JUNE 10th - JULY 10th
दूसरा मौका !
कहते हैं कि हमारे खयाल हमारे बस में नहीं होते, अगर कुछ बस में होता है तो वो है उन खयालों का चुनाव..
जो हम अपनी ज़िंदगी में चाहते हैं और वही खयाल हमारी ज़िंदगी भी बनाते हैं..
जिन खयालों को हम बार बार दोहराते हैं...
और उन खयालों पर ही सब निर्भर करता है..
जो तुम्हारे अंदर है वो तुम्हारी ज़िंदगी में भी इक न इक दिन ज़रूर दिखाई पड़ता है..
ज़रूर दिखाई पड़ता है..
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शाम के 4:30 बज रहे थे..
आज रवि का दिन बड़े ही धीमे और बेचैनी में गुज़र रहा था..
इसका मूल कारण, आज का आने वाला रवि का 12वीं का रिज़ल्ट..
रवि के पिता, मां और छोटा भाई और बड़ी बहन बोहोत उत्सुक थे, और उन्हें रवि पर पूरा भरोसा था क्यूंकि रवि था भी बोहोत मेहनती..
मगर रवि कुछ परेशान सा लग रहा था उसके चेहरे से ये साफ़ दिखाई दे रहा था..
रवि अपने मन कि बातें जो उसे परेशान किया करती थीं वो अपनी डायरी में सब उतार दिया करता था..
ऐसा करने से उसको बोहोत सुकून मिलता था..
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रवि का कमरा पहले माले पर था..
कमरे का दरवाज़ा खोलते ही सामने की ओर रवि की मेज़, एक कुर्सी और उसकी दाईं ओर एक बालकनी थी..
मेज़ के ठीक ऊपर की दीवार पर 95% का पोस्टर लगा हुआ था..
और कुछ Motivational Quotations भी उसकी दीवार घेरे हुए थे..
रवि की वो डायरी अक्सर मेज़ पर ही रखी रहती थी..
क्यूंकि रवि के कुछ दोस्त तो थे मगर कोई उसके मन का हाल जो सुनना चाहे, तो वो बस उसकी ये डायरी थी..
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रवि अपने मोबाइल फोन में 4:55 का अलार्म लगाता है अपने रिज़ल्ट से सटीक 5 मिनट पहले..
रवि अपनी कुर्सी पर बैठता है और अपनी डायरी खोलता है..
कलम मेज़ पर ही होती है मगर रवि को लिखने का मन नहीं करता, उसको आज लिखने का खयाल भर ही भारी पड़ रहा था..
रवि ने बैठे बैठे अपनी मेज़ पर सिर झुका लिया और
उसका मन आज ऐसे खयालों की तरफ दौड़ रहा था जो उसको डर का एहसास करा रहे थे..
रवि के मन का हाल -:
अगर मेरे 95% नहीं आए तो, क्या मुंह दिखाऊंगा मैं अपने दोस्तों को..
अगर मेरे दोस्त मुझसे आगे निकल गए तो मैं कैसे उनके साथ सांस ले पाऊंगा..
वैसे भी उन्हें मुझसे मतलब कहां वो तो मेरी हार को अपनी जीत ही समझेंगे ना..
मैंने मेहनत तो की है मगर मेरे दोस्त मुझसे कई ज्यादा होशियार हैं..
बस यूं ही ये खयाल दोहराते दोहराते उसके कानों में ये आवाज़ शोर बनकर गूंजता है कि अचानक उसका अलार्म बज उठता है..
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रवि अपनी मेज़ से सिर उठाता है और उसका 4:55 का फोन में लगा अलार्म बंद करता है और नीचे की ओर जाता है..
जहां उसका कंप्यूटर रखा होता है..
रवि के पिता, मां , छोटा भाई और बड़ी बहन उसके साथ उसका हौसला बढ़ाने उसके साथ बैठ जाते हैं..
रवि अपने परिवार वालों से अपना डर छुपाते हुए..
रवि -:
अरे आओ आओ बस ये मैंने अपनी आईडी डाली और मेरा रोल नंबर और...
ये --- एंटर..
पेज लोड हो रहा है अभी खुल जाएगा बस ---
हा हा अरे खुलजा भयी..
और रिज़ल्ट सामने आता है और रवि के पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है..
उसको जिस बात का डर सता रहा था आख़िर वही हुआ..
उसका 12वीं का रिज़ल्ट था 75% जो कि उसके लक्ष्य 95% के आस पास भी नहीं था..
रवि सुन्न सा पड़ जाता है..
रवि के चेहरे का हाओ भाव देख उसकी बड़ी बहन माहौल को हल्का करने की कोशिश करती है..
रवि की बड़ी बहन-:
अरे रवि भाई तू कुछ बड़ा करने वाला है लाइफ में देखना इन मार्क्स से थोड़ी कुछ होता है मेरे तो 60% आए थे चलो घर में किसी ने तो बढ़ोतरी की..
अरे मेरा भाई चलो मां मिठाई बनाते हैं अब भाई कॉलेज वाला हो जाएगा ..
रवि के पिता -:
हां बेटा तुम्हारी दीदी इशा ने बिल्कुल सही कहा और हां भई आज तो मुझे भी मीठा खाने से मत रोकना,
बेटा तेरे लिए कुछ लाया हूं, तू रुक मैं अभी आता हूं..
रवि की बड़ी बहन-:
चलो मां, छोटे चल भैया के लिए कुछ सोचा था ना तुमने..
रवि का छोटा भाई -: अरे ! दीदी चलो चलो !
रवि की बड़ी बहन-:
और ज्यादा इस बारे में सोचने की जरूरत नहीं भाई ये परसेंटेज तुम्हारी आने वाली ज़िंदगी में कुछ मायने नहीं रखेंगे.. (और इशा चली जाती मां का हाथ बटाने)
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गुमसुम सा रवि सुन तो सब रहा था लेकिन इस वक़्त कुछ समझने की हालत में नहीं था..
उसका मन देहशद के कारण धुंधला सा पड़ता जा रहा था..
तभी उसकी फोन की घंटी बजती है और वो अपनी सोच से बाहर आता है..
वो देखता है कि उसके दोस्त सुनील का फोन है जो कि उसी के क्लास में था..
वो फोन उठाना तो नहीं चाहता था लेकिन उठा लेता है..
रवि का दोस्त सुनील -:
अरे भाई क्या रहा रिज़ल्ट तेरा..
तेरे भाई के तो 92% आए हैं ..
यार 98% का टारगेट रखा था..
पर कोई नहीं यार लास्ट मोमेंट की तैयारी के हिसाब से ठीक ही हैं..
अरे तेरा रिज़ल्ट तो बताया ही नहीं तूने..
हेल्लो रवि मेरी आवाज़ आरी है , हेल्लो रवि..
हेल्लो...
रवि की आंखें घुस्से से लाल हो चुकी की और ये घुस्सा उसको ख़ुद पर था..
रवि को अब ये विश्वास हो चुका था कि अब वो एक हारा हुआ इंसान है..
उसके हिसाब से अब सब कुछ खत्म हो चुका था, और अब कुछ ज़िंदगी में करने को नहीं बचा था..
रवि ख़ुद पर से अपना आपा खो बैठा था उसे आगे पीछे कुछ नहीं सूझ रहा था..
बस वो खुदको मिटा देना चाहता था..
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रवि अपने कमरे की ओर तेज़ी से भागता है,अपने कमरे का दरवाज़ा खोलता है और सबसे पहले 95% वाला पोस्टर अपनी दीवार से फाड़ फेंकता है..
और तमाम दीवार पर लगे मोटिवेशनल कोटेशन एक एक करके फाड़ देता है..
लेकिन इससे भी उसकी मन की तकलीफ़ को कोई खास आराम नहीं मिलता..
और रवि अगले ही पल में ऐसा कदम उठा बैठता है जो उसके परिवार का दिल दहला देती है..
वो अपने कमरे की बालकोनी से कूद जाता है..
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फिर एक ऐसी विचित्र घटना घटित होती है जिसका अनुमान सपने में भी लगाना मुमकिन नहीं है..
जो सच और झूठ से परे है, एक ऐसी दुनिया जो सिर्फ एक कहानी भर ही लगती है..
जिस कहानी का कोई वजूद नहीं है लेकिन वो फिर भी सच है..
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रवि के कूदने से कुछ घंटो की कहानी -:
रवि को अस्पताल ले जाया जाता है उसको आईसीयू में रखा जाता है मगर लाख कोशिशों के बाद भी डॉक्टर को ये खबर उसके घर वालों को देनी पड़ती है...
सॉरी रवि इस नो मोर...
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मगर रवि जहां गिरा था वह अब भी वो वहीं मौजूद था उसने खुदको को अपने शरीर से अलग होता हुए देखा था इस बात ने उसके होश उड़ाए हुए थे..
कुछ दिन उसके बेखयाली के अंदर बीते..
लेकिन रवि को इस बात का पता लगाना था क्या सच है क्या झूठ है..
वो अपने घर की तरफ जाता है जहां उससे इस बात का एहसास भी होने लगता है कि न तो उसे कोई सुन पा रहा है और न ही उसे कोई देख पा रहा है..
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वो अपने घर में प्रवेश करता है, वहां उसे अपनी तस्वीर दिखाई पड़ती है..
जहां उसके सामने कई पड़ोसी, रिश्तेदार बैठे हुए थे और उनकी झूठी सांत्वना उसे बड़े अच्छे से मालूम पड़ रही थी..
लेकिन रवि की नज़रें अपनी मां, पिता और दीदी को ढूंढ़ रही थी..
रवि उनके कमरे में जाता है और देखता है उसकी मां बीमार पड़ी है..
रवि की दीदी और छोटा भाई भी वहीं थे मां की देखभाल और मेरी गलती के लिए उनको भुगतना पड़ रहा था..
वहां लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे कि रवि की मां सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई..
उससे ये दृश्य देखा नहीं जाता वो दूसरे कमरे में जाता है जहां उसके पिता अपने हाथ में एक नया लैपटॉप लिए खुद से बातें कर रहे हैं..
रवि के पिता (रोते हुए) -: बेटा देख तेरे लिए नया लैपटॉप तुझे चाहिए था ना, आजा बेटा आजा..
रवि बेटा आजा बेटा...
रवि को याद आता है कि उसके पिता ने अच्छे मार्क्स लाने पर वादा किया था कि लैपटॉप दिलाएंगे और मेरे रिज़ल्ट आने पर मुझसे कहके गए थे..
रवि के पिता -:
बेटा तेरे लिए कुछ लाया हूं, तू रुक मैं अभी आता हूं..
रवि को पता चलता है कि उसके पिता तो बस उसकी खुशी चाहते थे ना कि कोई परसेंटेज...
रवि ने पहली बार अपने पिता को रोते देखा था..
ये उसके लिए बेहद दर्दनाक था..
वो अपने पिता के पास जाता है, पिता जी देखो मैं आगया..
देखो ना , देखो...
रवि अपनी बेबसी आख़िर सुनाता भी तो किसको, उसको अपनी डायरी याद आती है..
रवि डायरी डायरी करता अपने कमरे की तरफ दौड़ता है उसके मन में यही चलता है ये सब एक झूठ है..
मगर कमरे में पोहोचकर रवि के हौसले परस
हो जाते हैं..
वहां पोस्टर नहीं थे लग रहा था वहां सफाई की गई थी..
लेकिन डायरी अब भी मेज़ पर थी...
रवि अपनी कुर्सी पर बैठता है..
और फुट फुट कर रोने लगता है और खुद के कीए पर पछतावा करता है..
रवि -: हे भगवान् ये मुझसे क्या हो गया मैंने ये अपने परिवार के साथ क्या कर दिया..
मैं इतना स्वार्थी कैसे हो सकता हूं भगवान् की मैंने अपने परिवार वालों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा..
ये मुझसे ये क्या हो गया भगवान् उनका प्यार मैं कभी देख क्यों नहीं पाया..
अब मैं क्या करूं भगवान् काश की सब पहले जैसा होता..
ये दिन मुझे कभी ना देखना पड़ता..
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रवि रोते रोते अपना सिर मेज़ पर झुका लेता है और पछतावे की आग में वो तपने लगता है..
गर्मी इस्कदर बड़ने लगती है कि वह शरीर को जलादे की अचानक एक तेज़ आवाज़ सुनाई पड़ती है..
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पसीने से लथपथ रवि मेज़ से अपना सिर उठाता है और बड़ी ही हैरानी से देखता है..
वो आवाज़ रवि के फोन अलार्म की थी और समय हो रहा था 4:55 रवि के रिज़ल्ट से सटीक 5 मिनट पहले..
सारे पोस्टर वैसे के वैसे दीवार की रौनक बढ़ा रहे थे..
रवि को यह नहीं जानना था ये सपना था कि कोई करिश्मा या उस रब की मेहर..
बिना कुछ सोचे रवि नीचे की ओर भागा और सब वैसा का वैसा खुशहाल नज़ारे से गद गद हो उठा..
रवि ने अपने मां, पिता , दीदी और छोटे भाई को गले लगाया..
हालांकि कोई समझ नहीं पा रहा था रवि की खुशी का कारण पर रवि को हस्ता खेलता देख उसके घर वाले भी झूम उठे..
और एक सपना कहो या करिश्मा इसने रवि और उसके परिवार की आने वाली ज़िंदगी खुशहाल करदी..
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अब आप सोच रहे होंगे आख़िर रवि का रिज़ल क्या रहा ? यही सोच रहे थे ना..
अरे भईया जब रवि ये समझ गया कि उसने अपने हिस्से कि मेहनत करदी अब उसका कोई भी रिज़ल्ट हो उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता..
तो आप क्यों नहीं समझते किसी असल में ज़िंदगी कोई रेस नहीं है जिसमें आपको सबसे आगे रहना है है..
ये तो एक वो खूबसूरत सफ़र जहां सबके साथ चलने से ये सफ़र और भी हसीन और खुशनुमा हो जाता है..
By - सिद्धार्थ कौशिक ( Siddhartha Kaushik )
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