JUNE 10th - JULY 10th
"अरे राघव क्या हुआ तुम्हारी सगाई का ?” स्वाती ने अपने क्लासमेट राघव से पूछा। आज सारे दोस्त फ्री लेक्चर में केंटीन में बैठकर कॉफी पीते हुए गप्पे लड़ा रहे थे।
"लड़की दिखने में तो बहुत सुंदर थी, पर उसने पहले से ही बोल दिया कि वह जॉब करेगी। पर मम्मी को जॉब वाली लड़की बिल्कुल ही पंसद नहीं है। इस कारण बात बनी नहीं,” राघव ने उदासी से कहा, क्योंकि उसे वह लड़की बहुत ही पंसद आयी थी।
"हां तो सही है,” स्वाति ने गुस्से से कहा। जैसे उसकी ही बात चल रही हो।
"तुम्हारी बात सही है स्वाति, पर राघव को अपनी मम्मी की पंसदगी का भी ध्यान रखना है,” राकेश ने कहा।
" तो फिर फाइनली क्या हुआ राघव,” लावण्या ने पूछा।
"मैंनें तो मम्मी से कह दिया कि जब मुझे आपकी पंसद की ही शादी करनी है, तो मुझे इस झमेले में शामिल ही नहीं करना,” राघव ने हार मानते हुए दुखी स्वर में कहा।
"राघव तुम अपनी मम्मी से खुलकर कहो न कि तुम्हें उसी लड़की से शादी करनी है,” राकेश ने समझाते हुए कहा।
"मैं मम्मी को हर्ट नहीं करना चाहता हूं और मैं जानता हूं कि मम्मी मेरे लिए योग्य लड़की ही ढुंढ़ेगी,” राघव ने मध्यम मार्गीय रास्ता पंसद किया।
"स्वाती तुम्हारी पंसद? नेहा ने माहौल हल्का करने के लिए, नेलपालिश लगाते हुए पूछा।
" मैं तो लड़के व उसके घरवालों को पहली ही मुलाकात में स्पष्ट कह दुंगी कि मुझे जॉब करना पंसद है। बाद में किचकिच नहीं होनी चाहिए, इस बात को लेकर। साथ में घरकाम और खाना बनाने के लिए मुझसे ज्यादा अपेक्षा न रखें। हां सेलेरी से मुझे ज्यादा मोह नहीं है। मुझे पैसे से ज्यादा अपनी इच्छा व व्यक्तिगत स्वतंत्रता से प्यार है,” हमेशा क्लास में प्रथम आने वाली और केम्पस सलेक्शन वाली स्वाती ने दिल खोलकर अपनी राय व्यक्त की।
"स्वाती, जैसे तुम यहां बोल रही हो, ऐसे ही अपने होने वाले ससुराल वालों के सामने और पेरेंट्स को बोलना,” धीरज ने हंसते हुए कहा तो सब बोल पड़े कि "हमारी स्वाति पीछे रहने वाली नहीं है।"
"धीरज तु बता तु केसी लड़की से शादी करना चाहता है,” अखिलेश ने पूछा।
"भई सभी दोस्तों की तरह मैं भी सुंदर व बहुत पढ़ी-लिखी लड़की से शादी करना चाहता हूं. पर उसके साथ मेरी एक और शर्त है," धीरज ने व्यावारिक बात के साथ रहस्यमय बात की।
"वो क्याॽ ज्यादा दहेज!" स्वाति ने पूछा।
"मेरी शर्त यह है कि वो मुझे घर-जमाई भी बनाने को राजी हो,” धीरज ने गंभीरता से कहा तो सब इतनी जोर से हंस पड़े कि केंटीन में बैठे हर व्यक्ति का ध्यान इनकी टेबल पर आकर अटक गया।
"धीरज तु अच्छा खासा मजाक कर लेता है,” नेहा ने उसकी पीठ पर हल्की धौल मारते हुए कहा।
" नहीं नेहा, मैं गंभीरता से कह रहा हूं। मैं तो तब तक शादी नहीं करुंगा जब तक कोई घर-जमाई बनाने के लिए राजी नहीं हो जाए,” धीरज की दृढ़ता देखकर सबकी हंसी बंद हो गई और सब धीरज को आठवें आश्चर्य की तरह देख रहे थे।
" भाई ऐसा क्या हो गया कि तुमने ऐसा असाधारण निर्णय ले लिया,” राम ने पूछा।
"आज रिसेस में आज हम हंसी-मजाक, नहीं तेरे निर्णय लेने के पीछे का राज सुनेंगे। क्योंकि जहां तक मुझे पता है कि तेरा कोई निर्णय गलत नहीं जाता है,” धीरज के बचपन के मित्र अखिलेश ने कहा।
"यारों इसके पीछे एक नहीं कई सारी बातें हैं, पर हाल में हुई जिस घटना ने मेरे मन को झकझोरा वो मेरे मामा के लड़के भौमिक से संबधित हैं। भौमिक न सिर्फ मेरा ममेरा भाई है बल्कि मेरे बचपन का दोस्त है। हमारी उम्र में अंतर के बाद भी हम दोनों बहुत ही अच्छे दोस्त हैं---
-- भौमिक की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद तुरंत ही उसे अपने ही शहर अहमदाबाद में मल्टीनेशनल कंपनी की अच्छी नौकरी मिल गई। भौमिक तो खुश था ही साथ में मामा व मामी भी बहुत खुश थे। मामी ने उसकी नौकरी की खबर सुनते ही कह दिया कि, "बेटा अब मैं तेरे लिए चाँद सी बहु ढ़ुंढ़ लाऊंगी। तुम दोनों जब पास में खड़े होंगे तो दुनियाँ देखते ही रह जाएगी,” मामी कल्पना में खोते हुए बोली।
भौमिक मम्मी की बात सुनते हंसते हुए बोला, "मम्मा आप जो कहोगे मैं उसी लड़की से शादी करुंगा, बस शादी से पहले एक बार मिलवा देना,” भौमिक को पता था कि अब मम्मा अपनी जिद पुरी करेगी और उसके लिए बेस्ट ही करेगी। जैसा बचपन में उसके लिए करती आयी है। वैसे भी भौमिक के सिर पर कोई खास जवाबदारी नहीं थी। पापा का अपना जमा-जमाया बिजनेस था और शहर में अच्छी खासी पोश एरिया में प्रोपर्टी थी।
"क्यों भैया, मम्मा की पंसद पर भरोसा नहीं है,” उसकी बहन अनन्या ने व्यंग्य किया।
"आइ लव मम्मा,” जवाब देने की जगह हमेशा की तरह भौमिक मां से चिपट गया। किसी भी मां को इससे ज्यादा क्या चाहिए। भौमिक की पढ़ाई पूरी होने व नौकरी मिलने की खुशी में मामाजी ने फाइव-स्टार होटल में पार्टी रखी। कई सारे लोग आए। कई वे भी लोग आए जिनकी बेटियां शादी की लायक हो गयी थी। वे बेटियां सजधज कर हिरोईन बनकर आयी। क्या पता इस बहाने भौमिक व उसके मातापिता की नजर में आए और पंसद भी। इस मामले मैं भौमिक योग्य वर था हर दृष्टि में-सुंदर, स्मार्ट , अच्छी नौकरी व समृद्ध व कुलीन खानदान वाला।
"रिया कितनी सुंदर लग रही थी, एकदम परी जैसी,” पार्टी के दुसरे दिन नाश्ता करते समय मामी ने मामा से कहा तो भौमिक बोल पड़ा, "मम्मा वो हरी ड्रेस वाली।"
"मम्मी, भैया भी आपके काम में हाथ बंटा रहे हैं,” अनन्या ने सिक्सर मारा तो भौमिक झेंप गया।
"कौनसी अपने भौमिक के लायक कन्या हैं, यह भी पार्टी के बहाने पता चल गया,” भौमिक के पापा ने पहली बार बेटे के शादी के बारें में मंतव्य दिया।
दोपहर तक मामी इसी उधेड़बुन में थी कि भौमिक के लिए कैसे रिया के घरवालों से बात करें कि उनकी बड़ी बहन का फोन आया। इधर-उधर और पार्टी की बात करते हुए वो मूल बात पर आ गयी, "रमेश जी का फोन आया था तेरे जीजाजी के फोन पर, वे भौमिक के लिए रिया की बात करना चाहते हैं।"
" क्या!!” वे इस बात पर खुशी व आश्चर्य से उछल पड़ी। जिस बात के लिए वो पूरी रात सो नहीं पायी और सुबह से कैसे बात करें इसी उधेड़बुन में थी वो बात सामने से चल कर आयी। यह तो बीमार को जो खाने की इच्छा हो और वैध वही कहें।
"आपको रिया और उसका घर थोड़ा बहुत पंसद हो तो मैं बात चलाऊं,” बहन को मामी की प्रतिक्रिया समझ में नहीं आयी।
"हां भले क्क्, रिया व भौमिक आपस में मिल ले। फिर आगे कि बात करें,” मामी ने अपनी ही बहन से खुशी व आश्चर्य कि छुपाते हुए कहा।
" तो आज शाम को ही मेरे घर मिलने का रख लेते हैं? यदि तुम लोगो को अनुकुल हो तो मैं सारी तैयारी शुरु कर देती हूं,” पूछा।
"ठीक है दीदी। हम शाम आठ बज ही भौमिक के ओफिस से आते ही आते हैं,” मामी ने जवाब दिया।
शाम को सब मिल दिए। हांलाकि खास कुछ देखने को था भी नहीं। दोनों परिवार पहले से आपस में पहचानते थे और रिया और भौमिक ने कल एकबार मिल भी लिए थे। लड़का वैसे भी लड़की को बातचीत से ज्यादा शक्ल व सुरत से पंसद करता है। वैसे भी कोई इंसान आधे घंटे में किसी को कितना पहचान सकता है।
रिया व भौमिक की शादी दो महीने के अंदर हो गयी। मामी के घर परी जैसी बहु जो उनक सपना था घर आ गयी। सबकुछ अच्छा चल रहा था और मामी के चेहरे पर खुशी देखते ही बनती थी। एक साल बाद असली कहानी शुरु होती है। जो अक्सर हर भारतीय परिवार में दोहरायी जाती है। माँ की नजरों मे बेटा हमेशा छोटा ही होता है चाहे वो कलेक्टर बन जाए या फिर उसकी शादी ही हो जाए। मामी ने हमेशा ही भौमिक की छौटी-छोटी बातों का ख्याल रखा, भले ही घर में दो नौकर भौमिक के जन्म से ही थे। मां को बेटे के हर छोटे-छोटे कार्य करने में वात्सलय झलकता है और उसके चेहरे पर आत्मसंतुष्टि होती है। शादी तक तो ठीक था पर शादी के बाद यह बातें बंटने वाली नहीं, छीनने वाली हो गयी। मामी इसके लिए तैयार नहीं थी और न ही भौमिक की पत्नि। रिया को भौमिक के काम जब मां करती थी, तो रिया को यह अच्छा नहीं लगता था। उसे लगता था कि शादी के बाद यह पत्नी का एकाधिकार है। फिर छोटी-छोटी बातों पर मामी व रिया के बीच झगड़ा होने लगा। दोनों ही एक दुसरे को सहन नहीं कर पा रही थी। दोनों मे कोमन, भौमिक था। भौमिक की स्थिती काश्मिर जैसी होने वाली थी।
इन छोटी बातों की आग को रिया की मम्मी ने जोरदार हवा दी। पहले भौमिक, रिया की शिकायत को मजाक समझ कर उड़ा देता था या फिर समझाता था कि मम्मी शुरु से ही उसके छोटे मोटे काम करने की आदत है। इससे रिया और चिढ़ जाती थी और व्यंग्य से बोलती थी तो भौमिक के ह्रदय को चोट लगती थी।
घर की खटपट से तंग आकर अब भौमिक अपने छोटे-मोटे काम खुद ही करने लगा। और मम्मी को कहा कि अब वो बड़ा हो गया है और रिया को यह सब अच्छा नहीं लगता है।
"हां अब तु भी बीवी का गुलाम हो गया है,” मामी गुस्से से कहती। मामा ने भी मामी को समझाया कि दोनों को अपनी जिंदगी जीने दो और समय के अनुसार चलों। इससे मामी और आक्रामक हो जाती थी कि जैसे उनका हक छीना जा रहा हो। मां की ममता सिंहन जैसी हो गयी । एक तरह से यह नैसर्गिक था।
भौमिक के घर आते ही कभी रिया की शिकायते, कभी मां की शिकायते। कभी-कभी फोन पर ही दोनों शुरु हो जाती थी। इन छोटी-छोटी बातों को न माँ समझ सकी और न ही पत्नि रिया। भौमिक जिसने न कभी जिंदगी के अभाव देखें और न ही जिंदगी की तकलीफें। वह इन तनावों को सहन नहीं कर पाया। भौमिक अब चिड़चिड़ा हो गया और तनाव में रहने लगा। और ऐसे ही तनाव की एक रात में उसने ढ़ेर सारी नींद की गोलियां एकसाथ खाकर आत्महत्या की कोशिश की।"
"क्या!" सारें दोस्त एक साथ चिला उठे।
"भौमिक चार दिन वेंटिलेटर पर रहा। पर मंहगे डॉक्टर्स व भौमिक कि किस्मत ने भौमिक को मौत के मुंह से बचा लिया।
जिंदगी की व्यावहारिकता को समझने वालें व चुप रहने वाले मामाजी ने अब बाजी अपने हाथ में ली। मामाजी को पता नहीं था कि बात यहां तक पहुंच जाएगी। भौमिक के एकदम ठीक होने के बाद मामा ने भौमिक व रिया को अपने घर से नजदीक ही दुसरे लक्जरी फ्लेट में शिफ्ट किया। जो मामा ने कई साल पहले निवेश के लिए लिया था।"
" क्या भौमिक व मामी ने विरोध नहीं किया,” स्वाती ने पूछा।
"हां बहुत विरोध किया। भौमिक तो रो भी गया था। पर मामा ने मामी से इतना ही पूछा कि तुम्हें बेटा घर के पास में चाहिए या फिर दुनियां में? और भौमिक को माँ की कसम देकर मामा ने समझाया कि परिस्थतियां सामान्य होने के बाद यहां आ जाना। वैसे भी फ्लेट कौनसा दूर है, जब इच्छा हो आ जाना और हम भी आते जाते रहेंगे।"
रिया तो बहुत खुश थी। उसे तो यही चाहिए था। आज बेटे के एक ही शहर में होने के बाद भी मामा और भौमिक अलग रहते हैं।
इस घटना के बाद मेरे मन ने फैसला लिया कि मैं घर-जमाई ही बनूंगा।" धीरज ने घर जमाई बनने का कारण बताया।
"पर सभी तो ऐसे नहीं होते हैं,” किशन ने प्रतिक्रया दी।
" सही बात है तुम्हारी। पर आज हम अपने चारों तरफ देखें, पड़ोस में, रिश्दारों में , दोस्तो में या फिर अपने ही घर में। दुनियां भर के उदाहरण है हमारे ही पास। अब दुनियां बदल चुकी है। कोई लड़की सास के साथ नहीं रहना चाहता। हर कोई अपने मन की करना चाहता है। इससे क्लेश तो होगा ही और भोग हमेशा तीसरे का ही लिया जाएगा।"
सारे दोस्त चुप हो गए धीरज की बात सुनकर। सही तो कह रहा है। सभी के आस-पास ऐसे ढ़ेरो उदाहरण थे या फिर भुक्तभोगी थे।
“शायद मेरा तरीका गलत हो। पर मुझे आज के समय में शांति का यही एक मात्र रास्ता दिखता है,” धीरज ने क्लास की रिंग बजने के कारण कुर्सी से उठते हुए कहा।
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datta.joshi95
ये कहानी आज के समय में अधिकांश परिवारों में सच्ची होती दिखती हैं, बुआ का निर्णय एक भोगा हुआ सत्य हैं। हो सकता हैं कुछ लोग सहमत न हो पर भावना मे न बहकर उन्होंने ( बुआ ने) जो किया वह एक शिक्षा का पाठ जरूर सिखाता है। लेखक को बधाई जो उन्होंने इसे कहने की हिम्मत की हैं।
anilmaheshvari07
kukadiadr
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