ईमानदारी

mayank agnihotri
हास्य कथाएं
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ईमानदारी
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ईमानदार होना किसी पर उपकार या एहसान करना नही, बल्कि यह एक फ़र्ज़ है।
जो कि इस नकली ज़माने में कब फर्जी बन जाए कोई क्या ही जाने।

दुनिया के लोगों द्वारा मुझे इस बात का इल्म बराबर कराया जाता रहा कि मैं स्वयं के प्रति ज़रा ईमानदार भी नही हूँ। दुनिया के लोग कोई विशेषण या क्रिया नहीं है, पर यह वह लोग जरूर हैं। जिनके बनाए नियमों, मिथकों, नीतियों को ना मानने वाले को बेईमान कहा जाता है।
पर यदि अपनी बात करूँ तो मुझे स्वयं के प्रति ईमानदारी वाली यह वाली फिलोसॉफी कभी पल्ले ना पड़ी। उल्टा ईमान की बात करने वालों को बेईमानी के आरोप की वजह से जेल जाते जरूर देखा है। सच्चाई यह है कि अगर मैंने भी अपने प्रति ज़रा सा भी
ईमान - धरम रखा होता, तब भी मैं साख पर बैठा उल्लू ही होता।

परसाई जी भी कह गए हैं कि -

"जो अपने युग के प्रति ईमानदार नहीं है, वो अनन्त काल के लिए क्या ईमानदार होगा..!"

पर भाई !
कोई इतना अधिक ईमानदार कैसे हो सकता है ..?
और ये युग के प्रति ईमानदारी क्या बला है ?
ईमानदारी उसके बाप की बपौती है, जो हम उसके प्रति ईमानदार होकर उसका चरण चारण करते फिरें।
और ये ससुर है कौन , कहाँ रहता है, अता पता मालूम नहीं, उसके प्रति कोई दीवाना ही ईमानदार रह सकता है। पर हम मिट्टी के माधव नहीं है।

खैर एक दिन मेरी ईमानदार प्रेमिका मेरे कमरे पर आई हुई थी। हाँ आप इसे बुलाई हुई भी कह सकते हैं। मैंने अपने ईमानदार प्रेम की दुहाई देकर, जैसे तैसे उसे रूम में लाने के लिए राजी कर लिया था। लौंडों का यह उपक्रम वर्जिनिटी ख़त्म होने की प्रथम सीढ़ी के रूप में कालांतर से गिना जाता रहा है।
पर प्रेम में तो atleast ईमानदार होना ही चाहिए। भले ही आपका प्रेम आपकी औकात के बाहर का ही क्यूँ ना हो, पर प्रेम की प्रथम शर्त ईमानदारी ही है।
इसीलिये मैंने कभी भी वर्जिन ना रहने के अन्य उपायों की तरफ दृष्टि इंगित ना की।
पर आज प्रेम की ईमानदारी का बीड़ा उठाये हुए।
मैंने उसे , अपने प्रेम करने के चरम सुखद उद्देश्य की पूर्ति करने हेतु ईमानदारी पूर्वक कमरे बुलाया हुआ था।

आते ही उसने अपनी निग़ाह मेरे कमरे के मुखड़े पर डाली। उस अद्भुत दृश्य को अपनी नीली आँखों में सुरक्षित कैद कर लेने के पश्चात उसने मुझसे बनावटी मुस्कान के साथ (जिस मुस्कान से आज भी तमाम मर्दजात थरथराते है)। प्रश्न दागा ..
- क्या तुम कचरा विभाग के बाबू हो ?
~ नहीं तो।
- तो क्या कचरे की रिसाइक्लिंग का कोई ठेका ले रखा है ?
~ नहीं तो।
- तो क्या कचरे पर तुम्हारा कोई शोध वगैरह चल रहा है ?
~ अरे ना भाई !
- तो फिर शहर भर का कचरा इस कमरे में क्यों जमा कर रखा है ?
~ अरे... हे - हे - हे ..वो.. तो बस यूँ ही..!!

अब एक बैचरल के मन की पीड़ा वह हुस्न परी भला कहाँ समझ पाती। पर उसके सवाल पर मेरा यूँ इतराते हुए मुस्कुरा देना उसे रास ना आया, इसे उसने अपने सवाल की तौहीनी समझी और फिर मेरी खुद के प्रति बेईमानी को लेकर मुझ पर झिड़कना शुरू कर दिया। पहली शुरुआत हुई मेरी बढ़ी हुई दाढ़ी को लेकर। जो पूरी तरह से चेहरे पर आती भी ना थी। फिर मेरे कपड़ों से आ रही पसीने की खट्टी दुर्गंध को लेकर मुझे रेला गया। किचन में सदियों से झूठे पड़े हुए बर्तनों पर दृष्टि गई तो मुझे मेरे कमरे के प्रति ईमानदारी के दायित्वबोध का कराते हुए कान खींचे गये।

ईमानदारी पर उसका लेक्चर समाप्त होने ही वाला था। कि तभी बिजली गुल हो गई। और प्रकाश की टेम्परेरी व्यवस्था के लिये उसने मेरे कमरे की नाला फेसिंग विंडो को ओपन कर दिया।

दो दिवस पूर्व ही मेरे ईमानदार पड़ोसी श्री शर्मा जी का वफादार कुत्ता इहलोक से श्वानलोक गमन कर गया था। पाठकगण ध्यान देवें कि ईमानदारी और वफादारी के विशेषणों में फर्क कुत्ते और इंसान निर्धारित करते हैं।
स्वर्गीय कुत्ते श्री का नाम भारत में प्रचलित कुत्तों के नाम की तरह शेरू ही था। शेरू की शर्मा जी के प्रति वफ़ादारी के किस्से मोहल्ले के घरों में प्रसिद्ध थे।
कैसे एक दफ़ा नहीं दो दफ़ा चोरों ने शर्मा जी के घर को ईमानदारी पूर्वक लूटा। चोरी के प्रति चोरों की ईमानदारी देख वफ़ादार शेरू बेहद प्रभावित हुआ। क्या मज़ाल की एक बार भी गलती से खाँसा तक हो। जब चोर घर का सारा सामान ले गए। तब जाकर शेरू ने चैन की साँस ली और ख़ुशी के मारे दम लगाकर भौंका।

शेरू मरा नही था। ईमानदारी पूर्वक कहें तो वह क़ुर्बान हुआ था.. पम्मी के इश्क़ पर क़ुर्बान।
और उसकी यह गति करने वाले स्वयं शर्मा जी ही थे।

हुआ कुछ यूँ के एक रोज़ सुबह के वक़्त शर्मा जी कि वृद्ध माताजी शेरू को लेकर मॉर्निंग वॉक हेतु निकलीं। साथ ही मिसेज मेहरा भी अपनी कुतिया पम्मी के साथ वॉक पर निकली।

पम्मी की ओर देखते ही शेरू के मन में प्रायः ही पम्मी के प्रति ईमानदार प्रेम की ज्योत ठीक वैसे ही जग जाती।
जैसी ज्योत प्रेमिका को देखकर मेरी जग जाती है।
परन्तु अफ़सोस शेरू को पम्मी दर्शन यदा - कदा ही मिल पाते। कारण मिसेज मेहरा का सुबह उठने का आलस।
ऐसे में वह मन ही मन पम्मी को याद कर जार - जार रोया करता। और शरमाईन अपने बच्चों से कहती देखो शेरू को अपनी माँ की याद आ रही है। अगर तुमने फिर शैतानी की तो मैं भी घर छोड़कर चली जाऊंगी, फिर तुम भी रोना शेरू की तरह।

पर आज कई दिनों के बाद शेरू ने पम्मी के रूप लावण्य का जी भर कर रसास्वादन किया। उसने पम्मी की इतराती निगाहों में अपने प्रति उपजी प्रेम की भावना को देखते ही पहचान लिया। जब दो प्रेम करने वाले एक हो जाना चाहते हों। तब कोई माई का लाल उन्हें अलग नहीं कर सकता। यह जानकारी शेरू ने बॉलीवुड की फिल्म्स देख कर सीख ही रखी थी।
अचानक ही शेरू की प्रेम पतंग उसके नियंत्रण से बाहर होकर आप ही हवा में टँगने लगी, तब उससे रहा न गया। वृद्ध माँ के बुढ़ापे का भी लिहाज़ न करते हुए वह पम्मी की ओर झपटा।

इस अपट झपट और ठरक को अम्मा जी ने रोकने का भरपूर प्रयास किया। इन्ही प्रयासों के चलते उन्हें अपनी जान भी गँवानी पड़ी।
उनका माथा बिजली के खम्भे से जा टकराया। और लगभग 3 दिन अस्पताल में व्यतीत करने के बाद वे गोलोक प्रस्थान कर गईं।
अपनी माँ के साथ हुए ऐसे बर्ताव को देख कर शर्मा जी की आँखों में खून उतर आया। एक ईमानदार बेटे का फर्ज निभाते हुए उन्होंने अस्पताल से घर आते ही। अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर निकाल कर शेरू को उड़ा दिया।

इति शेरूपुराण ।

मेरी प्रेमिका की तरह शर्मा जी को भी मेरे स्वयं के प्रति ईमान ना रखने वाली बात मालूम थी। क्योंकि वे मेरी सरकारी नौकरी को देखते हुए एक बार अपनी बेटी के लिए एक ईमानदार रिश्ता ( शादी ) का प्रस्ताव लेकर मेरे कमरे तक आये थे।
पर बॉब मारले जैसी मेरी शक़्ल देख कर उन्हें अपनी बंदरिया सी शक़्ल वाली लड़की के जंकी बन जाने वाले भय का बोध हुआ। उन्होंने मुद्दे की बात पर से ईमानदारी पूर्वक अपना मुँह मोड़ा... चाय पी फिर दर्शन ना दिए।

ईमानदार प्रेम की वेदी पर शेरू को गोली मारने के पश्चात शर्मा जी ने एक ईमानदार पड़ोसी होने का धर्म निभाते हुए उसके पार्थिव शरीर को मेरी खिड़की के नीचे..जिसे शायद उन्होंने कब्रिस्तान समझा होगा।
उधर सुपुर्द ए खाक़ करवा दिया।

पर जब प्रेमिका ने खिड़की ओपन की तो शेरू की अपघटित होती कार्बनिक रूह से निकलने वाली गैस ने खिड़की के रास्ते प्रवेश पा पूरे कमरे को अपनी ज़द में ले लिया। जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप प्रेमिका की चोटी के भीतर पोस्ट्रेमा में कुछ हलचल हुई... और लगातार चार उल्टियां वह ईमानदारी पूर्वक मेरे उसी कमरे में कर गई। जिसके प्रति ईमानदार होने की जिम्मेदारी कुछ समय पहले उसने अपने कर कमलों से सौंपा था।

ईमानदारी से कहूँ तो मूड की भजिया तल गई थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे वर्जिनिटी लूज़ होने के सुखद अवसर प्राप्त होने के पूर्व ही इरेक्टाइल डिस्फंक्शन हो गया हो। हालाँकि बदबू और ख़ुश्बू की समझ मुझे कई वर्षों से प्राप्त ना हो सकी थी। क्योंकि इतने दिनों से गंदगी से आत्मसात के बाद मुझपर इन सामान्य बातों का असर ना होता था।
पर फिर भी आज मन खिन्न था। इस खिन्नता और निराशा की वजह से उसकी उल्टियों के सुर से सुर साधते हुए हुए। एक ईमानदार प्रेमी ने फ़र्ज़ निभाया और कुल ज़मा दो उल्टियाँ कमरे के गाल पर रसीद दी। प्रेम की इस महान निष्ठा को साइड करते हुए उसने मुझे ऐसे घूरा जैसे उसके अंदर मृतक शेरू उर्फ़ वफ़ादार की ईमानदार आत्मा प्रवेश कर गई हो।
तत्तपश्चात उसने मेरी नाला फेसिंग खिड़की जो कि अब कुत्तों का क़ब्रिस्तान भी बन चुकी थी। उसे इतनी जोर से बन्द किया, के उस पर लगा हुआ काँच, काँख मारते हुए चटक गया। उसने कौवे सी मधुर आवाज में मुझपर भौंकते हुए चार गन्दी गालियां सुनाई और मुझे आजन्म मेनोपॉज़ी होने का श्राप दे, वह देवी अंतर्ध्यान हो गई।

शेरू और मैं भले ही स्वयं के प्रति ईमानदार ना रहे हों, मगर अपने प्रेम के प्रति ईमानदार अवश्य थे। पर ईमानदारी का परिणाम सदैव फ़लदायक साबित नही होता । फलतः शेरू और मुझे आजन्म वर्जिन होने का श्राप मिला। जिसकी वजह से शेरू असमय ही दुनिया छोड़ गया। यहीं अगर शेरू गली का कोई कुत्ता होता तो आज वह मोहल्ले के कई बच्चों का गॉड फादर बन चुका होता।

यही बात शायद मुझपर भी लागू होती हो।

- मयंक अग्निहोत्री

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