छिपी मनसा

Surya Singh
कथेतर
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रिश्ते इंसान को कभी मजबूर तो कभी कमजोर बनाते हैं। कुछ रिश्ते बने बनाए मिलते हैं जैसे मामा, चाचा, भाई, बहन और भी बहुत सारे। लेकिन कुछ रिश्ते लोग खुद से चुनते हैं जैसे दोस्त या हमसफर। जब हम खुद से कोई रिश्ता बनाते हैं तो उस पर हमें सबसे ज्यादा विश्वास होता है। दोस्त कैसे भी हो अच्छे या बुरे हमेशा मदद करते हैं। लेकिन मेरी कहानी मेरे हमसफर से शुरू होती है।

पिताजी के स्वर्गवास के बाद मां ने हम दोनों भाई बहन को कभी कोई चीज की कमी नहीं होने दी और परिणाम यह हुआ कि अब मां को घर में बैठे-बैठे ही सारी चीजें मिल जाती। क्योंकि मेरी बहन आयशा एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका बन गई और मुझे एक प्राइवेट बैंक में नौकरी मिल गई।मैंने अपनी जिंदगी की शुरुआत की ही थी कि मां को एक बहू की अभिलाषा हुई। जब भी इस बारे में मुझसे बात करती थी, मैं मना कर देता। लेकिन वह कभी मेरी बात सुनती नहीं थी। आयशा कहने को मेरे साथ थी लेकिन मदद मां की करती थी। ना जाने कितनी लड़कियों की तस्वीर उन्होंने मंगवाई होगी और अंत में जाकर दोनों मां बेटी को एक ही लड़की पसंद आई। एक दिन मुझे जबरदस्ती ऑफिस से छुट्टी लेकर मंदिर ले गई। यह पहली बार था जब मैं अपनी हमसफर को देखा। उसका पीला दुपट्टा हवाओं के कारण हिचकोले खा रहा था। उसके पायलों से मधुर ध्वनि निकल रही थी। उसकी हल्की सी खिड़की आने की आवाज कानों में सुकून दे रहा था। मैं तो उसे देखता ही रह गया था।

"अविनाश, कहां रह गए" मां की आवाज सुन मैं पीछे मुड़ा। फिर चुपचाप उनके पीछे चलता रहा। उन्होंने पूजा संपन्न किया और हम मंदिर के पीछे हैं मैदान में चले गए। वहां कुछ लोग हमारे स्वागत के लिए खड़े थे। मुझे लोगों को देखकर पूरा माजरा समझ में आ गया था। बहुत देर हो चुकी थी इसलिए मैं चुपचाप रहा।

देवदत्त और सुगंधा जी लड़की के माता-पिता थे। देखने में बिल्कुल साधारण और उनके बेटे का नाम राजवीर था। उनका परिवार में बहुत सालों से कर रहे थे। उनके जमीन पर एक शोरूम बना हुआ था जिसके किराए से घर चलता था। देवदत्त जी एक सरकारी कर्मचारी थे और उनकी जगह पर राजवीर को नौकरी मिल गई थी। सुगंधा जी एक थी। कुछ समय इधर-उधर की बात करने के बाद उसे बुलाया गया जिसके लिए हम यहां आए थे।

"आप लोग बात कीजिए मैं आती हूं" इतना कहकर सुगंधा जी वहां से चली गई। कुछ देर बाद वो अपने साथ मेरे होने वाले हमसफ़र को लेकर आई, जिनका नाम था अभिलाषा।

दोनों परिवार इस रिश्ते से बहुत खुश थे। इसलिए जल्द से जल्द शादी की तारीख निकाली गई अंगूठी बादली गई। जहां तक पैसों की बात थी हमने सब कुछ मना कर दिया और बोला आपको जो भी देना है वह आप खुशी से दो। तो उन्होंने बोला परंपरा के हिसाब से वो अपनी बेटी को दो सोने का सेट देगी।

शादी के दिन मेरे पूरे परिवार की इज़्ज़त धूमिल होने वाली थी। हमनें घर से कुछ भी नहीं लाया था लेकिन शादी में मौजूद लोगों ने हमसे सवर्ण आभूषण की मांग की। सुगंधा जी ने बताया था कि हमें आभूषण लाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए हमनें बहुत कम आभूषण लेकर आए थे। मेरी मम्मी को थोड़ा सक हुआ था इस परिवार पर, लेकिन आयशा और मैंने मां की सोच को वीराम दिया। आज देवदत्त और उनके परिवार से कोई बाहर ही नहीं आ रहा था। अंत में मामाजी ने कुछ मामी जी के आभूषण निकल कर लाए और फिर देवदत्त जी का पूरा परिवार बाहर आया। उनके तरफ़ से कुछ आभूषण दिए गए। लेकिन सबसे बड़ी चौकाने वाली बात तो यह थी कि हमनें लड़की वालों दहेज़ की मांग की। हमनें इन बातों को नज़र अंदाज़ किया और शादी संपन्न हुई।

शादी के कुछ महीनों बाद हम लोग भविष्य का सोच कर कुछ पैसे जमीन में निवेश करना चाहते थे। 1-2 लाख की कमी की वजह से हमें अच्छी खासी जमीन को खोना पड़ सकता था। हमने अभिलाषा के परिवार से मदद मागने का सोचा लेकिन वो तो अलग ही बात करने लगेl उनकी बाते सुन तो हमे भी शर्म आने लगाl फिर मैंने सोचा जो अंगूठी और चैन मुझे शादी में मिला है उससे गिरवी रखकर कुछ पैसो का बंदोबस हो जायेगाl सोनार के दुकान पर जाकर पता चला की सबकुछ नकली थाl

फिर हम अभिलाषा के आभूषण लेकर सोनार के पास गए तो पता चला कि उसके माता पिता ने जो भी आभूषण दिए थे वो सब नाकली थाl और उस दिन आयशा और मुझे लगा की माँ सच बोल रही थीl हमने सारे आभूषण अभिलाषा को वापस कर दिएl अगले दिन हमारे ऊपर आरोप लगा की हमने अभिलाषा के आभूषण बदल दिएl हमारे पास कोई परिमाण नही था तो अंत में हमने अपना अपराध मना और निवेश करने वाले धन राशी से अभिलाषा के लिए नए आभूषण बनवाएl

उस दिन के बाद अभिलाषा और मेरी जिंदगी समानांतर रूप से चलने लगीl हमारी बाते कम होने लगीl अंत में मैंने आपना तबादला दुसरे शहर में करवा लियाl जिस घर में लौटने के लिए मै हमेशा तत पर रहता था अब उस घर में ना जाने की वजह खोजने लगा थाl दुसरे शहर में शांति थी और हर दिन माँ बहन से बाते हो जाती थीl अभिलाषा और मेरी जीवन एक अनजान सी मोर ले चुकी थीl

६ महीने बाद जब मैं काम से वापस आया तब मेरी मां की हालत बहुत ज्यादा खराब थी। चिकित्सक के पास जब ले गया तो पता चला कि उनके खाने-पान में कमी के कारण उनका यह हालत हुआ था। आयशा के स्कूल के तरफ से कुछ प्रशिक्षण के कारण उससे ३ महीने के लिए दुसरे शहर में जाना पड़ाl माँ ज़िमेदारी सिर्फ अभिलाषा के ऊपर थीl मैंने आने के माँ को अस्पताल में भर्ती करवाया लेकिन बहुत देर होने के कारण माँ की मिर्त्यु हो गईl उस दिन मैंने अभिलाषा को घर से निकल दियाl

आयशा ने बहुत कोशिश की मुझे समझाने के लिए, मैंने उसकी एक भी बात नही सुनीl अभिलाषा चुपचाप घर छोड़कर चली गयीl आयशा और मै ही घर में बचे थेl कभी माँ की याद आती तो मै शराब पीने लगाl मेरी आदत बदल चुके थेl

12 जनवरी 2001

ये दिन मुझे बहुत अच्छे से याद है। शुक्रवार दिन था और मेरी शादी का सालगिर्ह भी। घर दारू पीकर आया और अभिलाषा ने दरवाजा खोला। वो बिना कुछ बोले घर के अंदर बुलाई। घर पूरा बिगड़ा हुआ था। ज्योति ने शायद घर की सजावट की थी। नसे के हालात में कुछ पता नहीं चल रहा था। बड़ी मुश्किल से मैं अपनी आंखे खोल पा रहा था। तभी मेरे पैर से कुछ टकराया, मेरे पैरों के सामने कोई सोया हुआ था। शकल अंजान था। मैं अभिलाषा की तरफ़ इशारे से पूछा कौन हैं? उसने कुछ जवाब नहीं दिया। अभिलाषा के हाथ काप रहे थे। फिर मेरी नजर वहीं दूसरी तरफ खड़ी मेरी बहन गायत्री पर गई। उसकी आंखों में डर दिखाई दे रहा था। धीरे धीरे मेरा नशा टूटने लगा और मुझे सब कुछ समझ में आ गया।

दुसरे दिन पुलिस ने अभिलाषा को गिरफ्तार करके ले गएl मै चुपचाप देखता रह गयाl मुझे नहीं पता चल रहा था कि क्या करना चाहिए? आयशा भी बिल्कुल चुप थी, उसने एक शब्द भी नहीं कहाl ४-५ दिनों तक हम घर से बाहर भी नही गएl आयशा हिम्मत करके जेल में अभिलाषा से मिलने गयीl उसने आकर मुझे सारी बाते बताने लगीl

अभिलाषा का जीवन ख़राब करने में उसकी माँ सबसे बड़ा हाथ थाl शादी जिस दिन तय हुई उसी दिन से उनका परपंच चालू हो गया थाl पुरे गांव उन्होंने ये अफवाह फैला दिया कि हमने शादी के १० लाख पैसो मागेl यही बात उन्होंने अभिलाषा को भी बोला की अविनाश ने इतना पैसा माँगा हैl अभिलाषा हमसे उससी समय बात करना चाहती थी लेकिन उसके पिता ने कसम देकर रोक लियाl

शादी के समय जो गांववाले आभूषण की माग कर रहे थे उसमे भी उनके माँ बाप का ही हाथ थाl वो सोचे की अगर हम बेजात हो जाते है तो उनकी हर बात मान लेंगे लेकिन मामाजी ने योजना पर पानी फेड दियाl उन्होंने फिर भाभी को नकली आभूषण के साथ विदा कियाl भाभी को तब भी हम पर विश्वास था कि हमने ऐसा कुछ नही किया है लेकिन कुछ महीनो बाद जब हमने पैसो के मदद मांगी तब उनको विश्वास टूट गयाl भाभी को सुगंधा जी की बातो पर विश्वास हो गया और फिर आभूषण की चोरी पकड़ी गई तो हम पर आपराध डाल दिय गयाl

जब आप यहाँ से चले गए तो भाभी घर पर ज्यादा जाने लगीl उनके घर वालो ने उन्हें शादी तोड़ने का सलाह दिया वो हमारी मम्मी से बात भी की लेकिन मम्मी ने उन्हें समझायाl ध्रीरे धीरे वो अपने माँ बाप की तरफ झुकने लगीl और मेरे जाने के बाद वो यहाँ बंद कर दीl जब आपने उन्हें जाने को कहा तो वो खुश थी क्योंकि उन्हें ये रिश्ता जबरदस्ती का लाहने लगा थाl इसलिए वो बिना कुछ बोले यहाँ से चली गईl

एक महीने पहले उनके पिताजी की तबियत अचानक से ख़राब हो गयीl उनके सारे पैसे उनके इलाज में खर्च हो गयेl फिर आता है धंनजय जो उनके जमीन पर मॉल खोला थाl उनसे इनको पैसे उधार दिएl शादी के सालगिरह से एक दिन पहले उसने भाभी का हाथ माग लियाl तब सुगंधा जी ने अपनी सारी सच्चाई भाभी को बताईl भाभी यहाँ आना चाहती थी लेकिन धंनजय ने आने नहीं दियाl

अगले दिन जब वो यहाँ आई तो धंनजय उनका पीछा करते हुए यहाँ आ गयाl मुझे देखकर वो मुझसे बतमीजी करने लगा तो भाभी ने उससे रोकने की कोशिश की और उसी कोशिश में उसकी हत्या हो गईl

आयशा की बात मुझे सच से ज्यादा झूठ लग रहे थेl लेकिन मैंने उनकी बाते मानकर जेल में अभिलाषा से मिलने गयाl उसकी आँखों में देखते ही मै खो गयाl मुझे भी कही ना कही विशवास था कि अभिलाषा कभी ऐसा नहीं कर सकती हैl कुछ दिनों बाद केस की सुवाई हुई और अभिलाषा जेल से बाहर आ गयी थीl

हम साथ में रहने लगेl कुछ था जो अभी भी मुझे नही पता थाl मुझे ये समझ में नही आ रहा था की अभिलाषा के माँ-बाप ऐसा उसके साथ क्यों कियाl और इस बात का पता लागने मै अभिलाषा के घर गयाl शाद्दी के बाद ये पहली बार था जब मै उसके घर गयाl वहा पंहुचा तो पता चल की देवदत्त और सुगंधा जी नाम कई इंसान वहा नहीं रहता हैl मै आस पास में पूछा लेकिन किसी को कुछ भी पता नहीं थाl मै फिर मॉल गया जो देवदत्त और सुगंधा जी ने बताया थाl मॉल वालो ने बताया की ये ज़मीन न किसी धंनजय की है और ना ही देवदत्त और सुगंधा जी की हैl

मै घर वापस लौटा तो आयशा के हाथ में खंजर थी और अभिलाषा वही ज़मीन पर पड़ी हुई थीl उसके आँखों में खून सवार थाl वो मुझे मरने की कोशिश करती है लेकिन मै बच जाताl फिर वो बोलती है,”पता है भाई, मै कभी ऐसा नहीं चाहती थीl आपको राघव तो याद होगा जिसकी आपने मार मार कर बुरा हाल कर दिया थाl आपको पता है, वह आपके कारण मर गयाl हां मै उस दिन सच नहीं बोल पाई थी और उसके कारण मै हर रोज मरती थीl फिर मैंने कसम खाया कि आपकी जिन्दगी भी छीन लुंगी और फिर मैंने अभिलाषा को मोहरा बनायाl

माँ को बहुत बार सक हुआ और उससी सक के कारण वो मारी गयीl लेकिन मेरी योजना का सबसे काबिल मोहरा ही विफल होने लगा जब अभिलाषा को आपसे प्यार होने लगाl आपका किश्मत इतनी अच्छी हो होगी कभी सोचा नहीं थाl आप के व्यातिक्त ने सब कुछ हिला दिया थाl फिर बहुत मुश्किल से मनाया और जो नहीं माने उन्हें मौत के घाट उतर दियाl धनंजय और कोई नही देवदत्त और सुगंधा जी का बेटा थाl उसका मौत मैंने अभिलाषा के सर्र पर डाल दियाl

आयशा मुझसे बात करने वस्त थी तब तक में अभिलाषा ने उस पर हमला कर दियाl उसकी मौत के बाद अभिलाषा को जेल हुआ लेकिन हमनें अपने सचाई के दम पर केस जीत लिया और फिर हम साथ साथ रहने लगेl

कोन से रिश्ते कब बदल जाए पता नहीं चलता।

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