चार प्रश्न

Mythology
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जब भी हम कोई कार्य करना चाहते हैं या यह हमें लगता है कि हमें यह कार्य करना चाहिए तो हमारे मन में यही विचार आता है कि क्या हम यह कार्य कर सकते हैं या नहीं? या फिर हमें सफलता मिलेगी या नहीं? यह संशय हमेशा बना रहता है और इस संशय का कोई इलाज नहीं है। क्योंकि हम भविष्य के बारे में जानकारी नहीं रखते हैं। परंतु यहां मैं आपको आपके जीवन में होने वाली घटनाओं को बहुत कुछ अनुमान लगाने या आपकी सफलता को सुनिश्चित करने के उपायों पर चर्चा करने जा रहा हूं। जैसा कि इस लेख का शीर्षक चार प्रश्न रखा गया है। मैं एक-एक कर आपको बताऊंगा वह कौन से चार प्रश्न है? जो आपको स्वयं से पूछने चाहिए जब भी आपको ही कार्य करना शुरू करते हैं। जब भी आप कोई निर्णय लेना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं उसमें आप सफल हो तो आपको अपने आप से पूरी ईमानदारी के साथ यह 4 प्रश्न करने चाहिए और यदि 4 प्रश्न का जवाब हां मैं आता है तभी आपको वह कदम उठाना चाहिए या वह निर्णय अपने आप के लिए करना चाहिए तो आपको सफलता सुनिश्चित तौर पर मिलेगी।

आप अपने आप को जितना जानते हैं उतना कोई नहीं जानता आप अपने स्वयं के सबसे अच्छे दोस्त भी हैं और यदि आप अपने आप को नहीं समझते तो आप अपने स्वयं के सबसे बड़े दुश्मन आप ही हैं।

अतः सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने आप को पहचाने। अपने आप को पहचानने का अर्थ है कि आप अपनी क्षमताओं को पहचाने और आप अपनी कमजोरियों को पहचाने। उसी के आधार पर आप निर्णय लें तभी आप सही निर्णय ले पाएंगे और अपने आप को साबित करते हुए सफल हो पाएंगे। क्योंकि सफल होना भी एक कला है, हर व्यक्ति इसमें पारंगत नहीं होता और जीवन में दो तीन बार असफलता हासिल करने के पश्चात वह थक हार कर प्रयास करना बंद कर देता है। तो आइए अब हम स्वयं से यह प्रश्न करना शुरू करते हैं।

सबसे पहला प्रश्न जो आपको किसी भी निर्णय को लेते समय करना है वह यह करना है कि-

१.क्या आप यह कार्य करना चाहते हैं? क्या आप यह निर्णय लेना चाहते हैं?

यदि इसका जवाब आप पूरी इमानदारी के साथ ढूंढते हैं और आप यह पाते हैं कि आप यह कार्य करना चाहते हैं आप यह निर्णय लेना चाहते हैं तब आपको दूसरे प्रश्न की और आगे बढ़ना चाहिए अन्यथा आपको वहीं रुक जाना चाहिए।

क्योंकि किसी भी कार्य को करने और किसी भी निर्णय को लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप पूर्णता आश्वस्त हो कि आप वह करना चाहते हैं। आप यह निर्णय लेना चाहते हैं। यहां आप से मेरा मतलब यह है कि आप उसकी पूर्ण जिम्मेदारी लें कि सफलता और असफलता दोनों के लिए आप ही पूर्णता जिम्मेदार हैं, और आप अपनी सफलता और असफलता को किसी और पर उड़ेल नहीं सकते। इसके लिए आपको स्वयं ही जिम्मेदारी लेनी होगी और अगर आप ऐसा करते हैं, तभी आपको आगे बढ़ना चाहिए अन्यथा आपको वहीं रुक जाना चाहिए। जब तक आप अपनी जिम्मेदारी नहीं मानेंगे जब तक आप यह नहीं मानेंगे कि जो कार्य किया जा रहा है, उसके परिणाम आप ही को भुगतने हैं। तब तक आप को उस कार्य को नहीं करना चाहिए। और आप स्वयं कार्य करने को स्व प्रेरित नहीं है बल्कि आप किसी और से मिलकर अल्पकालिक आवेश अथवा प्रभाव में जबरन वह कार्य / निर्णय लें रहे हैं। आपको इस अल्पकालिक आवेश/प्रभाव से अपने आपको बचाना हैं। चूकि सफलता विभिन्न परिस्थितियों/संभावनाएं/क्रिया कालिक/कार्य कालिक घटनाओं का मिश्रण हैं।

अगर पहले प्रश्न का उत्तर हां में है तो आपको दूसरे प्रश्न को अपने आप से पूछना है दूसरा प्रश्न यह है कि-

२.क्या आप यह कार्य कर सकते हैं? क्या आप यह निर्णय ले सकते हैं?

यदि इस प्रश्न का उत्तर हां हैं तभी आप को तीसरे प्रश्न की ओर बढ़ने का अवसर मिलता है।

इस प्रश्न का अर्थ यह है कि आप अपनी क्षमताओं को पहचानते हैं। आप यह जानते हैं कि आपके पास कौन-कौन से उपाय, समाधान, साधन, संसाधन उपलब्ध है। जिनके माध्यम से आप इस कार्य को उसके अंजाम तक पहुंचा सकते हैं और इस निर्णय को लेने पर उसके सही और गलत परिणामों को भुगतने के लिए आप पूर्णता तैयार हैं। यह प्रश्न आपको अपने आप से करना बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि यह आपको अपनी क्षमताओं को पहचानने का एक अवसर प्रदान करता है और अपनी छुपी हुई प्रतिभाओं को निखारने, उनको समझने और उनको उपयोग में लेने को सुनिश्चित करता है।

यदि इस प्रश्न का जवाब हां हैं अर्थात आप कार्य करना चाहते हैं और आप कार्य कर भी सकते हैं तब आपको अपने आप से तीसरा प्रश्न पूछना चाहिए और वह तीसरा प्रश्न इस प्रकार हैं-

इस कार्य को करने या इस निर्णय को लेने पर यदि परिणाम विपरीत आते हैं तो उनकी क्या क्या संभावनाएं हैं और उन परिस्थितियों को आप किस प्रकार से हैंडल करेंगे?

क्या आपके पास संसाधन और समय उपलब्ध हैं। जिससे कि आप विपरीत परिणामों को भी अपने पक्ष में कर पाए? क्या आपके पास कुशलता, क्षमता मौजूद है कि आप प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल परिस्थितियों में तब्दील कर पाए?

यदि इसका जवाब हां में है तब आपको अपने आप से चौथा प्रश्न करना चाहिए जो की बहुत ही महत्वपूर्ण है और वह इस प्रकार से है कि-

लिए जा रहे निर्णय अथवा किए जा रहे कार्य का आउटपुट क्या है? आउटकम क्या है? क्या यह आपके निजी स्वार्थ/ अल्पकालीन स्वार्थ को पूरा करता है या समाज के सामाजिक हित और दीर्घकालीन हित से जुड़ा हुआ है।

इस आधार पर आप यह तय कर सकते हैं कि आप द्वारा लिया जा रहा निर्णय या आप द्वारा किया जा रहा कार्य नैतिक हैं या अनैतिक यदि आप द्वारा किए जा रहे कार्य और लिए जा रहे हैं निर्णय दीर्घकालीन समजिक हित से जुड़ा हुआ है तभी यह नैतिक हैं और इसके दूरगामी परिणाम प्राप्त होंगे। यदि यह कार्य अल्पकालीन निजी स्वार्थों से जुड़ा हुआ है तब भी यह नैतिक हो सकता है। परंतु इसके दीर्घकालीन परिणाम प्राप्त नहीं हो कर अल्पकालीन परिणाम ही प्राप्त होंगे।

यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है जो आपके द्वारा लिए जा रहे हैं निर्णय और आपके द्वारा किए जा रहे कार्य के दीर्घकालीन उद्देश्यों को सुनिश्चित करता है। यह चौथा प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि आपको यह लगता है कि आपके द्वारा किए गए कर्म और लिए गए निर्णय पुनः लौटकर आप तक नहीं आएंगे तो यह आपकी सबसे बड़ी भूल है। क्योंकि प्रकृति का पहला नियम यह हैंकि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होनी ही हैं। समस्त ऊर्जा संरक्षित रहती हैं। इस जहा का इस जहां में ही रहता हैं। न थोड़ा बढ़ता है न ही थोड़ा घाटाता है।

मैने भारतीय वैदिक दर्शन के माध्यम से आपको निर्णय लेने के 4 प्रश्न बताएं हैं हो सकता है कि आपके अनुसार इन प्रश्नों के अतिरिक्त और भी प्रश्न हो जो कि निर्णय लेने में कार्य करने में हमें मार्गदर्शन प्रदान कर पाए आप में से जो भी इस लेख को पढ़ रहे हैं वहीं चार प्रश्नों के अतिरिक्त और कोई प्रश्न हो तो मुझे अवश्य कमेंट बॉक्स में शेयर करें और इस लेख को लाइक शेयर और रैक देना ना भूलें।

धन्यवाद कैलाशी पुनीत डी शर्मा

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