JUNE 10th - JULY 10th
रविवार की अलसाई सी सुबह थी। *तुझे देखा तो ये जाना सनम* की रिंगटोन अपने फ़ुल वॉल्यूम पर मोबाइल पर बज उठी।
“ओफ़्फ़ोह ! सन्डे को भी चैन नहीं...न जाने कौन फ़ोन कर रहा है सवेरे सवेरे”
अम्बर झल्लाते हुए बड़बड़ाया और उसने अधखुली आँखों से मोबाइल उठाया।मोबाइल पर कोई अनजान नम्बर फ़्लैश हो रहा था।
“हो सकता है किसी टेंट वाले, कैटरर या फूल सजावट वाले का फ़ोन हो...भैया की शादी में अब दिन ही कितने बचे हैं ?”
सोचते हुए उसने फ़ोन उठा लिया…
उधर से किसी लड़की की घबराई हुई सी आवाज़ थी,
“सुधा...ए...सुधा, मेरी बात ध्यान से सुन...लगता है, यहाँ अम्मा और मामू मुझे बेच रहे...तू जल्दी से थाने में रिपोर्ट कर दे”
यह सुनते ही अम्बर की आँखों से नींद वैसे ही ग़ायब हो गई, जैसे गधे के सिर से सींग।
“ये रॉंग नम्बर है मैडम...यहाँ कोई सुधा नहीं है, वैसे आप ख़ुद ही पुलिस हेल्पलाइन पर फ़ोन क्यों नहीं कर लेतीं”
“ओह...माफ़ कीजिए, मैंने तो सुधा को फ़ोन लगाया था...मैं पुलिस हेल्पलाइन पर फ़ोन नहीं कर सकती, वहाँ के लोग तो अम्मा और मामू से हफ़्ता वसूली करते हैं”
कहकर उस लड़की ने फ़ोन काट दिया।
अम्बर के मन मस्तिष्क पर उस लड़की की घबराई हुई आवाज़, रह रहकर हथौड़े की तरह बजती रही। तभी छोटी बहन पिंकी ने कमरे में क़दम रखा,
“ये क्या भैया, अभी तक बिस्तर पर ही पड़े हो ? उठो...देखो कितने काम पड़े हैं करने को...अभी डेकोरेशन के लिए फूलवाला आता ही होगा और कैटरर के आने का भी समय हो रहा है...माना कि आकाश भैया की यह तीसरी शादी है पर धूमधाम में कोई कमी तो नहीं रहनी चाहिए न? आख़िर ठाकुर बलवन्त सिंह के बड़े बेटे की शादी हो रही है कोई मज़ाक़ नहीं”
कहते हुए पिंकी ने मूँछों पर ताव देने का अभिनय किया और ज़ोर से हँस पड़ी ।
अम्बर के चेहरे पर फीकी सी मुस्कुराहट ने घर बना लिया परन्तु उसका दिमाग़ उसी फ़ोन वाली लड़की में ऐसे उलझ गया जैसे किसी शातिर मकड़ी के जाले में कोई नन्हा सा कीट।
“क्या सोच कर मुस्कुरा रहे हो भैया? कहीं तुम अपनी शादी के सपने तो नहीं देखने लगे? यह मत भूलना कि तुम और मैं अपने पिता की नाजायज़ संतानें हैं जिनका अपने पिता पर कोई अधिकार नहीं...हमारी हैसियत इस घर में केवल एक नौकरानी के बच्चों जितनी ही है, जो अपने पिता द्वारा फेंके गये टुकड़ों पर पल रहे हैं...हमें कैसा भविष्य मिलेगा यह तो ऊपर वाला ही जाने”
कहते हुए पिंकी गम्भीर हो गई और कमरे से बाहर चली गई।
अम्बर सोचने लगा…
“न जाने कब तक इस घर में स्त्रियों को दुर्दशा की अग्नि में तपना होगा? जब बड़ी माँ लकवाग्रस्त हुईं, तब मेरी माँ को उनकी देखभाल के लिए रखा गया...ज़मींदार पिताजी की गिद्ध दृष्टि जब माँ पर पड़ी तो मेरा और पिंकी का जन्म हुआ। पिताजी ने कभी भी हमें अपनी संतान जितना स्नेह और लाड़ प्यार नहीं दिया...हम उनके लिए सदैव एक नौकरानी के ही बच्चे रहे...हाँ, उन्होंने हमें पढ़ाने लिखाने की ज़िम्मेदारी अवश्य निभाई...इस घर के लिए अपना सर्वस्व न्यौच्छावर कर चुकी माँ ने तो अपने प्राणों की आहुति देकर पूर्णाहुति दे दी है, अब पिंकी की बारी है...पढ़ाई के बाद मेरी भी कहीं नौकरी लग जाए तो पिंकी को मैं इस नर्क से बाहर निकाल लूँ”
नर्क...इस शब्द का विचार आते ही अम्बर को अनायास ही दोबारा उसी फ़ोन वाली लड़की के ख़यालों ने आ घेरा।
“न जाने कौन होगी ? किस मुसीबत में होगी ? वह कह रही थी कि उसकी अम्मा और मामू उसे बेच रहे...क्या आज की इक्कीसवीं सदी में भी लड़कियाँ ख़रीदी या बेची जाती हैं ?”
बेचैनियों से घिरी मन:स्थिति में अम्बर ने उसी अनजाने नम्बर पर कॉल बटन दबा दिया। उधर से रुआँसी सी आवाज़ सुनाई दी,
“हैलो”
“जी, मैं वही बोल रहा हूँ जिसे आपने सुधा समझकर फ़ोन किया था...क्या आपकी सुधा से बात हुई? आप चाहें तो मैं आपकी मदद कर सकता हूँ...पुलिस में रिपोर्ट भी करा सकता हूँ, आप बताइये क्या प्रॉब्लम है?”
“परन्तु आप मेरी मदद क्यों करना चाहते हैं ? आप तो मुझे जानते तक नहीं...और न ही मैं आपको जानती हूँ, जहाँ भी मजबूर लड़की दिखी, बस चले आए मधुमक्खी की तरह चिपकने...कृपा करके आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें और अभी फ़ोन रखें”
“देखिए...आप मुझे ग़लत समझ रही हैं, मेरा नाम अम्बर है...मैं अच्छे ख़ानदान का लड़का हूँ, बनारस में कॉलेज में पढ़ता हूँ...आजकल अपने गृहनगर मिर्ज़ापुर आया हुआ हूँ, मैं सचमुच आपकी सहायता करना चाहता हूँ, कृपया बताइए कि आप किस मुसीबत में हैं? आप कह रहीं थीं न, कि आपको कोई बेचना चाहता है…क्या आज के ज़माने में भी ऐसा होता है ?"
"आप बनारस में पढ़ते हैं तो आपने दालमंडी का नाम अवश्य सुना होगा, बस वहीं रहती हूँ मैं, क्या अब भी आप मेरी मदद करना चाहेंगे?"
लड़की के स्वर में तल्खी घुल गई।
"दालमंडी? वो…वो…तो"
"जी दालमंडी…वही रेडलाइट एरिया जहाँ की शामें सफेदपोशों की महफ़िलों से गुलज़ार रहती हैं और यहाँ आज भी जिस्मों की ख़रीद फ़रोख्त होती है…अब आप यह मत कहिएगा कि आपको इस बारे में कुछ नहीं पता"
लड़की की बात सुनकर अम्बर को जैसे साँप सूँघ गया। तभी उसके पिता ठाकुर बलवन्त सिंह की रोबदार आवाज़ उसके कानों में पड़ी,
“क्या आज सवेरा नहीं होगा तेरा, लड़के? कितने काम सिर पर पड़े हैं और तू अभी तक बिस्तर में पड़ा है...नवाब की औलाद...उठ जल्दी और सजावट वाले से बात कर, केवल चार दिन रह गये हैं मेरे बेटे के ब्याह में”
“ज...ज...जी ठाकुर साहब, बस अभी जाता हूँ”
झट फ़ोन काटते हुए अम्बर हकलाया और तुरन्त बिस्तर छोड़कर बाथरूम जाने के लिए खड़ा हो गया। वह सोचने लगा…
“कितना अभागा हूँ मैं, ठाकुर साहब ने मुझे और पिंकी को कभी ‘पिताजी’ या ‘पापा’ कहने का अधिकार नहीं दिया...मेरे सारे दोस्तों के पिता उनके लिए कितना कुछ करते हैं...हमेशा सम्बल बनकर साथ खड़े रहते हैं...और एक मैं हूँ जो अपने पिता को पिताजी कहकर पुकार भी नहीं सकता...क्या ज़मींदारी, पैसा और ताक़त एक पुरुष को पत्थर बना देती हैं ? अब तो ज़मींदारी रही भी नहीं...फिर भी दबंगई में किसी प्रकार की कमी नहीं, सत्ताधारी पार्टी के नेता जो ठहरे...पूरे शहर में किसी में हिम्मत नहीं जो उनके ख़िलाफ़ चूँ भी कर सके, उन्होंने किसी के साथ न्याय नहीं किया...न बड़ी माँ के साथ, न माँ के साथ और न ही मेरे और पिंकी के साथ...उनके जीवन में सिर्फ़ एक इंसान की अहमियत है और वो हैं आकाश भैया”
आकाश भैया का विचार आते ही अम्बर का मन कसैला होने लगा। वह सोचने लगा,
“आकाश भैया लगभग पैतींस के हो चले हैं और तीसरा ब्याह रचाने के लिए लालायित हैं। पहले की दोनों भाभियाँ कितनी अच्छी थीं परन्तु अब वे न जाने कहाँ हैं ? आकाश भैया कहते हैं कि उनकी दोनों पत्नियाँ घर छोड़कर भाग गईं...परन्तु ऐसे भी कोई घर छोड़कर भागता है भला कि उसका नामोनिशान ही मिट जाए...ज़रूर आकाश भैया ने ही उन्हें कहीं मार काट कर फेंक दिया होगा...गुण्डागर्दी तो उनके रग रग में बसी है, वे बात बात पर जान से मारने की धमकी देते रहते हैं और हमेशा अपने साथ पिस्तौल, बंदूक़ और चार छ: गुण्डों को रखते हैं...न जाने अब किस बेचारी लड़की के ग्रह फूटे हैं, जिसका ब्याह आकाश भैया के साथ होना है”
अम्बर तैयार होकर जब नीचे हॉलनुमा बैठक में पहुँचा तब आकाश भैया वहीं बैठे अपनी दुनाली बंदूक़ साफ़ कर रहे थे। अम्बर को देखते ही बोले,
“क्यों छोटे ? मेरे ब्याह में तू कुछ काम करेगा या नहीं ? जबसे बनारस से आया है, बस खा रहा है और सो रहा है...माना कि तू कॉलेज में पढ़ रहा है, पर इसका मतलब यह नहीं कि तू अपनी हैसियत भूल जाए”
“जी...जी...भैया, बस फूलवाले से सजावट की बात करता हूँ और शाम तक कैटरर से भी सबकुछ फ़ाइनल करता हूँ...बारात कहाँ जानी है ? बरातियों को लाने ले जाने का भी तो इंतज़ाम करना पड़ेगा, यदि आप बता देते तो मैं बस अथवा गाड़ियों का प्रबन्ध कर लेता”
इतना बोलने में ही अम्बर की हथेलियाँ पसीने से गीली होने लगीं, न जाने कब किस बात पर आकाश भैया भड़क जाएँ।
“बारात ले जाने की कोई चिन्ता मत कर छोटे...इस घर से ब्याह में मेरे अलावा और कोई नहीं जाएगा...मैं ब्याह लाऊँगा अपनी दुल्हन...जो भी पार्टी शार्टी शान-ओ-शौक़त होगी, वो यहीं मिर्ज़ापुर में होगी...तू बस यहाँ की तैयारियाँ देख, यहाँ किसी तरह की कोई कमी नहीं होनी चाहिए”
आकाश भैया ने टका सा जवाब दिया और अपनी गुण्डों की सेना के साथ बाहर चले गये।
दिन भर विवाह की तैयारियों में व्यस्त रहने के पश्चात जब शाम गहराने लगी और रात ने हौले से आकर अपना आँचल फैला लिया, तब अम्बर को उस फ़ोन वाली लड़की का ख्याल आया। उसने अपने मोबाइल में उस अनजाने नम्बर को ‘आशा’ नाम से सेव किया और फिर कॉल बटन दबा दिया।
“अब आप क्यों फ़ोन कर रहे हैं?”
लड़की ने ग़ुस्से में चिल्लाकर पूछा।
“बस यूँ ही...न जाने क्यों आपसे बात करने का मन हुआ...मैं तो आपका नाम तक नहीं जानता...आपका नाम क्या है...बताइये न प्लीज़?”
“मेरा कौन सा नाम जानना चाहेंगे आप ? असली या इस कोठे का ?”
“जी दोनों...इनफ़ैक्ट आपके बारे में सबकुछ जानना है मुझे...प्लीज़”
“मेरा असली नाम वसुंधरा है, जो लोग मेरे अपने हैं वे मुझे धरा कहते हैं...वैसे मेरे अपने हैं ही कितने ? गिनती के दो चार...यहाँ दालमंडी में लोग मुझे कोहिनूर के नाम से जानते हैं...जब दो साल की थी तभी मेरे माता-पिता सड़क दुर्घटना में चल बसे, फिर मेरे चाचा ने मुझे यहाँ लाकर छोड़ दिया।यहीं दालमंडी की बदनाम गलियों में पली बढ़ी...अम्मा और मामू के इशारों पर कठपुतली की तरह नाचती हूँ, अभी मेरी उमर उन्नीस साल है…सुना है कि अम्मा मोटी रक़म लेकर मुझे किसी रईस के हाथों बेच रही हैं...उस रईस के नामर्द बेटे को मुझसे औलाद सुख चाहिए”
“देखिए...धरा जी, आप रोइये नहीं, शान्त हो जाइये...आपने बताया कि आपकी उम्र उन्नीस साल है...किसी इंसान को ख़रीदना-बेचना क़ानूनन अपराध है और फिर आप तो नाबालिग़ भी हैं...मैं कल ही बनारस आता हूँ और वहाँ के थाने में रपट लिखाता हूँ, आप बिलकुल चिंता न करें...वैसे यह सुधा कौन है ? आपकी बात सुधा से हो पाई या नहीं?”
“जी, सुधा मेरी सहेली है और उसने मेरी मदद करने से इंकार कर दिया है, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा… सोच रही हूँ कि गंगा मइया में समा जाऊँ”
“आप कायरों जैसी बातें मत कीजिए...चिन्ता मत कीजिए, कोई न कोई हल अवश्य निकलेगा, मैं कल आता हूँ बनारस”
अगले दिन ढोल नगाड़ों की आवाज़ से अम्बर की नींद खुली। वह चौंककर उठ बैठा। दिन चढ़ आया था…
“ओह ! ग्यारह बज गये ? कितनी गहरी नींद सो गया मैं...आज तो मुझे बनारस भी जाना है”
सोचते हुए वह फुर्ती से तैयार होने लगा। वह तैयार होकर नीचे आया तो वहाँ एक अलग ही तरह की चहल-पहल थी। बड़े से द्वार पर आकाश भैया अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ खड़े थे और पिंकी आरती का थाल तैयार कर रही थी। वह अम्बर को देखते ही बोली,
“कहाँ थे भैया तुम...देखो आकाश भैया, भाभी ले भी आए”
“पर भैया की शादी तो चार दिन बाद थी न?”
अम्बर आश्चर्य से बोला।
“हाँ, बरखुरदार...मूहर्त तो चार दिन बाद का ही था, पर हम ठाकुरों का जब भी ब्याह करने का मन हो, ईश्वर भी उसी दिन का मूहर्त साध देते हैं...चलो पिंकी, अपनी भाभी की आरती उतारो”
ठाकुर बलवन्त सिंह ने अपनी मूँछों पर ताव देते हुए कहा।
“आओ भाभी...नाम क्या है तुम्हारा ?”
“जी, वसुंधरा...जो लोग मेरे अपने हैं वो मुझे धरा कहते हैं”
नई दुल्हन ने आरती उतारती हुई पिंकी को उत्तर दिया।
यह सुनकर अम्बर को लगा जैसे किसी ने उसका दिल निचोड़कर सारा रक्त बाहर निकाल दिया हो। वह थके क़दमों से बाहर की ओर चल पड़ा । उसने अपने मोबाइल में सेव ‘आशा’ नाम बदलकर ‘कोहिनूर’ कर लिया।
समाप्त
अंशु श्री सक्सेना
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sroli22
Behtareen
itsmesarita78
Achchi kahani!
ilaochani
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