कुआँ निर्माण (श्रमदान)

Ranvir Singh (Tomar)
आत्मकथा
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कुआँ निर्माण (श्रमदान)

माह अप्रैल का महीना था । मैं विद्युत विभाग का अधिकारी होने के नाते एक सुपरवाइजर के ऑफिस में बैठा था । वहां पास में ही एक विद्युत उपकेन्द्र भी था । ऑफिस में उपस्थित कर्मचारी ने चपरासी से कहा – साहब आए हैं पानी पिलाओ । चपरासी ने कहा लाता हूँ । मैंने पूछा क्या बात है, ये कहाँ से पानी लाएगा ? कर्मचारी ने बताया – यहाँ पानी की व्यवस्था नहीं है । पास के ट्यूब वेल से पानी लाकर मटका भर लेते है इस प्रकार काम चला लेते हैं । मैंने कहा आपके पास तो विद्युत उपकेन्द्र है, वहां क्या स्थिति है पानी व्यवस्था की । कर्मचारी ने कहा यही स्थिति सब स्टेशन की भी है । मैंने कहा बड़ी विचित्र स्थिति है, यहां । अधिक चर्चा करने पर पता चला कि पानी की व्यवस्था के लिए यहाँ हेंड पम्प था, वह खराब हो गया है । उसे क्यों सुधरवाया नहीं गया । सुधार करने वाले कर्मचारी आए थे कहा कि अब यह नहीं सुधरेगा, सुधार योग्य स्थिति नहीं है और नीचे पानी की कमी भी बताई । इस कारण यह व्यवस्था है, वर्तमान में । अब और लाइन कर्मचारी भी आ गए थे जिनसे चर्चा करना जरुरी था । चर्चा में सभी ने निवेदन किया कि पानी की व्यवस्था कराई जावे । अधिकारी के नाते मैंने भी सहमति देते हुए कहा कि व्यवस्था के लिए कार्यवाही करता हूँ ।

अपने कार्यालय आने पर मैंने एक पत्र अपने वरिष्ठ अधिकारी को लिखा कि अमुख स्थान पर पानी की व्यवस्था अति आवश्यक है, वहा विभाग के दो स्थान हैं – एक सुपरवाइजर ऑफिस और दूसरा विद्युत उपकेन्द्र । दोनों जगह पानी की व्यवस्था नहीं है आदि । उन्होंने मेरे पत्र के आधार पर एक पत्र सिविल विभाग के अधिकारी को पानी व्यवस्था हेतु पत्र लिखा । उन्होंने उस पत्र के जबाव में पत्र लिखा कि हमारे पास अभी कोई फंड नहीं है, आपके पास यदि किसी फंड की राशि हो तो हमें ट्रांसफर कर दें जिससे पानी की व्यवस्था कराई जा सके । इस आशय की जानकारी से मुझे भी अवगत करा दिया गया ।

पुन: विभागीय कार्य से मैं वहां पहुंचा, सभी स्थानीय अधिकारी कर्मचारी उपस्थित थे । मैंने उनको पानी व्यवस्था की वस्तुस्थिति से अवगत कराया और कहा कि मुझे नहीं लगता कि शीघ्र पानी की व्यवस्था हो जाएगी । फंड न होने से देर लग रही है । इस बीच कुछ कर्मचारी बोले – यदि आप अनुमति दें तो हम व्यवस्था कर दें । मुझे आश्चर्य भी हुआ, जब विभाग नहीं कर पा रहा है तो ये कैसे कर पाएंगे ? मैंने कहा स्थिति स्पष्ट करें आप किस प्रकार करेंगें, मुझे बताएं, तभी मैं हाँ कह पाऊँगा । उन्होंने कहा हम श्रमदान करेंगे और कुआ खोदेंगे । मैंने कहा कि इससे तो आपकी शिकायत आएंगी कि क्षेत्र के उपभोक्ता कहेंगे कि बिजली विभाग के कर्मचारी तो श्रमदान कर रहे हैं, कुआं खोद रहे है । हमारी बिजली समस्या का निदान नहीं कर रहे हैं । इससे उपभोक्ता बिजली विभाग की शिकायत करेंगे । कर्मचारी बोले कोई शिकायत नहीं होगी, मैंने कहा क्यों नहीं होगी जब आप श्रमदान कर रहे होंगे उनकी लाइन बाद पड़ी होगी । हम उनका काम भी करते रहेंगे, उपभोक्ता का काम प्रभावित नहीं होगा । यह कैसे संभव जब आप श्रमदान करेंगे तो उपभोक्ता काम स्वाभाविक रूप से प्रभावित होगा । तब यह निर्णय किया गया कि एक गेंग के चार कर्मचारियों में से एक कर्मचारी एक दिन श्रमदान के लिए रुकेगा, तीन कर्मचारी क्षेत्र में काम करने जाएंगे । हमारे यहाँ चार गेंग हैं, एक - एक गेंग का रोज एक - एक कर्मचारी श्रमदान के लिए रुकेगा शेष तीन अपने - अपने क्षेत्र में सम्बंधित कार्य करेंगे । इस तरीके से दोनों काम चलते रहेंगे, किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी । राय उचित थी । वहां उपस्थित एक कांट्रेक्टर भी था, उसने ने भी जोश में कहा कि मैं भी रोज दो आदमी श्रमदान के लिए अपनी तरफ से दूंगा । इस तरह 6 व्यक्ति रोज कुआं खोदने के लिए श्रमदान करेंगे । सभी की आम राय होने, उपभोक्ताओं का काम प्रभावित न होने के आश्वासन पर कुआ खोदने लिए अपनी मौखिक स्वीकृति दे दी ।

अब प्रश्न उठा कि कुआं कहाँ खोदा जाए? जहां पानी मिले वहां कुआं खोदा जाए । कर्मचारियों में एक पारासर लाइन इंस्पेक्टर यह जानते थे कि कहाँ पानी मिलता है, कहाँ पानी नहीं मिलता । उन से संपर्क किया गया उन्होंने कहा एक नारियल मंगवाओं और अगरबत्ती का पेकेट । पारासर अपने हाथ में नारियल लेते जगह – जगह घूमते रहे, एक स्थान पर रुककर उन्होंने कहा – यहाँ पानी मिलेगा । वहां नारियल चढ़ाया गया और अगरबत्ती जलाई गयीं । इस प्रकार कुआं खोदने के श्रमदान की शुरुआत हो गयी । कार्य होते – होते एक दिन वह आया जब नीचे पानी आ गया । सभी को अपनी - अपनी मेहनत पर प्रसन्नता हुई ।

अब कुआं निर्माण की बात आयी । उस स्थान पर मिट्टी की ईंटों के स्थान पर पत्थर के टुकड़े (जिन्हें आमभाषा में चिनगारी या बोल्डर या खंडे कहते हैं) से कुए की चिनाई कराया जाना उचित समझा गया । रेत, सीमेंट पहले से था । खंडे खरीदने के लिए आपस में चन्दा इकठ्ठा किया । उन रुपयों को लेकर विभागीय वाहन से कर्मचारी खदान स्थल पर गए, जहां खंडे मिलते थे । वहां खंडे बेचने वाले से भाव पूछा, क्या भाव है खण्डों का ? उसने काम पूछा, किस काम के लिए चाहिए, कर्मचारियों ने कहा कुआ बनाने के लिए । उसने कहा क्यों झूंठ बोलते हो, यह बिजली विभाग की गाड़ी है उस पर विभाग का नाम लिखा था । अब कौन कुआं बनवाता है, गए ज़माने कुआं बनवाने के । कर्मचारी बोले हम क्यों झूंठ बोलें, आपसे भाव पूछा, आप भाव बता दो, उस हिसाब से भुगतान कर देंगें । कोई फ्री तो ले नहीं रहे है । आपसे भाव पूछा, आपने पूछा किस काम के लिए, हमने काम बता दिया । अगर हमारी बात आपको झूंठ लगती हो तो हमारे बिजली ऑफिस, सब स्टेशन आकर देख लेना । इतना सब वार्तालाप होने पर उसने कहा कि आपको जितनी जरुरत है उतने खंडे ले जाओ, कोई रुपया नहीं लूंगा । आपने श्रमदान किया है, मैं भी इस पुण्य कार्य में सहयोग करूंगा । मुझे खडों के कोई रुपया नहीं लेना । इस प्रकार कुए की चिनाई शुरू हो गई और कुआं बन गया । कुएं के चारों ओर चबूतरा बनाया गया । केवल कारीगरों की मेहनत का भुगतान चंदे की रकम से कर दिया गया । पानी के लिए एक टूल्लू पम्प लगा गया । अब तो नहाने आदि की व्यवस्था बन गयी । फूलों वाले पौधे भी लगा दिए गए । इस तरह श्रमदान से कुआं निर्माण कर पानी की व्यवस्था हो गयी, सभी के सहयोग से ।

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