मेरा नाम राहुल है, मैं आज आपको अपनी ज़िन्दगी की तीसरी कहानी बताता हूँ। ये बात उस समय की है जब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहा था। मेरे बचपन के पांच दोस्त जो की दसवीं तक मेरे साथ पढ़े थे, उनमे से सुभम ने फैसला किया की फास्ट फ़ूड की रेहड़ी लगाई जाए। हम सभी ने उसको प्रोत्साहित किया। बर्गर, मंचूरियन, नूडल्स, बिरयाणा, चिकन लॉलीपॉप, चिकन चिल्ली आदि। हम बाकी के लोग सिर्फ ये सोच रहे थे की फ़ोकट का खाने को मिलेगा।
सुभम के पापा की "नैना फास्ट फ़ूड" करके पहले ही दो दुकाने थी। सुभम ने सोचा की एक और दूकान डाली जाए। तो उसने कॉलेज के बगल वाली मार्किट में एक दूकान देखी। उसने रेंट पर दुकान लेली। सुभम अपने पापा की दूकान से एक कुक लेकर आया।
सारी तैयारी हो चुकी थी। दूकान की ओपनिंग में सुभम की पूरी फॅमिली आयी थी। सभी लोग फ़ोकट का खा पीकर घर चले गए। मुझे अच्छा लगा। मैं अभी पढाई कर रहा था की दोस्त ने दूकान खोल ली इस बात की मुझे ख़ुशी थी।
पहले और दूसरे दिन का गल्ला बहुत अच्छा हुआ। तीसरे दिन का गल्ला भी बहुत अच्छा हुआ। रात को तकरीबन आठ बजे एक आदमी आया। उसने दारु पी हुई थी। उसने एक प्लेट चिकन लॉलीपॉप खाया। पैसे देनी की जब बारी आयी तो गाली-गलोच करने लग गया। मेरा दोस्त कृष्णा और उसके बीच हाथ पाई हो गयी। कृष्णा ने उसको एक झापड़ मारा और उसकी जेब से पैसा निकल लिया । वो शराब के नशे में था। हमको गाली देते हुए वो चला गया।
हम आपस में उसको लेकर बात कर रहे थे। साढ़े दस बाजे तक हमने धंधा किया। अच्छा ख़ासा गल्ला हुआ था। तभी अचानक पांच बाइक पर पंद्रह लोग बैठ कर आये। एक आदमी चिलता हुआ बोला की इसको हाथ किसने लगया। हममे से किसी ने कुछ नहीं बोला। फिर उसने उसको पूछा की, किसने तुझे मारा है? हम पांच लोग उनके सामने खड़े थे।
उसने कृष्णा की तरफ इशारा करते हुए बोला की, "इस कुत्ते ने मारा है।" कृष्णा बोला की, 'मैंने नहीं मारा।' मैंने तो इसको हाथ भी नहीं लगया। मैंने ही क्यों इसको तो किसी ने भी नहीं मारा।
तभी उधर से आवाज़ आयी की ये पागल है क्या? जो तेरे को कहेगा की तूने इसको मारा है। इतना कहते हुए उसके कृष्णा के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया।
कृष्णा ने हिम्मत दिखाई उसने झपक के उसका कलर पकड़ लिया। हम देखते ही रह गए। हम बीच बचाव कर रहे थे। "अरे छोडो जाने भी दो। क्यों मारा तूने। किसने मारा इसको। हमने नहीं मारा इसको। ये सब बातें हमने कही।" कृष्णा को हमने कहा की, कलर छोड़ दे।
तभी उस आदमी के पीछे खड़े लड़के गर्म हो गए। उन्होने हमारी टांगो पर डंडों से मरना शुरू कर दिया। कृष्णा ने उसका कलर नहीं छोड़ा। सुभम ने अपने दादा जी को फ़ोन लगाया। इतने में वो सब लोग मिल कर हम सभी को स्टाटर देना शुरू कर दिया।
झगड़ा ख़तम होने के बाद बहस बाजी चल रही थी। की तूने इसको हाथ कैसे लगाया। "पैसे दे रहा था न ये। पैसे नहीं देता तो भी चलता। ये अपुन का एरिया है। ये हर रोज़ इधर आकर खाके जायेगा। बोल तुम लोग क्या कर लोगे।" ये साड़ी बातें उसने कही।
सुभम ने अपने दादा को सब कुछ बता दिया। उसके दादा जी ने एक लोकल आदमी को भेजा। जो वहां के किसी भाई का राइट हैंड था। जब वो आया तो उसके जान पहचान के कुछ लड़के हमको मरने आये थे। उसने आकर दोनों तरफ से सुलह करवा दी। उस टाइम के लिए मेटर सोल्व हो गया। हम सभी फ्लैट पर चले गए। जो खाने को सामान बचा था वो हम साथ ले गए। फ्लैट में बैठ कर हमने वो बाचा हुआ सारा माल खाया और एक दूसरे के जख्मों पर मलहम लगाया। दूसरे दिन एक सफेद स्कार्पियो में पैसठ साल के सफ़ेद सुल्तानी कुर्ता पैजामा पहने हुए दादा जी की एंट्री हुई। सफ़ेद ढाढी, सफ़ेद बाल, हाथ में सोने का कड़ा। उनके साथ-साथ आठ लोग आये थे। उन्होने आते ही उस आदमी को बुलाया जिसने आकर हमको बचाया था। उसका नाम टोनी था। थोड़ी देर में टोने आया।
दादा जी: जो कल रात को इधर आये थे उनको फ़ोन कर और इधर बुला।
टोनी: अरे बाबा, रहने दो न, मैं देखता हूँ मेटर। आप टेंशन क्यों ले रहे हो।
दादा जी: नहीं नहीं तू उनको बुला, देखता हूँ किसी जवानी बहुत ज़्यादा इधर फूट रही है। उनको बोल सीधा पुलिस स्टेशन आ जाये और तू भी साथ में उधर आ।
हम पांचो और दादा जी के आदमी सभी लोग पुलिस स्टेशन चले गए। हम पुलिस स्टेशन पहुंच गए। पुलिस स्टेशन के बहार हम लोग टपरी वाले के पास चाय पानी पी। तकरीबन आधे घंटे बाद सात-आठ लोग आए।
दादा जी ने उनको देखते ही बोला की, ये चूतिया लोग थे। चलो अंदर। सभी लोग अंदर गए। दादा जी ने पुलिस इंस्पेक्टर को देखते ही चिल्लाना शुरू कर दिया की एक केस बनावो रे। एफ आई आर दर्ज़ करो। पुलिस वाले ने दादा शांत करवाया।
इंस्पेक्टर: अरे पहले बताओ तो सही हुआ क्या है। मैटर क्या है।
दादा जी ने सब कुछ एक्सप्लेन कर दिया।
दादा जी केस बनाने की लेकर आड़ गए थे। हाफ मर्डर का केस। क्योकि लड़कों को खून निकला था और खून निकलने पर हाफ मर्डर का केस बनता है। इंस्पेक्टर ने उनको डांटते हुए कहा की, क्यों किया रे तुम लोगों ने ये सब लड़ाई कहे को किया। उनमे से एक बोला की, हमने नहीं मारा। हमने सिर्फ बात किया। जिसने मारा था वो आया नहीं।
दादा जी बोले की, वही तो बोल रहा हूँ केस बना वो क्या उसका बाप भी आएगा। इंस्पेक्टर समझा रहा था। दादा जी अपनी बात पर अड़े हुए थे। वो सातो की फट चुकी थी। सभी डरे हुए थे। फिर इंस्पेक्टर ने हमको पूछा की क्या करते हो। हम सब ने अपने बारे में बताया। मैं और मेरे दो दोस्त नागपुर में इंजीनियरिंग कर रहे हैं। कृष्ण हैदराबाद में इंजीनियरिंग कर रहा था।
इंस्पेक्टर ने दादा जी को एक रूम में ले गया। इंपेक्टर ने दादा जी को समझाया की बच्चे पढ़ने वाले हैं केस करने के कोई फ़ायदा नहीं है। सबकी ज़िन्दगी के ##&! लग जाएंगे। इंपेक्टर ने उनको वार्निंग दिया। दुबारा कभी भी ऐसा नहीं होना चाहिए। अगर मुझे ऐसा कुछ पता चल गया तो मैं सीधा तुम सभी को अंदर डाल दूंगा। मुझे बाद में पता चल की उसके दादा जी पर तीन मर्डर केस चल रहे हैं।
उसके बाद हमारी सबकी पुलिस स्टेशन के बहार मीटिंग हुई। दादा जी ने सुभम को बोला की, तू इधर धंधा नहीं करेगा। तेरे को कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। अभी तेरा दादा ज़िंदा है।
हम सभी लौंडे घर पर गए। तीन चार दिन हमने जो सामान था सब कुछ बना-बना कर खुद ही खाया। सारा सामान बाँध कर पांचवे दिन सुभम अपने घर चल गया। हम सभी कुछ दिनों बाद ठीक हो गए। सारे जखम भर गए। पर वो सीन आज भी याद आता है।
अशोक कुमार
आगे पढ़े: - पुलिस स्टेशन के बगल में चोरी?
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shubhamnaiya999
siddheshwarvmane117
Great story
Mailtoashokthekid
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