JUNE 10th - JULY 10th
बात का बतंगड़ ना बनाते हुए सीधे कथा पर आते हैं...
वो सभ्य, संस्कारी और विवाहिता थी जिस पर इस आधुनिक कहे जाने वाले समाज के ९ वहशी दरिंदो की कड़ी नजर थी.
ये समस्या गांवों और शहरों में समान रूप से होती है,इसका लोगो की संख्या से कोई लेना देना नही हे..
बस फर्क हे तो इतना की शहर वासी सावधानी और आपसी समझ जिसे अंग्रेजी भाषा में म्यूचुअल अंडर स्टैंडिंग कहते हैं...उसी से अपना बचाव कर जाते हे ...लेकिन गांवों में भावनाओ और संवेदनाओ का आपसी जोड़ या लगाव कुछ ज्यादा ही गहरा होता है...
वैसे वहशियत और दरिंदगी तो कही भी हो सकती है,फिर चाहे वो गांव हो या शहर ,फर्क इतना ही हे की शहर में कीचड़ उछलने पर बवाल होता है और....गांवों में...गांवों में तो साफ सुथरी दिखने वाली जमीन पर भी कीचड़ ही होता हे...इसलिए...
"दरिंदगी तो कही दबा दी जाती है और, इज्जत ख़ाकसार ही नजर आती है"
कथा प्रारंभ होती हैं मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं से....
रूप का श्रृंगार हुआ नही की,आ गए भेड़िए नोचने...ये भेड़िए भी दिखावटी थे...असल में तो ये गीदड़ थे या जंगली ... नारीत्व की आबरू को दागदार करने वाले ... आवारा कुत्ते...
वैसे कहने में ये ९ ही थे पर ९०, ९०० या ९००० भी होते तो उस पवित्र नारी का क्या बिगाड़ लेते क्योंकि जिस सुंदर नारी का पावन मन कृष्ण में ही रमा हो उसके लिए सांसारिक मोह तो कुछ भी नही.....
उस कृष्ण प्यारी की शारीरिक भूख के हवसी तो कई दरिंदे बन सकते हे ,पर जैसे मीरा से कृष्ण का निश्छल प्रेम कोई नही छीन सकता, वैसे ही इस पावन सुमुखी से भी कान्हा को दूर करना ना मुमकिन था....
उस रसूखदार भट्टा ठेकेदार ने पहली ही नजर में...मुंह पर दुपट्टा ढके हुए मजदूरी कर रही सुमुखी से ....कसकर हाथ पकड़ते हुए कहा..
"अरे मेरी प्यारी सुमुखी ...जितना सुंदर तेरा रूप हे उतने ही कोमल तेरे ये हाथ हे...इन नाजुक हाथों पर ये मजदूरी का काम शोभा नहीं देता...
सिर्फ ९० रु...अरे सिर्फ ९० रु की मजदूरी... ना.. ना..सिर्फ ९० रु की मजदूरी के लिए इतना पसीना बहाना ठीक नही ...
तेरे नाजुक हाथों में छाले पड़ जावेंगे...बस एक रात की तो बात हे..थारी किस्मत भी चमका दूंगा ,और तेरे मरद की जेब को भी नोटो से..."
ऐसा ठेकेदार ने जवानी का अहसास कराने की मंशा से सुमुखी की पीठ पर अपना कड़क हाथ धरते हुए कहा/
सुमुखी खामोशी से मजदूरी करती रही ,और फिर भी कोई जवाब न मिलने पर ठेकेदार ने अपनी आवाज को बुलंद करते हुए जोर देकर कहा–क्या बोलती है छोरी ?
ए छोरी सुन,आज रात को मेरे घर आजा...९० नही... पूरे ९००रु दूंगा...तेरी फूटी किस्मत भी चमका दूंगा...
तेरे नाजुक हाथों को मेरे बदन की चमक लाने के लिए बचा के रख...और मेरे घर पर आज रात को चुपके से आ जाना...
चौक के किनारे मैं तेरा इंतजार करूंगा...बस्ती के पिछवाड़े से होते हुए नाले के पास आकर मिलना...
सुंदर ,सुघड़ चमकीले से चेहरे पर सुमुखी की सुंदरता छुपाए नही छुपती थी..पर कृष्ण भक्ति में रमी मीरा हो या सुमुखी... एसी पावन नारी हर किसी के हाथो का हार तो नही बन सकती ना...?
सुमुखी को गुस्सा तो इतना आ रहा था कि ऐसे वाहियात ठेकेदार की हड्डियों को तोड़ मरोड़ कर आवारा कुत्तों के हवाले कर दे ..पर एक तो सुमुखी ऊंचे ठेकेदार की मामूली नौकरी मजदूरी करती थी ...ऊपर से अपने पति के कर्ज तले दबी हुई भी थी...
"छोटे लोगो को तो अक्सर दबना ही पड़ता है ना , कभी आंसुओ के प्याले तो कभी निष्ठुरता का दंश भी झेलना ही पड़ता है "
तो भी आज ठेकेदार की कटु और तीक्ष्ण बातो से सुमुखी की इज्जत दांव पर लगे ,उसके पहले ही जीतना भी उससे बन पड़ा सुमुखी ने किया....
और बहादुरी से रसूखदार ठेकेदार से अपनी पीठ को ठेकेदार से हटाकर अपनी देहाती भाषा में कहने लगीं –"अरे ओ ठेकेदार थारे यहां मकान बनवाने का काम करती हु दिन रात मजूरी करके...और हा मुझे इधर उधर पकड़ने के बहाने छुने व्यूने की जरूरत नाही...
मेरी देह और तन मन पर बस कान्हा का हक है..कम सु कम तू कृष्णा भक्ति से तो डर...
मैं यहां मेहनत मजूरी को काम करन सु आई हु उसका दाम देना हे तो दे और कोई दूजी बात मत कर...अब रही बात थारी इज्जत की तो... लुगाई तो थारी भी है... उसके गले से लिपट..दूसरो के मुंह लागने की कोनो जरूरत नाही...
ठेकेदार रोबीला, दंभी और घमंडी भी था उस पर जवाबदार भी, सुमुखी की तीखी बातो का भी उस अड़ियल पर कोई असर न हुआ और अपनी कड़कड़ाती आवाज में गरज कर बोला –"ए सुमुखी ... इज्जत म्हारे पैरो तले रहे से....म्हारे घर की चिंता थारे को करने की कोई जरूरत ना हे... तू तो अपनी बिक्री को दाम बता... थारे को मुंह मांगा इनाम मिलेगा...हा...हा...हा...."
इतना होने पर तो अब सुमुखी भी कहा रुकने वाली थी ,उसने साफ शब्दों में अपना मुंह तोड़ जवाब देकर कहा –"ओ ठेकेदार , मैं तेरे जैसी वासना की भूखी ना हु...पर तू अपनी इज्जत संभाल के रखना, राह में कही लेने के देने ना पड़ जाए
बड़ा आया कही का , खुद की लंगोट तो संभली नही जाती और औरतों की इज्जत लूटने चला हे... आया बड़ा कही का..."
कहते हुए सुमुखी मजदूरी का काम पूरा करके चली गई और ठेकेदार मन मसोस कर अफसोस करता रह गया...
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davedeepika830
Vaah
k dave
Bahut acchi hai
lambasonnu
बढिया लिखा
Description in detail *
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