JUNE 10th - JULY 10th
बीमार बेटे की माँ
शालिनी एग्जाम हॉल में सबसे पीछे अपनी सीट पर चुपचाप बैठ गयी। कक्षा के कुछ परीक्षार्थी परीक्षा को लेकर ही बात कर रहे थे, जैसे ही टीचर्स कॉपी और क्वेश्चन लेकर कक्षा में प्रवेश किए क्लास पूरी तरह से शांत हो गया।
यह बी•ए• के थर्ड ईयर का फाइनल एग्जाम था और आज अंतिम पेपर लिखना था, शालिनी पढ़ने में बड़ी होशियार थी हर कक्षा में अव्वल हुआ करती थी। उसकी डिग्री का अंतिम परीक्षा था किंतु आज वह परीक्षा के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी, एकेडमिक परीक्षा को आज तक बहुत महत्व देती आई थी और शिक्षा को जीवन की सफलता और सुख का मूलाधार मानती थी किन्तु कुछ घंटों पहले जीवन के यथार्थ का जो रूप देखा था उससे उसकी आज तक की जो धारणा थी वह बदल गई । पढ़कर परीक्षाएं पास करना और अच्छे अंक को प्राप्त करना उसे अब बहुत आसान लग रहा था क्योंकि उसे एहसास हुआ की जीवन की परीक्षाएं बहुत ही कठिन हैं ।
घंटा बज गया, मैडम उत्तरपुस्तिका सभी को देने लगी। शालिनी को आज पहली बार परीक्षा के प्रति न कोई चिंता थी न कोई उत्साह था और नहीं कोई डर, आज यह परीक्षा उसे निरर्थक महसूस हो रही थी ।
अनमने भाव से उसने कॉपी पर नाम, रोल नंबर आदि भरना शुरू कर दिया जैसे उसके हाथ यंत्रवत कॉपी पर चल रहे थे तब तक कि दूसरा घंटा पड़ा और मैडम प्रश्नपत्र देने लगी । प्रश्न हाथ में पाते ही शालिनी ने सरसरी नजर से सारे प्रश्नों को पढ़ते गई आखिरी के प्रश्न पर उसकी आंखें टिक गई और उसकी सोच भी ठहर गयी, प्रश्न था : “आज की नारी का समाज में स्थिति” पर अपने विचार प्रस्तुत करें ।
यह प्रश्न उसकी आत्मा को झकझोर दिया वह इस प्रश्न के उत्तर में बहुत कुछ लिखना चाहती थी।
मई का महीना था सूर्य अपनी प्रचंडता का आभास करा रहे थे हवाएं भी उनके ताप से तापित हो चुकी थी । शालिनी का थर्ड ईयर का एग्जाम चल रहा था तीन पेपर हो चुके थे चौथे पेपर के लिए पढ़ाई कर रही थी। घर के सभी लोग किसी रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे सिर्फ उसकी छोटी बहन घर में थी जो उसको परीक्षा के कारण ही रह गई थी। दोपहर में अपनी रूम में वह पढ़ाई कर रही थी, पंखे की हवा से उमस हो रही । चार बजने वाले थे , शालिनी अपने रूम से बाहर निकलकर घर के गेट तक आई और गेट को खोलकर वहीं पर कुछ देर खड़ी हुई। घर रोड के किनारे ही था इसलिए रोड पर आने जाने वाले लोग आसानी से ही दिखाई दे दिया करते थे। एक तो मई का महीना था और गर्मी भी बहुत अधिक था इससे चार बजे तक भी रोड पर थोड़ी चहल पहल कम थी । वह कुछ देर गेट पर ही खड़ी रही,पेड़ के पत्ते थोड़ी बहुत हिल रहे थे परन्तु गर्म झोकें ही बदन में लग रहा था । जैसे ही वह घर में आने को हुई शालिनी की नजर थोड़ी दूर एक अधेड़ उम्र की औरत पर पड़ी जो उलझी सी कदमों से आगे बढ़ रही थी और कुछ भूनभुनाती हुई आ रही थी। पीली रंग की साड़ी पहनी थी जो गंदी हो चुकी थी। धीरे धीरे व गेट के सामने आई। शालिनी बड़े प्रयास करने के बाद यह सुन पाई कि वह बोल रही थी “ मैं पागल नहीं हूं”
“मुझे पागल क्यों कहते हैं सब, मैं माँ हूँ मेरा बेटा बीमार है, मुझे जाना है उसके पास”।
फिर चुप हो गई , फिर रोने लगी धीरे धीरे आगे बढ़ी फिर वही दोहराई ;
“पागल नहीं हूँ पागल नहीं हूं, हमार बेटा बीमार है हमें जाना है”
शालिनी को औरत की स्थिती देखकर कुछ अजीब लगा और जो बातें कान में पहुंची वह उसकी दशा को दर्शा रही थी। आगे बढ़कर औरत तक पहुंची और उन्हें रुकने का इशारा की फिर दो तीन बार बोलने के बाद वह रुकी!
“आप कहाँ जा रही है?”
“हम पागल नहीं है“
“हमार बेटा बीमार है”
“जाना है”
“कहाँ जाना है कहाँ आपका बेटा है?” फिर शालिनी पूछी।
“हम पागल नहीं हूं”
शालिनी आगे बढ़कर उनका हाथ पकड़ी, “चाची आप कहाँ जा रही हैं”?
औरत हाथ झटक दी फिर ज़ोर से रोने लगी।
“हमें जाना है”
शालिनी उसकी करुण स्थिती को देखकर बेचैन हो गई, वह कुछ समझ नहीं पा रही थी की औरत को कहाँ जाना है? उसका बेटा कहाँ है?
वह फिर एक बार हाथ पकड़ी और बड़े प्यार से बोली ,
“चाची आप आइये बैठिये न”
इस बार औरत को स्पर्श और इन शब्दों का सहारा महसूस हुआ वह गेट के भीतर आई बरामदे में शालिनी उनको बैठाई ।
और एक गिलास पानी लेकर आई
वह उनको ग्लास का पानी पिलाई वह पूरे ग्लास का पानी पी ली ।
आपका बेटा कहाँ रहता है? शालिनी एक बार फिर पूछी ।
“अपन बाबा के पास”
उसके बाबा कहाँ रहते हैं? वह पूछी।
“काम करते हैं”
कहाँ काम करते हैं?
“टाटा”
तो आप यहाँ कैसे आ गई?
“हमरा घर गांव में है”
“हम बाबू के पास जा रही बाबू हमारे बीमार ह”
“चाची कुछ खा लीजिए ”
“ना बिटिया हमार बाबू बीमार है”
“हम गांव से आवत रहल , रास्ते में लोग हमें ट्रेन से उतार दी हैं सब, बेटी हम रास्ता ना जानें, हमरा साथ का कर दी है?”
अश्रु का तीव्र वेग और चीख अपने हुए चीरहरण की व्यथा का वर्णन कर रहे थे।
“हमारसब चल गई और हमरी इज्जत......”
एक स्त्री का अस्तित्व लूट चुका था परंतु उसका मातृत्व उसे जीवित रखा था। उसे अपने बेटे के पास पहुंचना था।
शालिनी का हाथ पैर काँपने लगा औरत की स्थिती देखकर उसकी आँखों में आंसू आ गया परन्तु वह अपने को सम्हाली और फिर पूछ दी ।
“चाची कौन लोग थे?
“वही लोग सब वर्दी वाला; वही लोग सब वर्दी वाला ...” बोलती ही जा रही थी।
शालिनी इस घिनौने कृत्य को सुन तिलमिला गई। पर वह यह सोचने लगी थी कि औरत को कैसे उसके बेटे तक पहुंचाया जाए?
घर में बड़ा कोई नहीं था। सोची किसी तरह ट्रेन की टिकट लेकर इनको ट्रेन पर बैठा दिया जाए तो ये टाटा पहुँच पाएंगी और इसी की व्यवस्था करने के लिए वह गेट से बाहर निकली और एक परिचित रिक्शेवाले जिसपर अक्सर व स्टेशन जाया आया करती थी बुलाई और उन्हें पैसा देकर समझाया कि वह टाटा के लिए एक टिकट लेकर ट्रेन के टाइम पर उस औरत को ट्रेन पर बैठाकर आए। वह घर में गई और कुछ खाने की चीजें लेकर आई।
चाची आप इसे ट्रेन में खा लीजिये गा और ये कुछ पैसा अपने पास रख लीजिए, रिक्शा वाले भैया जो है आपको रिक्शा से स्टेशन लेकर जाएंगे और टिकट लेकर आपको देंगे , ट्रेन पर बैठा भी देंगे। ये ट्रेन टाटा कल सुबह पहुंचेगी आप वहाँ उतर जाइएगा उसके पहले आप कहीं पर भी नहीं उतरिएगा।
उसके बाद तो आप अपना घर जानती है?
“हाँ बिटिया हम वहाँ से अपने घर चले जाए, हमार आदमी स्टेशन पर सामान बेचते हैं ओ हम के मिल जाई हैं।”
गेट पर शालिनी चाची को रिक्शे पर जाते हुए देखती रही, धीरे धीरे रिक्शा बहुत दूर चला गया । वह घर के भीतर आ गई, उसका मन् बहुत भारी हो गया , दुष्चिन्ता से मन बेचैन हो रहा था ; चाची अपनी बेटे के पास पहुँच पाएगी तो? युवा मन सामाजिक व्यवस्था के प्रति आक्रोश से भरा हुआ और क्रांति का बिगुल बजाने के लिए मचल रहा था।
इसके पहले उसने जीवन का ऐसा भयावह स्वरूप नही देखा था, मनुष्य कभी कभी परिस्थिति बस कितना लाचार हो जाता है। एक औरत एक माँ होती है, एक बहन होती, एक पत्नी होती किंन्तु औरत को क्यों हर जगह कमजोर कर दिया जाता है? क्यों उसकी आत्मा को छलनी कर लाश की तरफ फेंक दिया जाता है? क्यों अपनी रक्षा करने में वह सक्षम नहीं है? यह समाज ही तो सदियों से उसे बेडियों में जो बांधकर रखा है; उसे शिक्षा के प्रकाश से दूर रखा है।
इसके बाद किसी भी तरह शालिनी को पढ़ाई में मन नहीं लगा, किसी तरह रात बीती । सुबह तैयार होकर परीक्षा देने के लिए निकली; परीक्षा का सेंटर जहाँ पड़ा था वहाँ पर पहुंचने के लिए ट्रेन पकड़कर दूसरे स्टेशन तक जाना था। ट्रेन में उसके साथ के सभी फ्रेंड्स मिल गए और आधे घण्टे में स्टेशन पर उतरे जहां से उन सभी को परीक्षा केंद्र पर पहुंचना था। परीक्षा 12:00 बजे से शुरू होने वाली थी और ये छात्र मंडली 10:00 बजे ही स्टेशन पहुँच गई थी इसलिए कुछ लड़कियां स्टेशन के वेटिंग हॉल में बैठकर पढ़ाई कर रही थी तो कुछ इधर उधर स्टूडेंट्स घूम रहे थे, कुछ बातें कर रहे थे। शालिनी समझ नहीं पा रही थी अपनी परीक्षा के पेपर कैसे लिखेगी? उसकी अच्छी सहेली थी कुसुम जिसे शालिनी का चुपचाप रहना कुछ अजीब लगा, वह पुछ ली ।
“क्या हुआ? तुम कुछ उदास लग रही हो, पढ़ाई अच्छे से नहीं हुआ क्या?”
शालिनी कुछ नहीं बोली।
तबियत ठीक है तो?
“हां” बड़े संक्षिप्त में जवाब दी।
पढ़ने के लिए कुसुम भी एक किताब निकाली किंन्तु शालिनी की उदासी उसको भी कहीं न कहीं खटक रही थी , उससे बात करना चाह रही थी ।
“शालिनी बोलो न क्या हुआ तुम इतनी उदास क्यों हो”?
“कल अजीब एक बात हो गई” शालिनी को लगा की कुसुम को बात बताने से उसका मन कुछ हल्का हो जाए।
क्या? कुसुम पूछी
शालिनी समझ नहीं पा रही थी की वह सारी बातों को कैसे कुसुम को बताए, पर बताना चाहती थी क्योंकि वह जानती थी कि कुसुम ही उसको समझ पाएगी। वे दोनों अक्सर देश दुनिया की बातें किया करती थीं। कल की घटना को बताते शालिनी की आंखे भर आईं कुसुम उसको समझाने का कोशीश कर रही थी जबकि खुद ही इस बात से वह परेशान हो उठीं। अभी बात पूरी ही नहीं हुई थी कि तब तक पीछे से किसी के गाने का आवाज सुनाई दिया;
जननी मैं ना जिऊ बिनु रामा •••••••••• जननी मैं ना जिऊ बिनु रामा••••••••••••••
और फिर रोने की आवाज सुनाई दिया सबकी नज़रें उधर घूम गई शालिनी भी पीछे पलटकर देखी,
“ वही पीली साड़ी वाली औरत” शालीनी कुसुम का हाथ ज़ोर से पकड़ ली।
“कुसुम वही औरत”
औरत के रोने और गाने की आवाज से कुछ लोग स्टेशन में बिखरे हुए थे जो उधर की ओर रुख किए, लोगों को इकट्ठे होते देख स्टेशन पर ड्यूटी में तैनात कुछ पुलिसवाले उस औरत की तरफ झपटे, पुलिस को देखकर औरत दौड़कर भागने लगी और भागते भागते वह प्लेटफार्म से नीचे रेलवे ट्रैक पर गिर पड़ी , पुलिस भी उसके पीछे ही थी ।
शालिनी उधर ही बढ़ी और प्लेटफार्म से नीचे उतरने लगी किंन्तु कुसुम हाथ पकड़ ली।
“शालिनी ठहरो! पुलिस मामले को देख रही है”
औरत उठकर अपना जान बचाने का निरर्थक प्रयास करना चाही पर एक कदम भी नहीं बढ़ पायी, डंडों के ताबड़तोड़ प्रहार से कराहने लगी, अचेत होकर ट्रैक पर ही पड़ी रह गयी।
“पागल औरत.............” डंडा वाला पुलिस जोर से दहाड़ा!
पीछे से एक लेडी कॉन्स्टेबल आई और एक सफाई कर्मचारी औरत के पास जाकर उसके फटे कपड़े से ही उसके शरीर को ढकने का प्रयास किया गया, वह अपने पैरों पर ठीक से खड़ी नहीं हो पा रही थी। पकड़ कर किसी तरह वहाँ से ले जानें का प्रयास किया जा रहा था। स्टेशन पर खड़े लोग भीड़ बन कर इस बर्बर लीला को देख रहे थे कोई भी आगे नहीं बढ़ा क्योंकि सभी जानते थे कि पुलिस अपराधी को पकड़ती है, अपराध से समाज को बचाती हैं। फिर लोग आपस में बात करने लगे ऐसी औरतें ही समाज में बुराइयाँ फैलाती है, ऐसी औरतों को सलाखों के पीछे रहना चाहिए। ऐसी चरित्रहीन समाज के लिए कलंक है। शालिनी और कुसुम एक दूसरे का हाथ पकडे़ सारी घटनाएं देखती रही धीरे धीरे पीली साड़ी वाली औरत और लेडी कॉन्स्टेबल आँखों के सामने से ओझल होने लगी। सभी आपस में बात करते रहे।
शालिनी ज़ोर से चिल्लाई! “वह बीमार बेटे की माँ है”।
-सुमन त्रिपाठी
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jharna28aug
Very impressive
khushboosinhaagpn
Such a beautiful story. It is really an awesome work.And yes it is so true, we the women are always treated in this manner. Despite the country has gained freedom, we the women are still not free. In this judgemental world we have to face these cruelty.
meeramira100
समाज की बड़ी ही क्रूर सच्चाई को दिखाती हुई कहानी।मेरे मतानुसार एक कहानीकार की लेखनी की सार्थकता इसमें है कि जब आप कहानी पढ़तें हैं तो कहनी के सारे परिदृश्य आपके आंखों के सामने घूमती हुई दिखाई दे। इस दृष्टि में आपकी यह रचना बड़ी सार्थक प्रमाणित होती है। बहुत अच्छी कृति। भगवान से विनती है कि आगे आप ऐसे कहानियों को कलमबद्ध करतीं रहें धन्यवाद।
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Thank you for taking the time to report this. Our team will review this and contact you if we need more information.
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