छोटू

कथेतर
4.6 out of 5 (11 Ratings)
Share this story

"साढ़े तीन बजते ही नींद खुल गयी ,

उसने झटपट बिस्तर को समेटा और हाथ-पैर धुले ।

फिर अपने काम में लग गया और काम इतने की ३ से कब ५ बज गये पता ही नही चलता।

बिमार मॉं को पहले खाना खिलाया , फिर दवा खिलायी और फिर अपना बड़ा-सा बस्ता भरा और जाने को तैयार हो गया ।

बस्ता जिसमें आम बच्चों की तरह किताबें नहीं थीं ,

बल्कि उसमें मौजूद थे -

ढ़ेर सारे समोसे , भुनी हुयी हरी मिर्च , स्टोव, एक बड़ी-सी केतली और चाय बनाने के सारे सामान"।

ये छोटू की दैनिक दिनचर्या थी , वह रोज यही क्रम दोहराता ।

एक बड़े-से बस्तें में वो मॉं की बिमारी का इलाज , अपनी पेट की तिलमिलाहट दोनों की उम्मीद लिए पास ही एक छोटे-से स्टेशन पर रोजाना जाता ।

और बदले में थोड़ी-थोड़ी उम्मीद लिए वापस आता ।

उसकी उम्र लगभग १४ बरस थी पर बातें कभी कभार वयस्कों से बेहतर।

रविवार का दिन था ।

छोटू रोज के मुकाबले थोड़ा ज्यादा सामान अपने बस्ते में भर कर निकल गया ।

चूंकि रविवार के दिन स्टेशन पर रोज की तुलना में दो ट्रेनें अधिक आती थी ।

सुबह के ६ बजे थे ,

स्टेशन आधा भरा हुआ था ,

केतली हाथ में लिए और उसके कोने में बांध रखे थें कागज वाले कप के दो पैकेट ।

एक बड़ी-सी थाली , जिसमें समोसे और हरी मिर्च रखी हुयी थी

उसे उसने गर्दन के सहारे बांध रखा था ।

"गरम समोसे १० के ४ "

"चाय ३ की १ "

"चाचाजी चाय ,

माताजी चाय ,

भैया समोसे "

बोलिए !

बोलिए !

गरमा-गरम समोसे , गरमा-गरम चाय !

छोटू एक राउण्ड पूरा स्टेशन का मार आया ।

चेहरे पर कुछ पा लेने की गजब खुशी !

क्योंकि सुबह की बोहनी जो चुकी थी ।

अब वो प्लेटफार्म से थोड़ा दूर हट के

एक बेंच के पास बैठ अपने चाय को गर्म कर रहा था ।

तभी एक सज्जन आए और पूछा -

"ए छोटू समोसे कैसे दिए ?

"१० रूपए के ४ साहब ! छोटू ने कहा

"और चाय कितने का ?

"३ रुपए की !

"इतना महंगा काहे दे रहे हो समोसे बाबू ,

वो बड़ी दुकानवाला आदमी तो १० रुपए के ५ दे रहा है ! सज्जन बोले ।

"देखिए साहब !

ताजे समोसे हैं और गरम भी , यकीं नहीं तो छूकर देख लिजिए

वो बड़ी दुकानवाला है न ,

उसकी चमक-धमक देख कर लोग ले लेते हैं ,

और बासी समोसे भी चाव से खा लेते हैं ।

सज्जन मुस्कुराए और बोले -

"लाओ यार समोसे दे दो १० के !

छोटू ने फटाक से चार समोसे और हरी मिर्च डाल कर दे दी ।

छोटू - चाय भी दे दूं ?

सज्जन - अरे छोटू खा तो लेने दो यार !

छोटू शांत हो गया और फिर अपनी चाय गरम करने लग गया ।

कभी थाली में रखे समोसे सहेजता तो कपड़े से ढ़कता ।

इतने में सज्जन बोले -

"लाओ एक चाय दो अब !

ये लिजिए साहब !

छोटू ने चाय थमाते हुए कहा ।

सज्जन चाय पीकर बोले -

"चाय तो बड़ी अच्छी थी बच्चा ,

हाथों में जादू है तुम्हारे तो ,

खुद से बनायी है या मॉं से बनवा कर लाए हो ?

( पैसे थमाते हुए सज्जन बोले )

छोटू बोला -

"मां तो चारपाई से उठ ही नही पाती है साहब ,

कोई बहुत बड़ी बिमारी है डाक्टर हर बार दवाई देते हैं

और कहते हैं कि कुछ दिन में ठीक हो जाएंगी और यह कहते-कहते ना जाने कितने बरस बीत गये ।

और तुम्हारे पिताजी ? सज्जन पूछ बैठे !

पिताजी का नाम सुनते ही छोटू के चेहरे पर एक गहरी शिकन पड़ गयी ,

ऑंखें गीली हो गयी

और इतना देखकर साहब समझ गये कि पिताजी नहीं हैं !

रूंधे गले से छोटू बोला -

"पिताजी तो मजहबी दंगों में मारे गये !

पिताजी बचपन में गोद म बिठा कर धर्म की कहानियां सुनाते थे ,

कहते थें -

हमेशा ऊपरवाले में आस्था रखना और धर्महित के लिए लड़ना ।

मै बचपन में बिल्कुल पिताजी जैसा बनना चाहता था ,

अपने धर्म-मजहब़ की रक्षा हेतु सब कुछ कुर्बान कर देना चाहता था ।

पर जब उस मज़हबी दंगें में पिताजी मारे गये ,

तो मेरे पिताजी को दंगाई का नाम दे दिया गया ।

जिस धर्म-मजहब़ के लिए वो लड़ें , जिन लोगों के लिए लड़ें ,

वही लोग आज मुझे बेझिझक दंगाई का लड़का कह कर पुकारते हैं ,

मैनें भी धर्म की राह चुनी ,

पर धर्म-मजहब़ की रक्षा की नहीं , बल्कि अपनी लाचार मॉं की देखभाल की ।

जिसको मेरी जरूरत है मेरे धर्म-मजहब़ से ज्यादा" ।

तो तुम हिन्दू हो या मुसलमान ? सज्जन बोले

"हिन्दू हो या मुसलमान ,

दंगे में मरे लोग दंगाई होते हैं शहीद नहीं ।

मैं अब केवल एक इंसान हूं ,

एक मां का बेटा !

चलिए साहब !

मेरा धर्म-मजहब़ वो देखिए ट्रेन आ रही है ।

"गरम समोसे १० के ४ "

"चाय ३ की १ "

"चाचाजी चाय ,

माताजी चाय ,

भैया समोसे "

बोलिए !

बोलिए !

गरमा-गरम समोसे , गरमा-गरम चाय !

बोलते हुए छोटू अपने धर्म-मजहब़ की ओर निकल गया ।

Stories you will love

X
Please Wait ...