गुलमोहर

बाल साहित्य
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हर शाम मुझेइंतजार रहता है। वह जैसे ही इस बाग में आती है, हर कली जैसे... जैसे खुद खिल जाती है और कहती है" मुझे छू लो ,तुम्हारा स्पर्श कितना निर्मल है !तुम्हारे अंदर कितना प्रेम भरा है जो तुम हमें छू कर हम पर लुटाती हो।'

वह जब बाग में आती, हर पेड़ की डाली - डाली झूलने लगती। शायद इसीलिए कि वो डालियां अपने फूलों पर बैठे तितली और भंवरों को कह रही हो" देखो वह आ गई अब वह तुम्हें पकड़ेगी।'

उस की ललक हमेशा तितली के पीछे भागने की रहती।

उसके साथ अन्य बच्चे नहीं खेलते थे इसीलिए शायद उसने बाग के फूल, तितली डालियों को और "मुझे' अपना दोस्त बना लिया था।

मैं भी अपनी डालियों को उसके आते ही झुलाने लग जाता हूं ताकि उस पर अपने नारंगी लाल रंग के फूल बरसा सकूं और वह उन्हें दौड़- दौड़कर उठा ले और अपनी फ्रॉक की जेब में भर ले या फिर अपने बालों में लगाने की कोशिश करें।

लेकिन... उसके तो बाल लड़कों से भी ज्यादा छोटे काट दिए गए हैं। उसके साथ आने वाली औरत ,जो उसकी मां तो नहीं लगती,उसी के मुंह से सुना था," कौन चोटी बनाए ,बाल धोए , इससे तो यही ठीक है कि इसके बाल छोटे-छोटे कर दें। न बालों का झंझट , न चोटी का ।

लेकिन उसे फूलों को बालों में सजाना अच्छा लगता है शायद उसने देखा है फूलों से बाल सजाना ।

वह ना जाने क्या-क्या बोलती है? आवाज तो आती है लेकिन शब्द नहीं निकलते।

उसकी आवाज से ही पता चल जाता है वह नाराज है या खुश ,बुला रही हैं या जाने का कह रही है । ईश्वर ने उसे बनाया ही ऐसा है । भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता नहीं होती ।

"मैं तो उसके चेहरे को देख कर ही समझ जाता हूं आज खुश है या उदास ..….लेकिन उसके साथ आई वह औरत... उसका नाम कमला है।उसे अपनी मर्जी से हांकना चाहती है। हांका तो जानवरों को जाता है ना.... वह जानवर थोड़ी ही ना है।

हां! बस थोड़ी "विक्षिप्त'।इसका मतलब यह थोड़ी है कि उसे उसके मन का करने ही ना दिया जाए ?सभी बच्चे अपनी मर्जी से खेलते वह भी तो अभी केवल 12 वर्ष की है, प्यारी "गौरैया।'

"लो !कर दी ना फ्रॉक गंदी ,अब मैडम मुझे डांटेंगे। मना किया था ना दौड़ने का, सीधा चला तो जाता नहीं ,दौड़ेगी कैसे ?कमला ने झटके से गौरेया को उठाते हुए कहा।

नौकरानियां जितनी अपनी मालकिन के मूंह लगी होती है उतना ही ज्यादा बाहर आकर घर की कथा बांचती है और मालकिन को लगता है जैसे हमारा दुख बांट रही है।

कमला और न जाने कितनी और कामवालियों का "मीटिंग क्लब' है "रामबाग', जहां में 15 वर्षों से खड़ा था।

सभी अपने अपने मालिक- मालकिनों की दिनभर की गतिविधियों का बखान करती और व्यंग करते हुए ठहाके लगाकर हंसती ,कभी किसी मालकिन को बेचारी ठहराती या कभी मालिक पर तरस खाती और अफसोस जाहिर करती।

कामकाजी महिलाओं को ममत्व लुटाना भी अब एक काम की तरह लगने लगा है इसलिए ऐसी कई कमलाओं को रोजगार प्राप्त हो गया है ।जो कभी हाथ में बच्चा लिए या अंगुली पकड़े इस रामबाग में आ जाती है ।

कई लोगों के पास तो इतना भी वक्त नहीं होता है कि वह अपने बुजुर्गों को बाहर घुमा लाए उसके लिए भी कमलाएं ही तय होती है।

गौरेया इन सभी के साथ खेलती.... चिड़िया की तरह चहकना ही तो उसे आता है।चिड़िया भी तो ऐसे ही बिना शब्दों की भाषा बोलती है।

"आ! मेरी गुड़िया आज देर से कैसे आई ?" कॉलोनी की दादी अम्मा ने गौरैया को पुचकारते हुए कहा ।

"आज इसकी मम्मी ने इसे चपत लगाई इसलिए ये रो रही थी, चुप कराया ....फिर लेकर आई हूं 'कमला बोली "अरेरेरे.… इतनी प्यारी गुड़िया को मारा। "क्या बताएं दादी ,मैडम ऑफिस से थक कर आई और इसने जिद्द पकड़ ली, आज बाग में नहीं जाएगी और मम्मी के पास उन पर टांग रखकर सोएगी ।जैसे ही गौरैया ने मैडम के गले में हाथ डाला और उनके पास लेटी ,मैडम ने उसे दूर हटा कर कहा "मैं थकी हुई हूं मुझे आराम करना है ,तुम बाहर कमला के साथ खेलो।'

गौरेया न मानी तो मैडम ने एक थप्पड़ लगाया और खुद दूसरे कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया।

"आ मेरी गौरेया तुझे मैं अपनी गोद में बैठाऊं कहते हुए 'दादी ने उसे अपनी व्हील चेयर पर खींच लिया।

गौरेया ताली मार कर हंसने लगी। जी चाह रहा था मैं पूरी तरह झुक जाऊं और गौरेया से कहुं आ जाओ मेरी डालियों के बाहों में सो जाओ।

" इतनी प्यारी बच्ची को भगवान ने कैसे सजा दी है 'दादीअम्मा ने अफसोस जताते हुए गौरेया के सर पर हाथ फिराया।

" भगवान ने नहीं अम्मा ..….इसके मां-बाप ने ।'कमला मुंह मचकाते हुए बोली।

" अरे ....इसकी मम्मी ने गोलियां खाई थी। "गोलियां !'दादी अम्मा ने आश्चर्य से पूछा। "आजकल औरतों को मां बनने की खुशी ही नहीं होती ,उन्हें पहले अपना कारिअर बनाना होता है।'

केरियर, केरियर....…

"हां! वही तो।

बेचारी गौरेया के पेट में आते ही मैडम को लगा कि अब उन्हें घर में ध्यान देना पड़ेगा .….नौकरी छोड़नी पड़ेगी इसलिए उन्होंने गोलियां खाई।

"लेकिन गौरेया को तो आना ही था। बेचारी के दिमाग पर ऐसा असर हुआ कि इसका ब्रेन पूरा विकसित ही नहीं हुआ।'

डेवलपमेंट... " हां !वही तो।'

"अब बेचारी भुगत तो यह रही है।' मैडम तो अभी भी अपनी नौकरी ही कर रही है, एक ठंडी सांस लेते हुए कमला बोली।

अम्मा की बुढी आंखों में प्यार की गागर छलक रही थी और गौरैया मेरे गिराए हुए फूल चुग चुग कर अपने कटे हुए बालों में लगाने की कोशिश में लगी थी। उसकी ये कहानी सुनकर एक बार तो मुझे उसके माता-पिता पर बहुत गुस्सा आया लेकिन मैं गुलमोहर गौरेया को अपनी डालियों पर तो बैठा सकता हूं पर मेरा उस पर कोई हक नहीं ।

आज पहली बार ऐसा हुआ कि गौरेया रामबाग नहीं आई मैं उसका रास्ता देखता ही रहा शायद! तबीयत ठीक नहीं होगी।

आ जाएगी.... कल ।

लेकिन पूरे दस दिन हो गए.... न तो कमला आई न ही गौरेया ।

"न जाने क्या हुआ होगा?'

फिर अचानक एक दिन कमला हाथ में एक कुत्ते का पिल्ला लिए रामबाग में घुमाने लाई ।

"ओ कमली ....

"आज बड़े दिन बाद दिखी। गुप्ता जी की कामवाली जो गुप्ता जी के बच्चे को गोद में लिए थी, बोली ।

"हां !गौरेया की मम्मी के यहां तो अब काम नहीं है ना ,क्या करती ?'

"क्यों तुम्हें काम से निकाल दिया क्या?'

"क्या ,मैडम खुद ही गौरेया को संभालती है अब। गुप्ता जी की कामवाली ने बच्चे को मिट्टी में से बिस्किट उठा कर देते हुए पूछा।

"खुद को संभालना होता तो मुझे पहले भी क्यों रखती 'कमला ने आंखें तरेरते हुए कहा ।

"उस बेचारी के नसीब में मां-बाप का साथ नहीं लिखा ।यह लोग इतना भी नहीं समझते बच्चे प्यार के प्यासे होते हैं वह प्यार को केवल मां बाप से चाहते हैं।'

"उसको पागलों के अस्पताल भेज दिया..... खुद से जिम्मेदारी संभाली नहीं जाती बस इसलिए पीछा छुड़वा लिया है।'

"कोई बात नहीं मुझे तो दूसरा काम मिल ही गया।'

"देख, गौरैया न सही अब यह पिल्ला ही सही।.....दोनों ठहाका लगाकर हंस दी।

" न जाने वो आंखें पत्थर की रही होंगी ...जो, गौरेया के जाने पर रोई नहीं होगी ?'

मेरी हर कली आज भी उसी के लिए खिलती है और इंतजार करती है कि एक दिन गौरैया अस्पताल से ठीक होकर आएगी और फिर से मेरे फूलों को बालों में लगाने की कोशिश करेगी ।और तब शायद उसके बाल लंबे ....

नहीं ,बहुत... लंबे , खूबसूरत होंगे।

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