कौन सही

वीमेन्स फिक्शन
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कौन सही
मेताइन के पिता की मृत्यु हो गई थी। घर के बाहर सीढ़ियों पर ही उनके प्राण निकल गये थे । उसके पिता को, घर पर कोई ऊपर ले जाने वाला नहीं था। वो बहुत परेशान थी, क्या करे? उनके मोहल्ले में गमड़ू नाम का एक व्यक्ति रहता था, दुनिया से कुछ अलग सा था। बस सबका सुख दुःख में साथ देना, यही उसका काम था। सो गमड़ू ने मेताइन के पिता को रात भर अपने घर पर रखा और सारी रस्में कर के उन्हें वहीं से श्मशान ले जाया गया।
जहां लोग मृत्य शरीर को छूने से डरते हैं ,पास नहीं जाते वहीं गमड़ू ने उन्हें रात भर अपने घर रखा। मेताइन बहुत शुक्रगुज़ार थी गमड़ू की, कि बुरे वक्त में उसने मेताइन का साथ दिया।
मेताइन भी स्वभाव से सब का सुख दुख बांटनेवालों में से थी। अगर किसी के यहाँ मृत्यु हो जाती वो उनका साथ देती, उनके घर जाती, उनको अपने घर बुलाती.कोई शुभ अशुभ नहीं मानती थी ,बस एक ही सोच थी दूसरों की मदद करना।अगर किसी के पति की मृत्यु हो जाती और उसका कोई नहीं होता तो उसको अपने घर बुलाती और जो भी मायका वाली रस्मे होती वो निभाती।उसका मानना था कि खुशी तो सब बाँट लेते हैं, लेकिन मौत का दुःख और रस्में कोई नहीं बाँट सकता।
मेताइन को कभी मौत का डर नहीं रहा, और न ही वो दुनिया की उन झूठी रस्मों को मानती थी जिनका कोई अस्तित्व न था बस वो तो उन लोगों के साथ होना चाहती थी, जो अकेले हो गए थे।
समय बीता और एक दिन मेताइन भी उसी अवस्था में पहुंच गई.मेताइन के पति की मृत्यु हो गई। उसने अपने को बहुत सम्भालने की कोशिश की,लेकिन नहीं सम्भाल पायी. वो इन्तेज़ार करती रही कोई उसके पास आएगा, उसको कोई बुलाएगा पर सब ने जैसे मौन धारण कर लिया हो. वो परेशान हो गई,सोचने लगी कि ऐसा क्या हो गया जो कोई बुलाना और बोलना नहीं चाहता.
फिर एक दिन जब उससे नहीं रहा गया तो उसने अपनी सहेली को फोन किया, मेताइन ने कहा कि वो उसके घर आना चाहती है, सहेली ने भी पहले हाँ कर दी और जब बातों बातों में उसे पता चला कि मेताइन अभी तक अपने मायके नहीं गई और उसने वो सारी रस्में नहीं निभायी जो पति की मृत्यु के बाद निभानी चाहिए, तो उसने भी बहाना बना कर मेताइन को अपने घर आने से रोक दिया.
ये वहीं सहेली थी जिसके पति की मृत्यु हो गई थी और उस का मायका नहीं था तो मायके वाली सारी रस्में मेताइन ने निभायी थी और जब उसको जरूरत थी तो कोई साथ न था. उसने अपने जानने वालों के यहाँ आने के लिये पूछा, लेकिन किसी ने मेताइन को अपने घर नहीं आने दिया,क्योंकि उनका कहना था,एक साल के बाद तुम किसी के घर आना जाना जब सारी रस्में हो जाये,और उसे ये भी समझाया जाता कि अभी किसी के यहाँ दुःख में मत जाना, तुम और दुःखी हो जाओगी, ऐसी जगह जाओ जहां खुशी हो. जहाँ जहां मेताइन को लगा वो जा सकती है उसने कोशिश की,लेकिन सब बेकार.
फिर एक दिन उसने गमड़ू से बात की, उसने कहा, मेताइन तू समझी नहीं लोगों को, ये तुझे अब मनहूस मान रहें हैं, वो नहीं चाहते तू उनके घर आये अब तुझे वो अपनी खुशी में भी शामिल नहीं करना चाहेंगे। उनको लगता है कि रस्में निभा लेने से शायद तू शुभ हो जाएगी पवित्र हो जाएगी, लेकिन ये लोग बुद्धी वाले नहीं जानते कि तू तो कभी अशुभ थी ही नहीं, जो लोगों का दिल से अच्छा करना चाहती हो वो अशुभ कैसे हो सकती है।तू इनका साथ मत ले, छोड दे इनको, बुद्धी वाले, दिलवालों तक कभी नहीं पहुंच सकते। तू मजबूत है, तू एक दिन सम्भल जायेगी,मुझे पता है, बचपन से जानता हूँ तुझे, तू गिरने वालों में से नहीं है। बस एक बात का ध्यान रखना, जो तेरे साथ हो रहा है तू किसी के साथ मत करना, तू जैसी थी वैसे ही रहना, देखना एक दिन तुझे लोग मानेंगे।
मेताइन अब कुछ शांत सी हो गयी थी. अब वह समझने लगी कि दुनिया सिर्फ रस्मों पर चलती जिसके पीछे क्या कारण है किसी को नहीं पता .सब भेड़ चाल चल रहे. कहाँ जा रहें, किसी को नहीं पता, कोई दुःखी है, वो नहीं दिखता, दिखती है तो सिर्फ खोखली रस्में।
लेकिन आज वो अकेली थी, सिर्फ और सिर्फ अपनी सोच के साथ सिर्फ एक सवाल था उसके मन में,
क्या गमड़ू और वो सही जिनको मौत से कभी भय न था जो मौत को अपना मानते है।
या वो सही जो मौत को डर और दूसरे को दुःखी कर के उसकी झूठी रस्मों को निभाने को मानते है।
मेताइन किसी को भी गलत नहीं मानती ,और आप
कौन सही???

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