वो लड़की

कथेतर
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आज बड़े दिनो बाद सजने-संवरने का मौक़ा मिला तो मैंने कोई कसर नही छोड़ी।तैयार होकर गाड़ी में बैठी, जी पी ऐस सेट किया और कार स्टार्ट कर निकल पड़ी। रास्ता पूरे 1 घंटे का था।गाड़ी चलाते हुए मैं पुरानी यादों में खोई थी और उस दिन को याद कर रही थी जब उससे पहली बार मिली थी।

सुनहरे बाल,नीली आँखे, गोरा-सफ़ेद रंग। टिंटेड लिपबाम उसके होंठों की ख़ूबसूरती को ऐसे बढ़ा रहा था जैसे सफ़ेद फूल की पंखुड़ियों के किनारे पर फैली भीनी-सी गुलाबी रंगत।काले रंग की टैंक टॉप और उसी से मेल खाती मैक्सी स्कर्ट , एक कलाई में फ़िटबिट और दूसरी कलाई बिना किसी कंगन या ब्रैसलेट के भी खूब फब रही थी।पहली नज़र में मैं उसे निहारती ही रह गई।मेरे लिए उसके आकर्षक रूप का कारण उसका सौंदर्य क़तई नही था,ऐसी सुंदरता अपने आस-पास मैं सालो से देख रही थी। फिर भी कुछ तो था, कि वो मुझे पहली नज़र में ही भा गयी। एच आर डिपार्टमेंट से विवीयन उसे मेरे पास लायी थी।उन्होंने उसे मेरी सहायिका के तौर पर नियुक्त किया था। काम करते हुए तो मुझे 8 साल से ज़्यादा हो चुके हैं लेकिन इस कम्पनी में नियुक्त हुए 6 महीने ही हुए थे इसलिए मैंने ज़्यादा पूछताछ नही की । विवीयन ने परिचय में उसका नाम क्रिस्टीना बताया और साथ ही उसका लम्बा चौड़ा वर्क इक्स्पिरीयन्स भी बताया। मुझे सुनने में काफ़ी अजीब लग रहा था ,क्रिस्टीना की सूरत देखकर लगता था कि अभी सीधा कॉलेज से निकल कर आयी है।वैसे भी झूठा इक्स्पिरीयन्स दिखाना इन नौकरियों में आम बात है और ये सब भली भाँति जानते समझते हैं। ख़ैर मैंने अपने काम पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्रिस्टीना को पास के ख़ाली क्यूबिकल से कुर्सी खींच कर बैठने के लिए कहा।ये क्यूबिकल महीने में २-३ दिन के अलावा ख़ाली ही रहता था। डेविड पॉल, जिसको ये क्यूबिकल मिला हुआ है अक्सर घर से काम करता है बस कभी किसी ज़रूरी मीटिंग वाले दिन या जब उसे ज़रूरत लगे तभी ऑफ़िस आता था। विवीयन जा चुकी थी और क्रिस्टीना चुपचाप दोनो हाथ अपनी गोद में रखकर एक दम सीधी कमर किए बैठी हुई मुझे काम करते देख रही थी और मौक़ा पाकर अपनी नज़र चारों तरफ़ घुमाकर ऑफ़िस का नज़ारा भी ले रही थी।क्रिस्टीना की आँखो में भोलापन तो नही था हाँ थोड़ी घबराहट ज़रूर दिख रही थी।मैंने ज़रूरी ईमेल और कुछ डेली टास्क पूरे करके थोड़ा समय निकालकर क्रिस्टीना से मुख़ातिब होते हुए कहा,“यहाँ काम काफ़ी ज़्यादा रहता है, मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि तुम्हें सब बता सकूँ फिर भी कुछ समझ ना आए तो बेहिचक पूछ लेना।”

क्रिस्टीना ने ओके कहते हुए सर हिला दिया।

उसे विवीयन ने मेरे सामने लाकर बैठा तो दिया था पर फिर भी कुछ था जो खटक रहा था। मुझे किसी सहायक या सहायिका की ज़रूरत थी लेकिन अगर मुझे चुनाव की आज़ादी दी गयी होती तो मैं क्रिस्टीना को बिल्कुल ना चुनती।शाम तक कुछ हरकतों से मुझे पूरा यक़ीन हो चुका था कि क्रिस्टीना ने कभी काम नही किया जिसका मुझे ग़ुस्सा भी बहुत था । क्रिस्टीना के प्यारे से व्यक्तित्व की छवि मेरे ग़ुस्से और कोफ़्त में कहीं खो चुकी थी। जब से मैंने इस कम्पनी को जोईन किया था, कुछ भी वादों के अनुकूल नही हो रहा था। पिछले 6 महीने में ये तीसरी असिस्टेंट थी। पहले दो इंटर्न थे जिन्हें कम्पनी ने पैसा बचाने के लिए रखा था। नौकरी में सब जगह हालत एक सी है, दस लोगों का काम एक से करा लेने का चलन आम है इस बात से मैं अनजान न थी इसलिए सोचा कि चलो कोई नही धीरे-धीरे इसे काम सिखा दूँगी बस ये इंटर्न ना हो जो बस मुझे कोरपोरेट गाइड की तरह इस्तेमाल कर चलती बने।

दो हफ़्ते बीतते मैं क्रिस्टीना की क़ाबिलियत और इस कम्पनी में आने की कहानी जान चुकी थी। क्रिस्टीना ने अभी हाल ही में कॉलेज डिग्री ली थी और वो हमारी कम्पनी के काफ़ी वरिष्ठ अधिकारी के कहने पर यहाँ नियुक्त हुई थी। उसके और मेरे काम करने में उस वरिष्ठ अधिकारी का हस्तक्षेप भी रहता था। मेरे आदेश देने पर काम करना या ना करना उसकी मर्ज़ी थी।मेरी हालत पहले से ज़्यादा ख़राब थी। अपना काम करने के साथ मुझे उसका भी काम करना पड़ता था और उसको कुछ कहने का तो कोई मतलब ही नही बनता था। कब वो मेरी शिकायत कर दे कि उसे मैं मानसिक तनाव दे रही, कुछ नही कहा जा सकता ।

जैसे-तैसे दिन बीत रहे थे मुझे भी समय हो गया था इस कम्पनी में, यहाँ पर सभी मेरे व्यवहार और काम को परख मुझसे काफ़ी प्रभावित थे।क्रिस्टीना जहाँ अपने काम में बेहतर हो रही थी वहीं वो मुझसे भी थोड़ा सहज हो चुकी थी। एक दिन हम कॉफ़ी ब्रेक पर थे। माहौल हल्का था। मैंने क्रिस्टीना से उसके घर-परिवार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वो अपनी माँ के साथ रहती है। मैं, जो पहले से ही अपने वर्क लाइफ़ बैलेन्स से जूझ रही थी तपाक से बोल पड़ी,” क्या मज़े की लाइफ़ है। क्रिस्टीना तुम अपने जीवन के सबसे अच्छे पल जी रही हो। ना कोई ख़ास ज़िम्मेदारी, ना लगे बंधे घर के खर्चे । ये टाइम बड़ा अच्छा होता है। मुझे देखो , घर जाते ही सबसे पहले खाना बनाने के लिए रसोई में दौड़ना, फिर गंदा-फैला घर साफ़ करना, बच्चों की पढ़ाई ,उनकी बाक़ी ज़रूरतें, सभी प्रोजेक्ट…..वग़ैरह-वग़ैरह । फिर भी काम है कि सिमटता ही नही। मेरी मम्मी जब कभी रहने आती है तभी बस थोड़ा सुकून मिल जाता है पर ऐसा २-३ साल में एक बार ही होता है…” मैं अपनी रोज़ की भागम-भाग का दुखड़ा उसे सुनाए जा रही थी शायद कहीं मन ही मन ये जता रही थी कि “मोहतरमा!, तेरी क़िस्मत बड़ी अच्छी है। मुझे देख, मैं कितना दुखी हूँ , मैं दुःख में तुझसे बहुत वरिष्ठ हूँ इज़्ज़त कर मेरी।” अपने ज़्यादा बोल जाने का अहसास होते ही मैं ज़रा झेंपकर चुप हो गयी बस आख़िर में इतना कहा, “यू शुड एंजोय दिस टाइम।”

क्रिस्टीना जो शायद मेरे रुकने का इंतज़ार कर रही थी, बोली,

“ मैं घर जाकर सब काम खुद ही करती हूँ मेरी माँ पिछले 8 सालो से बिस्तर पर है, चल फिर नही सकती। उनका सब काम भी मुझे ही करना होता है । घर काफ़ी पुराना है जिसकी मरम्मत पैसे की कमी के चलते रुकी पड़ी है।हमारी ये हालत देखकर मुझे मेरी सहेली के पापा ने यहाँ नौकरी पर रखा है। एजुकेशन लोन की किश्तें भी चुकानी होती है। घर का हीटिंग सिस्टम सर्दियों से पहले-पहले ठीक नही कराया तो मेरी माँ शायद……” वो कहते-कहते रुक गयी । उसकी आँखें भर आयी थी।

मैंने थोड़ा समय लेकर पूछा,” तुम्हारे पिताजी? या तुम्हारा कोई पार्ट्नर?? “ पार्ट्नर से मेरा सीधा मतलब उसके प्रेमी से था । मैंने इस देश में किसी को, चाहे वो किसी भी उम्र का हो,अकेला नही देखा था सो पूछ लिया।

क्रिस्टीना ने बताया कि उसे उसकी माँ ने अकेले पाला है। उसकी माँ की उम्र 42 साल थी जब क्रिस्टीना का जन्म हुआ। क्रिस्टीना के जन्म की खबर जब उसके पिता तक पहुँची तब तक वो किसी और से शादी कर चुके थे। जब वो 20 साल की थी तब पहली बार अपने पिता से मिली थी।ये बात बताते हुए क्रिस्टीना का चेहरा खिल गया था और उसके साथ उसकी बातों में अब तक बही जा रही मैं भी मुस्कुरा दी थी।

पार्ट्नर की बात पर उसने बताया कि वो पिछले 6 महीने से अकेली है। बस एक गेको(एक प्रकार की छिपकली) जो उसके पुराने प्रेमी ने दी थी , उसके साथ वक्त बिताना उसे पसंद है। अपने पार्ट्नर से अलग होने का कारण उसने अपना कैथोलिक ना होना बताया। क्रिस्टीना ईसाई तो थी लेकिन कैथोलिक नही थी इसलिए उनके रिश्ते को परिवार की स्वीकृति नही मिली।


ये सब बताते हुए क्रिस्टीना काफ़ी गंभीर हो गयी थी और मैं बड़े गौर से उसकी बातें सुन रही थी कि अचानक मेरा फ़ोन बजा, मीटिंग का रिमाइंडर देख हम दोनो ने जल्दी से अपना वॉलेट और फ़ोन समेटा , कॉफ़ी कप को रीसाइकल बिन में डाल अपनी सीट की तरफ़ चल दिए।

क्रिस्टीना की बातें मेरे अवचेतन मन में लगातार गतिमान थी। जिसे मैं अभी तक सिर्फ़ एक कॉलेज पास आउट, अल्हड़ लड़की समझ रही थी उसका पूरा जीवन मुझसे कहीं ज़्यादा उतार-चढ़ाव भरा और अनोखे अनुभवो से भरपूर था।अब मेरे मन के सारे बैर, जो मैं क्रिस्टीना के लिए पाले बैठी थी, खतम हो चुके थे।अगले कुछ हफ़्तों में हम दोनो एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए थे।साल भर बीतते क्रिस्टीना ने अपना लोन भी चुका दिया था।

“You have reached your destination.” GPS महोदय की आवाज़ से मेरा ध्यान मेरा टूटा । मैंने कार पार्किंग में लगा कर अपनी शकल आइने में देखी , मेकप दुरुस्त था , पिछली सीट से अपना हैंड्बैग उठाकर मैं बाहर निकली और entrance ढूँढने लगी । कन्फ़र्म करने के लिए गूगल पर व्यू चेंज कर ही रही थी कि पीछे से आवाज़ आयी, “hey! we were waiting for you only, please come.” आवाज़ क्रिस्टना की थी।पास ही व्हील चेयर पर उसकी माँ भी थी। “We two will escort the bride to her wedding.” कहते हुए उनकी झुर्रीदार नीली आँखें ख़ुशी से चमक रही थी ।मैंने ख़ुशी से क्रिस्टीना का हाथ पकड़ा और क्रिस्टीना ने दूसरा हाथ अपनी माँ को देते हुए चलने का इशारा किया ।आज वाइट वेडिंग गाउन में सजी क्रिस्टीना ऐसी लगती थी मानो आसमान से कोई परी उतर आयी हो।

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