छाया

फंतासी
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यह दिन भी और दिनों की तरह ही सामान्य था या शायद अब मैं ऐसी उम्र में हूं जिसमे कम से कम मुझे तो कोई भी दिन कुछ खास सा नहीं लगता रोज सुबह उठो ऑफिस जाओ ऑफिस से आओ रूटीन एक सा ही चल रहा था शायद इसी को लोग मिड लाइफ क्राइसिस कहते होंगे.

हां पर इस दिनचर्या का मेरा सबसे पसंदीदा पल मेरा शाम को ऑफिस से लौट कर पास की ही एक बस्ती में कुछ बच्चों को पढ़ाने जाना था,दिन का यही एक पल था जिसे मैं सबसे ज्यादा एंजॉय करता था,मेरे ज्यादातर दोस्त या तो मोटे पैकेज ले कर कॉरपोरेट लाइफ जी रहे थे या तो किसी अच्छे सरकारी पद पर बैठ कर व्यवस्था संभाल रहे थे.मैंने भी बीटेक करने के बाद किसी तरह नगर पालिका में बाबू की नौकरी हासिल कर ली थी मैं भले ही इंजीनियर था पर कई बार इंजीनियरिंग की भर्तियों में मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ और हर बार पहले से ज्यादा थका हारा मैं अब यह सोचने लगा था कि कैसे भी अब कोई भी नौकरी मिल जाए! और यह संघर्ष कई साल चला आप यकीन मानिए ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष था और वैसे भी आज कल के दौर में सरकारी नौकरी पाना एक जंग जीतने से तो आसान ही होगा।और यह जंग फिलहाल मैने जीत ली थी,नौकरी के शुरुआती कुछ समय में मुझे भी upsc की तैयारी करने का शौक चढ़ा था,जैसा इस उम्र में होना कोई नई बात नही है और मैं यह भूल गया था कि यह बाबू की नौकरी भी कितनी मुश्किलों से मिली थी,चूंकि ये शौक मेरे कई दोस्तों को चढ़ा और उतर भी गया तो मुझे भी ज्यादा बुरा नहीं लगा और वैसे भी कहां सरकारी बाबू और कहां अफसर!
बाबू जी अगर साहब को नियमों की घुट्टी पिला दें तो साहब को दो तीन दिन दस्त आ जाएं।

आज ऑफिस से वापस आने में कुछ देर हो गई चूंकि साहब ने किसी से कमिटमेंट कर दिया था कि ये फाइल आज ही होनी है,और इस कमिटमेंट का पूरा भार साहब मुझ पर डाल कर घर चले गए थे वैसे भी जितना बड़ा अफसर होता है उसका कमिटमेंट भी उतना ही भारी होता है और वो भार आज मुझे ही उठाना ही था।
मैं रोज 7 बजे पढ़ाने जाता था,आज 7:45 हो गया मुझे देर से जाना पसंद नहीं है पर क्या करें साहब के कमिटमेंट ने रोक लिया था पर कुछ कर भी तो नहीं सकते क्यूंकि ऑफिस में साहब मतलब साहब और अगर आप मेहनती है और तेज़ काम करते हैं तो आपको दूसरे धीमे काम करने वालों का काम भी पकड़ा दिया जाता है। (यह हर सरकारी कार्यालय का एक अलिखित नियम है)
तेज़ कदमों से चल कर मैं बस्ती में पहुंचा वहां कुछ भले लोगों के साथ मिल कर हमनें एक छोटा सा अस्थाई कमरा बच्चों की पढ़ाई के लिए बना रखा था जिसे नाम दिया था "पाठशाला" और जिसकी व्यवस्था का पूरा जिम्मा छाया का था छाया जिसकी उम्र 14-15 साल होगी वही वहां के सभी बच्चों में सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा पढ़ाई के लिए समर्पित थी यहां के बच्चों में से ज्यादातर ने सरकारी स्कूल में दाखिला तो ले रखा था पर जाते होंगे बमुश्किल आधे क्यूंकि आधे अभी से घर की जिम्मेदारियां उठाते उठाते आधे हो गए थे!
छाया इन सब से कुछ अलग थी,9 वीं कक्षा तो उसने अच्छे नंबरों से पास कर ली थी और पास होने की मिठाई भी उसने मुझसे ही खाई थी वो अपने मां बाप को इकलौती लड़की थी जो उस बस्ती में थोड़ी अटपटी सी बात थी छाया मुझसे अक्सर कहती कि भैया मुझे आपके जैसा इंजीनियर बनना है,और मैं उससे अक्सर कहता रहता कि इंजीनियर छोड़ कर और कुछ भी बन जाओ और वो हेमशा अपनी बात पर अड़ी रहती और आखिर में मुझे भी ये कहना ही पड़ता की ठीक है बन जाना!

देखते देखते दसवीं की परीक्षा भी नजदीक आ गई छाया ने स्कूल में मन लगाकर मेहनत की और मुझसे भी लगातार बस्ती में पढ़ती रही और बस्ती के सभी बच्चों को सेंटर तक लाने ले जाने की जिम्मेदारी भी नियम से बखूबी निभाने के बाद भी उसने हाईस्कूल में 74 फ़ीसदी अंक लाए जो मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा थे!
आज छाया के माता पिताजी बहुत खुश थे,शायद उन्हें पहले से ही अंदाजा था कि मुझे काजू कतली बहुत पसंद है और वो मेरे लिए अलग से एक छोटा पैकेट लाए थे उनकी खुशी देख कर मेरी आंखों में भी गर्व से आंसू आ गए मैं उनसे कई दिनों से पूछना चाह रहा था उनसे कि वो छाया को आगे पढ़ाएंगे की नहीं? मैंने पूछा तो वो बड़े गर्व से बोले की बिटिया जितना पढ़ना चाहेगी उतना पढ़ाएंगे! ये जवाब मेरी उम्मीद से परे था सच बोलूं तो मुझे इसकी कटाई उम्मीद नहीं थी, क्यूंकि जिस जगह हम लोग खड़े थे वहां के कुछ लोगों के हिसाब से छाया ज्यादा पढ़ लिख गई थी! छाया ने ग्यारहवीं में दाखिला ले लिया,और स्कूल में गर्मी की छुट्टियां होते ही मैं भी ऑफिस में दरखास्त दे कर निकल गया पहाड़ों पर!

जबसे मेरी नौकरी लगी थी तभी से रिश्तेदारों का एक जत्था मेरी शादी कराने के पुण्य कार्य में लग गया था, वे लड़की बताते मैं मना कर देता की अभी शादी नहीं करनी है,रिश्तेदारों को ये अपनी बेइज्जती मालूम होती और वे मुझसे बातचीत करना बंद कर देते और मेरी योजना सफल हो जाती। ऐसा नहीं था की मैं शादी के खिलाफ हूं पर आज कल के लोगों की तरह मुझे भी ये लगता था की कैसे किसी एकदम अनजान इंसान के साथ पूरी जिंदगी काटी जाए।

उत्तराखंड में मेरी मुलाकात हुई पलक से हम दोनों देहरादून से सांकरी के लिए एक ही गाड़ी में बैठे थे हम लड़कों को वैसे भी अकेली लड़की देख कर उत्सुकता होती भी है,पता चला की वो भी हर की दून ट्रेक पर जा रही है ट्रेक और पलक दोनों बहुत ही खूबसूरत थे पूरे ग्रुप में हम दोनों ही सोलो गए थे तो हम एक ग्रुप बन जाएं ये हम दोनों का ही फर्ज़ था,खैर उन पांच छः दिन की दोस्ती कब एक दूसरे से दिन भर बात करने और फिर एक दूसरे का खयाल रखने में बदल गई पता ही नहीं चला! एक दो वीकेंड मैं दिल्ली गया तो एक वीकेंड वो लखनऊ आई इन कुछ मुलाकातों में ही मेरे दिल में तो इश्क़ घर कर गया और मैने सोच लिया की अब शादी होगी तो इसी से और मैं इजहार ए इश्क़ के मौके ढूंढने लगा,पर उसने कभी मौका दिया ही नहीं,जब भी कोई ऐसी बात शुरू होती वो बात पलट देती ये सब कुछ 3 4 महीने चला और इस समय में मेरा एकतरफा इश्क परवान चढ़ने लगा

3 दिन तक पलक का फोन नहीं मिला,मैसेज भी अनसीन गए उसकी एक दोस्त से पता चला की वो कहीं बाहर है 5 वें दिन व्हाट्स एप पर कॉल आई और पता चला की पलक अमेरिका पहुंच गई है,हम काफी लड़े की बिना बताए तुम कैसे चली गईं,और उसने बताया की वो अब वहीं सेटल होने गई है सेटल होने का मतलब यही था कि अब वो वहीं बियाह करेंगी,बच्चे कच्चे सहित अब वहीं सेटल हो जाएंगी!
थोड़ी देर बाद उनकी व्हाट्स एप डीपी दिखनी बंद हो गई,सोशल मीडिया पर भी हम ब्लॉक हो गए,तब समझ आया की मैडम का पहले से ही तय था अमेरिका जाने का हम तो बस तब तक का समय काटने के लिए अस्थाई ब्वॉयफ्रेंड थे..
खैर जोर का झटका काफी जोर से ही लगा सिगरेट की तलब पहले से ही थी जो अब लत बन गई,बाहर घूमना फिरना एकदम बंद हो गया,सेंटर तो पिछले कुछ समय से कम ही जा रहे थे,अब एकदम बंद हो गया बस घर से ऑफिस और ऑफिस से घर यही रूटीन रह गया।
सुबह 6 बजे घर में घंटी बजी,आंख मलता हुआ मैं बाहर निकला तो सामने छाया के पिताजी खड़े थे
अरे अंकल जी आप!
साहब आप कई दिन से आए नहीं बस्ती?
हां इधर काम बहुत था,समय नहीं मिला
अच्छा,वही छाया बिटिया बोली थी कि देख आओ भैया आए नहीं हैं बहुत दिन से, ठीक से तो हैं?
ओह! कैसी है छाया?
डेंगू हुआ है साहब,तब भी मानती नहीं है रोज सेंटर खोलती है बोलती है भैया आयेंगे तो गुस्सा करेंगे,सब बच्चों को लेकर जाती है साफ सफाई करती है,और खुद पढ़ाती है...
अरे आप मना नही करते? बीमार है तो आराम करे.
साहब आप तो जानते हैं उसे कितनी जिद्दी है,
अच्छा आप चलिए मैं आता हूं कल बस्ती!


उस दिन गले से निवाला नहीं उतरा सिगरेट तो छुई भी ना गई,बड़ी ग्लानि हुई खुद पर कि मैं किसी लड़की के पीछे सब भूल गया, पाठशाला भूल गया, छाया को भूल गया..

दूसरे दिन ऑफिस जाने से पहले ही मैं बस्ती पहुंचा और सीधे छाया के घर गया छाया बीमारी में एकदम घुल गई थी "आज सेंटर नहीं खोला" मैंने माथे पर हाथ फेरते हुए पूछा
छाया दबी आवाज में बोली की भैया आज देर हो गई अभी जाती हूं!
नहीं तुम कुछ दिन आराम करो,तब तक मैं सेंटर खोल कर बच्चों को ले जाता हूं
छाया कुछ बोल पाती इससे पहले ही मैं घर से बाहर निकल आया,मैं नहीं चाहता था वो मेरी आंखों में आंसू देखे..
10 दिनों तक सुबह सुबह मैंने सेंटर खोला साफ सफाई की बच्चों को उनके घरों से ला कर पढ़ाया
10 दिनों बाद छाया ने अपना काम संभाल लिया इसी बीच लोगों के तानों से तंग आ कर छाया की मम्मी ने छाया के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया,मेरे लाख मना करने के बावजूद वो अपनी जिद पर अड़ी रहीं पर भला हो छाया के बाबूजी का जो सबसे लड़ झगड़कर छाया के साथ खड़े थे,और मुझे ढांढस बंधाते रहे कि उनके रहते अभी छाया की शादी नहीं होगी,वो उसे और पढ़ाना चाहते हैं।
12 वीं में आते ही मेरी एक दोस्त की मदद से हमनें छाया को इंजीनियरिंग की कोचिंग में दाखिला करवाया और छाया ने भी हमारी उम्मीदों पर खरा उतरते हुए इंटर में 81% हासिल किए....कुछ समय बाद अच्छी रैंक लाने पर उसका लखनऊ के ही एक सरकारी कालेज में चयन हो गया और मेरे लाख मना करने पर भी उसने सिविल स्ट्रीम चुन ली!

इस बीच मेरी शादी परिस्थिवश हो ही गई! चूंकि मेरी कोई बहन नहीं थी तो मेरी बारात में सबसे आगे छाया ही नाची कुछ समय बाद मेरी तरक्की हो गई और मेरा तबादला कानपुर हो गया,आज सुबह छाया का फोन आया था बहुत खुश थी ये बताते हुए कि मेरे विभाग में सहायक अभियन्ता के पद पर उसकी नियुक्ति हो गई है।

और बस्ती में पाठशाला अब वो चलाती है और वो भी
मेरे नाम पर !

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