JUNE 10th - JULY 10th
पड़ोसी
"अम्मा मेरी नज़र में एक लड़का है अपनी विनीता के लिए।"
सूचना जैसी बात कहकर मीना पलभर को खामोश हो गई।
अम्मा ने कढ़ाई में लगी चारों तरफ की मलाई करछुल से खुरचकर बीच में करते हुए बेटी मीना की ओर प्रश्न वाचक निगाहों से देखा जो पास ही पटली पर बैठी अपने पैर के बिछिये को अंँगुली और अंँगूठे से दांँये से बाँये, बांँये से दाँये घुमा रही थी।
"आगे भी कुछ कहोगी या यूंँ ही हवा में अंडे उड़ाओगी" अम्मा ने कुछ उलझे स्वर में कहा।
"अम्मा जिस लड़के की बात हम कह रहे वह हमारे खानदान में लग्गा तन्ना वाले देवरों में लगता है खूब खाते पीते घर का है..."
खाता पीता घर... और हमारे यहाँ रिश्ता...अम्मा का खीझा स्वर झुंझलाहट में बदल गया। चुभती आवाज में बोलीं
"घर में नहीं दाने और अम्मा चलीं भुनाने..." मीना तू तो इसी घर की बेटी है क्या तुझसे इस घर की स्थिति छुपी हुई है जो तू अपनी बहन विनीता के लिए खूब खाते-पीते घर का रिश्ता लेकर आई है...?"
अम्मा आगे कुछ और कहती इससे पहले मीना ने उन्हें टोकते हुए कहा
"अम्मा पहले पूरी बात सुन तो लो फिर न गमगमाना... इस बार मीना के स्वर में भी थोड़ी खीझ थी
बेटी को रूठा हुआ जान अम्मा कुछ नरम पड़ी फिर बोलीं
"अच्छा बोल क्या कह रही थी ?"
"जाओ... मैं नहीं बताती। जो मर्जी हो सो करो। मैं तो तुम्हारा बोझ हल्का करने की सोच में घुलती रहती हूंँ और तुम हो कि...।"
"अरे! छोड़ो गुस्सा बात पूरी करो। अब कह तो दिया, नहीं बोलूंँगी। अम्मा ने बेटी मीना की बांँह सहलाते हुए मनुहार सी की।
"लड़का दुजाहू है।"
कहकर मीना, मांँ का चेहरा देखने लगी। चूल्हे में जलती पीली लपट जैसे मांँ के चेहरे पर अपना रंग छिड़क गई।
कुछ क्षण ठहरकर उसने कहा "एक पाँच साल का बेटा भी है उसका..."
"चुप कर मीना। अब इत्ते भी विनीता के नसीब खोंटे न हैं कि अधबुढ़रे से मेरी विनीता की शादी हो और वह भी बच्चे वाला
।"
अम्मा की सांसें क्षोभ से तेज हो गई। मुंँह पर पसीने की बूंदें चुचुहा उठीं जिसे उन्होंने अपने आंचल से पोंछा और औठे हुए दूध की कढ़ाई उतारकर नीचे रखी।
मीना भुनभुनाती हुई चौके से बाहर निकलकर कमरे में आकर विनीता के पास बैठ गई।
"क्या हुआ दीदी गुस्सा क्यों लग रही हो ।" विनीता ने अपनी एम ए की किताबें उलटते पलटते हुए पूछा
"क्या कहूंँ... अम्मा को...वे तो जैसे कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं होतीं... हमारा एक खानदानी देवर है। एक्सपोर्ट,इम्पोर्ट का बिजनेस है। जल्दी शादी हुई और उसी साल बच्चा। बच्चे को जन्मते ही उसकी बीबी चल बसी। उसी से मैंने तुम्हारी शादी की बात चलाई लेकिन अम्मा तो हत्थे से ही उखड़ गई। अरे! एक बार देख तो लो, फिर ही फैसला लेना। और फिर इस घर के हालात भी मुझसे कोई छुपे तो हैं नहीं...। एक खड़खड़िया साइकिल, एक गइया, चूना पुती दीवारें, पुरानी साड़ी के पर्दे फटा सोफा और चुहरें ठुकीं बान की दो खटियांँ । कहांँ से दहेज देकर लाया जायेगा तेरे लिए अच्छा घर वर... मेरी तरह तुझे भी किसी गरीब शराबी के पल्ले न बंधना पड़े इसी से मैंने अम्मा को ये रिश्ता बताया था । लेकिन अम्मा तो बच्चे वाले दुजाहू के नाम से ही भड़क गईं।"
मीना अपनी बात कहकर विनीता की प्रतिक्रिया के इन्तजार में खामोश हो गई।
विनीता की आंँखों की पुतलियांँ भविष्य के गर्भ में छिपे सत्य को खोजने को आतुर हो अनायास ही चंचल हो उठीं। एक तरफ दुजाहू उसके चित्त में खूंटे सा धंँसा था दूसरी और कल्पित अभिजात्यता उसके हृदय में हिलोरें मार रही थी।
कुछ क्षण चुप रहने के बाद उसने मीना से कहा
" दीदी आप अम्मा से ठीक से बात कर लो, अम्मा अभी अपनी गरीबी से डरी हुई हैं इसलिए वह समझ नहीं पा रहीं ।"
मीना ने विनीता की आंँखों में झांँकते हुए पूछा
"पर विन्नो तुझे तो कोई ऐतराज नहीं है न...।
दीदी ईश्वर ने हम गरीबों को चुनाव का अधिकार ही कहांँ दिया है...
हमे तो मिल जाए उसे ही अपना अहोभाग्य मानकर स्वीकारना होता है न।
विनीता ने एक ठंडी सांँस खींचते हुए कहा।
मीना उसकी बात से आहत तो हुई लेकिन कहीं न कहीं सहमत भी।उसने कहा
"ठीक है मैं मांँ से फिर बात करती हूंँ।"
मीना ने अम्मा को एकबार फिर दुनियावी ऊँच नीच समझाते हुए कहा "अम्मा आदमी की उम्र और औरत का रुतवा हमारे समाज में माइने नहीं रखते और हांँ इस रिश्ते को हलुवा न समझ लेना इसके लिए भी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। क्योंकि वह लड़का है बड़े घर का। तो उसका रहन सहन बात व्यवहार सब ऊंचे दर्जे का है। अपनी विन्नो ठहरी सीधी सादी। उसे बहुत कुछ बाहरी दुनिया का भी सीखना पड़ेगा।
पड़ोसिन चाची का फोन नम्बर मैं लड़के को दे दूंगी और जब वह फोन करे तो विनीता को बात करने के लिए भेज दिया करना।
आपस में जाने समझेंगे तो बात आगे बढ़ाने में आसानी होगी...।"
यह उस जमाने की बात है जब पूरे मोहल्ले में किसी एक के घर पी एन टी फोन होता था और उसी से पूरे मोहल्ले का काम चल जाता था।
"विन्नी तेरा फोन है" पड़ोसिन चाची की बिटिया इला ही पूरे मोहल्ले से सबको बुलाने या खबर पहुँचाने का काम करती थी।
इला जैसे ही विनीता का दरवाजा खटखटाते हुए पुकारती, विनीता नंगे पांँव अपना दुपट्टा दुरुस्त करते इला के पीछे हो लेती।
जैसे फोन के दूसरे छोर पर बैठा व्यक्ति एक लम्हा हो, जो पलक झपकते ही फिर कभी लौटकर न आयेगा।
प्यार की पींगे दोनों ओर बढ़ चलीं थीं । यह अलग बात थी कि किसी को पैसा चाहिए था तो किसी को देह।
कभी बातों बातों में फोन के दूसरी ओर से कोई अन्तरंग प्रश्न उछलता तो विनीता ऐसे लज्जा से लाल हो जैसे मकोई का विरछ।
वह झट से फोन इला को पकड़ा देती और इला बात सम्भाल लेती।
"विनीता चल जल्दी और हांँ अपनी सबसे अच्छी साड़ी भी ले ले। जो कुछ ज्वैलरी और मेकअप का सामान हो वह भी ले चल।" कहकर इला ने लगभग अपने घर की ओर दौड़ सी लगा दी।
सुबह से ही विनीता की मांँ और मीना पूरा कच्चा घर गाय के गोबर से लीप पोत चुके थे। घर में पुरानी साड़ियों के पर्दे धुल कर फिर अपनी जगह लटक गये थे। गाय आज पीछे पड़े खण्डहर में बांँध दी गई थी। चापाकल से पानी ढ़ार ढ़ार के सड़क और नाली तक धो डाली गई थी। कुछ कुछ ऐसा ही हाल पड़ोसिन चाची के घर का भी था। फिनायल से सारा घर धुल चुका था पूरे घर में रूम फ्रेशनर छिड़का जा चुका था ड्रांइग रुम की सेंटर टेबिल पर सुन्दर आर्किड के फूलों का गुलदस्ता सजा था। साइड टेबल पर मोमबत्ती स्टैंड में मोमबत्तियां सजा दी गई थीं। हल्के गुलाबी रंग के रेशमी पर्दे अपनी काले रंग की झालरों के साथ दरवाजे और खिड़की पर इतरा रहे थे। लेवन्डर की खुशबू से भभकता कमरा अपने अंग अंग में जादू जगाये खड़ा था। जादू तो आज दोनों घरों के जनों में भी समाया था लेकिन सिंड्रेला कहानी की परी हर चूहे को घोड़ा कहांँ बनाती है।
आज लड़का विनीता को देखने आ रहा था। दिखाई का बन्दोवस्त तो पड़ोसिन चाची के घर रखवा दिया लेकिन खुदा न खास्ता लड़का विनीता का घर देखना चाहे तो… मना तो नहीं न किया जा सकता ।
विनीता को इला ने बड़े जतन से उसकी बहन मीना की दी साड़ी में तैयार कर दिया। कैसे उसे चाय की ट्रे लाना है कैसे उसे उठना, बैठना, बोलना, मुस्कुराना है सब इला ने उसकी प्रोग्रामिंग की ।
विनीता के साथ इला भी सहबोला की तर्ज़ पर तैयार हुई। उसने भी सुर्ख लाल कलर की लिलेन की साड़ी पहनी और बालों में लाल रंग का गुलाब खोंस सज संवर गई।
दोनों घरों की रसोई से पकवानों की महक आ रही थी। एक रसोई से पूड़ी, कचौड़ी घुइयां, कटहल ,आलू, खीर की तो दूसरी रसोई से फ्राइड राइस, मनच्यूरियन, बर्गर, पनीर, डोनट और पुडिंग की।
आइये चाची आज कैसे सुबह-सुबह आना हो गया। विनीता की दूसरी पड़ोसन नीना जी ने सुबह सवेरे अपने घर में इला की माँ को देख किंचित आश्चर्य से पूछा
"अरे! क्या बताएंँ नीना, इला को देखने वाले आ रहे नीलाभ पैलेस में, तो हमने सोचा कि तुम्हें भी बुला लूंँ आखिर तुम इला की प्यारी भाभी जो ठहरीं।" कहकर पड़ोसिन चाची खिलखिला कर हंँस दीं।
"नीलाभ पैलेस" नीना का मुंँह कुछ आश्चर्य से खुला रह गया क्योंकि नीलाभ पैलेस कस्बाई पांँच सितारा होटल में गिना जाता था। उसमें जब तक जेब अच्छी खासी गर्म न हो जब तक मध्यम वर्गीय परिवार वहांँ जाने की ख्वाब में भी नहीं सोचता, लेकिन लड़की दिखाई की बात है तो खर्च तो होगा ही । सोचते हुए नीना ने फ्रिज से मिठाई निकालते हुए कहा
"चाची जी मुंँह तो मीठा कीजिए।
चलो अच्छा है मोहल्ले की दो दो लड़कियों के हाथ पीले हो रहे।
"अच्छा मैं चलती हूंँ, बहुत काम है। इला की तीनों बहनें भी आ गई हैं। तुम आना जरूर।" कहती हुई उनकी आवाज गली में गुम हो गई।
होटल के अन्दर कदम रखते ही नीना को लगा कि इस बेढ़ंगी दुनिया के समानांतर ही एक नफासत की दुनिया इसी धरती पर विराजती है। होटल की गैलरी में खुशबुओं का पहरा तो था ही साथ ही इनडोर प्लांट्स के साथ हू ब हू प्लास्टिक के बड़े-बड़े प्लांट्स काॅर्नरस् में सजे हुए थे। सामने ही रंग बिरंगी मछलियों से सजा एक बड़ा सा एक्वेरियम दीवार में बनाया गया था।
"अरे! आओ नीना भाभी " हाॅल में पड़े मखमली काउच पर जमी पड़ोसिन चाची की बड़ी बेटी इंदिरा ने नीना का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा।
भाभी आप आराम से बैठो। मैं नाश्ता भिजवाती हूँ।
हाॅल में धीमा संगीत तैर रहा था। सभी मेंजो पर लाल गुलाब और सफेद गुलदाउदी से सजे गुलदान रखे थे। मंच को नीले आॅर्किड, सफेद ग्लाइडोलस और पीले कैलेन्डूला के बंच से सजाया गया था। स्टेज के बीचों-बीच एक लाल कलर का सोफा रखा था। जिसके पाये और पुश्त चांदी जैसी चमकीली धातु से मढ़े थे । सोफे के पीछे एयर बबल की दीवार मायावी समां रच रही थी ।
बैरे मेहमानों के आगे चीज़ बाॅल्स, कटलेट्स, फिंगर फ्राई, तले हुए काजू, टूथ पिक लगे मखाने और छोटी बर्फी की ट्रे लिए आवभगत में जुटे थे।
"भाभी खाना खा लो। सब लोग खाने के लिए लाॅन में जा चुके हैं।" इन्दिरा ने नीना से कहा।
फूड कोर्ट में पूरे भारत के पकवान सजे थे
"अरे! कमाल है इंगेजमेंट में इतना? तो शादी में पड़ोसिन चाची क्या ही करेंगी
" मन ही मन सोचती नीना को अपने पड़ोसी से रश्क़ जैसा कुछ महसूस होने लगा।
नीना यार महावर कहीं नहीं मिल रहा? हाँफती काँपती चाची नीना के कान में फुसफुसाई
"क्यों महावर का क्या करेंगी चाची इंगेजमेंट में महावर कौन लगाता है?" नीना ने पूछा।
"अरे! नीना क्या बताएंँ लड़के वाले कह रहे अभी ही शादी कर दो। बार-बार कौन आयेगा पंजाब से यहांँ यूपी और फिर-फिर ये सारा तामझाम किसलिए करना। जब लड़की हमें पसंद है... ।"
"फिर शादी की रस्म की और चींजे कहाँ से आयेंगी?" नीना ने कौतुहल में पूछ डाला
"अरे! और सब तो हो गया।
होटल के किचन से हल्दी और आटा मिल गया है चौक पूरने के लिए, जग को कलश बना लिया ,गमले में सींक गाड़ कर खम्ब और आधे नारियल के टुकड़े में टिशू पेपर और कपूर जला के फेरे करवा देंगे। लिपस्टिक से मांग भर जायेगी लेकिन महावरी…
"महावरी भी लिपस्टिक से लगा देना इसमें कौन बड़ी बात।" नीना ने ठिठौली ही की थी, लेकिन चाची को तो मानों उपाय मिल गया
'हाॅल में बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है' गाना बज उठा और एक तरफ से दुल्हा वरमाला पकड़े स्टेज पर प्रकट हुआ दूसरी तरफ से इला दुल्हन के श्रृंगार में वरमाला थामे जगरमगर करती हुई आई।
एक पल के लिए नीना को अपनी आंँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ, अरे! ये तो विनीता को देखने आया था, तो क्या…?
नीना को अनायास ही एक शेर याद आ गया-
कैसे मोहब्बत करूंँ गरीब हूंँ साहेब
लोग बिकते हैं और मैं खरीद नहीं पाता।
संध्या तिवारी
पीलीभीत
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