बक भूत (Bak Bhoot)

हॉरर
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एक समय की बात है, असम में स्थित गुहाटी शहर में एक छोटा सा गाँव, जहाँ बक भूत के आतंक ने सबको डरा रखा था।

गाँव में विष्णु नामक एक व्यापारी अपनी पत्नी शोभा के साथ नया- नया रहने आया था। बक भूत के किस्से से अनजान, रातको जब विष्णु सो रहा था, तब अचानक कोई उसका दरवाजा लगातार पीट रहा था।

विष्णु- अरे शोभा, कल रात कोई बहुत ज़ोर से हमारे घर का दरवाज़ा पीट रहा था।

शोभा- क्या? कौन था वो? मैंने कैसे नहीं सुना?

विष्णु- अरे, तुम तो घोड़े भेज के सो रही थी, वो तो मेरी नींद खुली दरवाज़े पर आवाज़ सुन कर।

शोभा- मुझपर क्यों गुस्सा हो रहे हो? जाके सरपंच क्यों नहीं मिलते। दो दिन हुए हमे इस गाँव में आकर और परेशानियां शुरू। आपको तो अपना व्यापार भी ज़माना है।

विष्णु- हाँ, यही करना पड़ेगा। कोई और शायद सच नहीं बताएगा शायद, अब तो सरपंच ही हमारी सही मदत कर पाएंगे।

अगले दिन विष्णु गाँव के सरपंच से मिलने पहुंचा।

विष्णु- सरपंच जी, कल रात मेरे घर का दरवाज़ा कोई लगातार २ घंटे तक पीट रहा था। यह किसी इंसान का काम तो नहीं लगता मुझे। क्या इस गाँव में कोई मानसिक रोगी है?

सरपंच- हाँ विष्णु, मगर वो कोई मानसिक रोगी नहीं, एक बक भूत है।

विष्णु- कैसा बक भूत?

सरपंच- बक भूत नाम इसलिए पड़ा, क्यूंकि वो सिर्फ मछलियां खाता है। हमारे असम में ऐसे भूतों को बक भूत कहते हैं।

विष्णु- पर वो मेरा दरवाज़ा क्यों पीट रहा था?

सरपंच- इस गाँव में कुल २४ परिवार रहते हैं। तुम्हे मिलाके २५ हो गए और क्यूंकि, तुम नए हो, तो तुम्हे डराना उसके लिए आसान था। पिछले २५ दिनों से यह डरावना खेल चल रहा है। उसने शुरुवात मुझसे की, जब मेने उसे मछलियां देने से इंकार किया, तो उसने मेरे बेटे को मार डाला।अरे, उसने तो हमारे गाँव के पंडितजी को भी मार डाला, क्यूंकि वो उसकी मुक्ति का हवन करवाने वाले थे। जैसे एक रात मेरा घर, तो दूसरी रात मेरे पडोसी, भानु का घर। इस तरह, वो हर रात कोई एक घर का दरवाज़ा पीटता है। कल रात तुम्हारी बारी थी। आज रात तुम उसे मछलियां दे दो वार्ना वो तुम्हे भी नहीं छोड़ेगा।

विष्णु- कमाल है! आप गाँव के सरपंच हैं। आपकी ज़िम्मेदारी बनती है गाँव को बक भूत के आतंक से मुक्त करने की।

सरपंच के पास कोई जवाब नहीं था और निराश होकर विष्णु सारा किस्सा अपनी पत्नी शोभा को सुनाता है।

शोभा- सुनिए जी, हमे ही कोई रास्ता निकलना होगा। मैं आज ही कोई तांत्रिक बाबा को बुलाती हूँ।

विष्णु- कैसे? हम खुद यहाँ नए हैं।

शोभा- वो सब आप मुझपे छोड़ दीजिये। पासवाले गाँव में मेरी एक सहेली रहती है, वो किसी तांत्रिक को जानती है।

विष्णु- जो करो, ध्यान से करो। मेरी मदत चाहिए तो जरूर बताना।

शोभा पास के गाँव में अपनी सहेली के साथ एक तांत्रिक के पास जाती है। सारी बातें जानलेने के बाद, तांत्रिक उसे एक विभूति देता है।

तांत्रिक- यह विभूति अपने पास रखो। जब आज रात, बक भूत तुम्हारे दरवाजे पर आये, तो यह विभूति उस पर छिड़क देना। इससे वो तुम लोगों को कोई नुक्सान है पहुंचाएगा। मैं आज रात खुद उसे अपने वश में करलूँगा।

रात होने पर, फिरसे बक भूत विष्णु के घर का दरवाज़ा पीटता है। शोभा बहार आकर उसपर विभूति छिड़क देती है, जिससे बक भूत काफी कमज़ोर हो जाता है। वहां तांत्रिक भी आ जाता है और उसे अपने वश में कर लेता है। तभी गांववाले और सरपंच भी विष्णु के घर के बहार जमा हो गए।

तांत्रिक- बोल! कौन है तू जो मछलियां मांगके सबको परेशान करता है?

बक भूत- मेरा नाम भोला है। मैं मछलियों का व्यापार करता था। एक दिन मुझे किसीने धोके से मार डाला। तबसे मैं रोज़ रातको घरों के दरवाज़े पीटके मछलियां मांगता हूँ, क्यूंकि मुझे मछलियां खाना बहुत पसंद है । मैं गाँव वालों के बीच भेस बदलके भी कई बार घूमता रहा, मेरे कातिल का पता लगाने पर आजतक नाकाम रहा। मुझे इन्साफ चाहिए, वार्ना एक-एक करके सब गाँव वालों को मार डालूंगा।

सरपंच- भोला तू?

विष्णु- आप जानते हैं इसे?

सरपंच- हाँ, ये भोला है, हमारे गाँव में सबसे कम उम्र में मछलियों का व्यापार इसिने शुरू किया था। मेरे बेटे का व्यापार में नुक्सान हो रहा था, इस भोला की तरक्की के वजह से। इसलिए मैंने धोके से इसको मार डाला।

बक भूत- अरे औ सरपंच, अब तो सच बोल।

विष्णु- कैसा सच? यह कौनसे सच की बात कर रहा है सरपंच जी।

बक भूत- विष्णु, तुम्हें याद होगा की तुमने एक बार एक अध् जले आदमी को तुमने हॉस्पिटल पहुँचाया था?

विष्णु- हाँ, पर यह सब तुम्हें कैसे पता?

बक भूत- क्यूंकि, वह आदमी मैं ही था. इस सरपंच की असलियत मैं जान गया था. यह सरपंच हमारे गाँव की बहु-बेटियों का सौदा करता था और इसने मेरी माँ का भी सौदा करवाया. यह राज़ भी मैं दुनिया के सामने लाने ही वाला था की इसने अपने बेटे के साथ मिलकर मेरी मछलियों की दूकान और मुझे दोनों को जला डाला. मैंने इसके बेटे को मारा तो यह कुछ डरा है, वार्ना अब तक तुम्हारी पत्नी का भी सौदा हो जाता विष्णु. और तो और तुम मेरे ही घर में रह रहे हो. तुम्हें मैं कोई नुक्सान न पहुंचा के में तुम्हारे द्वारा ही साड़ी सच्चाई लाना चाहता था.

बक भूत (भोला) सरपंच का गाला पकड़कर उसे गांववालों के बीच फ़ेंक दिया.

सरपंच- अरे तांत्रिक बाबा, क्या खड़े देख रहे हो? मुझे बचाओ .

तांत्रिक- नहीं तुम्हारा इन्साफ तो अब गांववाले करेंगे.

ये कहते ही तांत्रिक वहां से चला गया और गांववालों ने मार-पीट कर सरपंच को मार डाला. बक भूत (भोला) भी एक छोटे से मछलियों से भरे तालाब में जा बसा. गाँव तो उसके आतंक से मुक्त हो गया, मगर आज भी उस तालाब के पास कोई नहीं जाता क्यूंकि बक भूत के होने का एहसास आज भी है.

-- मनप्रीत कौर

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