में ले गए, मेरी हर सांस में मुझे लग रहा था कि मैं उसे खो दूँगा, मुझे एक साथ बिताए वह सारे पल फिर से याद आ गए, तभी ध्रुव ने बताया कि डॉक्टर आई.सी.यू. से आ गए, हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि वह कोमा में जा चुकी है, यह सुनकर ऐसे लगा जैसे कि मैंने अपना एक हिस्सा खो दिया, जैसे कि दिल तो है पर धड़कन नहीं।

हमने अवनि की मम्मी को सब-कुछ बताया और ये भी की डॉक्टर्स का कहना है कि अब इसकी रिकवरी के आसार न के बराबर है।

आंटी बहुत रोये उस दिन, और ध्रुव जो हमेशा हँसता और सबको हँसाता था, जो हर मुश्किल घड़ी में भी हमें मस्त रहना बताता, वह ध्रुव आज फुट-फुट कर रो रहा था, मुझमें हिम्मत नहीं थी कि मैं ध्रुव को या आंटी को संभालू और हमें तो यह भी नहीं पता कि अवनि की यह हालत क्यों और कैसे हुई, डॉक्टर्स का कहना था उसके ब्रेन को सदमा लगा है, जिसे वह झेल नहीं पाई।

मैंने अवनि का हाथ देखा, वह जैसे सुख चुके थे, मैं उसे इस हालत मैं और नहीं देख सकता था, मैं सब-कुछ ध्रुव के हवाले छोड़ के चला गया। ध्रुव खुद को अवनि की इस हालत का जिम्मेदार समझता हैं क्योंकि उसी ने फॉरेस्ट कैंपिंग के लिए बोला था।

मेरे लाख समझाने पर भी वह इस बात को नहीं भुला पा रहा था, एक हफ्ता हो चुका था, सब खोये-खोये से रहते है, ध्रुव, आंटी और मैं भी तो... मुझे कुछ सवाल खाए जा रहे थे, काटते थे मुझे। मैंने शहर छोड़ने का फैसला किया और किसी को बिना बताए देहरादून चला आया।

~~~

देहरादून पहुंचने पर पता चला कि आज तक इसकी खूबसूरती के जो किस्से सुने थे सब झुठ थे क्योंकी ये उन किस्सो से कई ज़्यादा खूबसूरत था, 3-4 दिन होटल में रहने के बाद थोड़ी मेहनत और स्थानीय लोगों की मदद से राजपुर रोड के पास ही एक कमरा किराए पर मिल गया, वहाँ से एक क्लॉक टावर भी दिखता है जो लगभग पूरा दिन पर्यटकों से घिरा रहता है, उस रात जब में उस खूबसूरती को दिल में लिए सो रहा था, वापस उठा तो देखा अवनि आई हुई थी, मैं उसे देख के थोड़ा हैरान हुआ और खुश भी, मैं उसकी तरफ बढ़ा और जैसे ही गले लगाने वाला था वह पीछे हो गयी!

क्यूँ?

क्यूँ तुम हमे छोड़ आए, मुझे छोड़ आए? उसने सवाल किया।

अवनि, मैने तुम्हे नहीं छोड़ा मैं तो यहाँ...

बिजली की तेज आवाज ने मुझे जगा दिया, पास ही में कही बिजली गिरी थी, तेज़ बारिश और हवा चल रही थी, मैने अपना फ़ोन अनलॉक किया, 2 बज रहे थे रात के, वहाँ अवनि का कोई नामों निशान नहीं था। मैंने एक गहरी आह भरी और गरजती बिजली और बारिश की आवाज के बीच सोने की कोशिश करने लगा।

सुबह नींद खुली तो देखा, 8 बज चुके थे, पर बारिश की आवाज अब भी थी, बाहर देखा तो पता चला कि मौसम ठीक वैसा ही है जैसा रात को था। बारिश और बिजली वैसे ही थे, मैं नीचे गया और बारिश को देख रहा था तभी एक बच्चा रेनकोट पहने पास आया और बोला-भैया कही जाना है तो रेनकोट पहनो और चले जाओ, ये बारिश अब यूँही चलेगी, रुकने का इंतज़ार मत करो।

मैंने हैरानी से उसकी ओर देखा और मुस्कुरा दिया।

मेरे पास रेनकोट नहीं था, मैं थोड़ा मायुस हुआ, तो पड़ोस के ही अंकल बोले - "बेटा, मैं ले आउ?"

क्या अंकल? - मैंने उन्हें गुरते हुए से पूछा।

"रेनकोट" - उन्होंने मुस्कुरा के बताया।

मैंने उनका धन्यवाद किया और यह कहते हुए मना कर दिया कि "मेरे पास छाता है, मैं जाके ले आऊंगा।"

मुझे थोड़ा अजीब लगा क्योंकि मैंने तो उनसे इस बारे में कोई बात नहीं की पर खुशी भी हुई कि मुझे अच्छे पड़ोसी मिले।

मैं छाता लेकर बाहर निकला रेनकोट के लिए पर रास्ते में लाइब्रेरी देख कर रेनकोट खरीदना टाल दिया और लाईब्रेरी में चला गया, मैंने एक नॉवेल ली, वैम्पायर्स की और उस नॉवेल से जो मुझे पता चला... वो मेरे लिए किसी बड़ी सफलता जैसा था। पर नॉवेल, कहानियों की सच्चाई किसी अंधेरी जगह-सी होती है, आपको पता तो है कि आगे कोई जगह तो है पर कितनी दूर तक है और कैसी है, ये अंदाजा मुश्किल है।

उस नावेल में दो पुराने समुदायों के बारे में लिखा था, उनके नाम थे "रायसी" और "नराही", उनके नाम के साथ एक चिन्ह भी था, शायद उनके वंश चिन्ह।

~~~

कहानी अभी और बाकी है जो की और भी दिलचस्प है... आशा करता हूँ की आपको यह पसंद आई होगी।

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