आशिका और आमना का जन्म आस पास ही हुआ था, और किस्मत से दोनों आस पास ही रहते थे। हमउम्र होने के साथ दोनों हममिजाज़ भी थे। साथ पढ़ना, खेलना, स्कूल साथ जाना उनके जीवन का हिस्सा बन गया था। आशिका थोड़ा पढ़ाई में कमजोर थी पर खेल और नयी नयी चीज़ें बनाने में वो अद्वितीय थी। उसका दिमाग हमेशा खुराफाती चीज़ें बनाने में लगा रहता, जिससे माँ बहुत परेशान रहती पर आमना की माँ ने हमेशा आशिका में कुछ कर गुजरने की ललक और चाह देखी उन्होंने उसे हमेशा प्रोत्साहित किया नयी नयी चीज़ें बनाने में और आशिका की माँ ने हमेशा आमना को प्रत्साहित किया, उसकी पढ़ाई में। वे उन दोनों को पढ़ाती थी और खास ध्यान आमना पर ही रहता। दोनों ही की दोस्ती गहराती गयी और स्कूल में एक मिसाल बनती गयी। दोनों एकसाथ पढ़ती गयीं और बढ़ती गयीं।
बड़े होने पर आशिका विदेश चली गयी, पढ़ने और आमना ने अपनी पढ़ाई भारत में ही जारी रखी। आशिका को अमेरिका में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में एक अच्छी नौकरी मिल गयी और उसका परिवार बहुत खुश था। आशिका पिछले पांच वर्षों से अमेरिका में काम कर रही थी और पांच वर्षों बाद वो भारत अपनी सालाना छुट्टी पर भारत आयी। पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों ने उसकी खूब खातिरदारी की, उसने यह भी महसूस किया की ये भारत वो पुराना भारत नहीं रहा जिसे वो छोड़ गयी थी। जिस दिल्ली एयरपोर्ट से वो गयी थी अब वह एक आलिशान एयरपोर्ट में तब्दील हो गया था जो अमेरिका और बाकी यूरोपीय देशों को टक्कर दे सकता था, वहाँ की सुविधाएं अंतर्राष्ट्रीय हो चलीं थी। दिल्ली से लखनऊ का उसका सफर तो मनो सोने पे सुहागा हो चला था , दिल्ली अब वो पुरानी दिल्ली नहीं रहा, और देश भी वो देश न रहा। वो सड़कों का जाल वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ओवरब्रिज और और वह हाईवे के किनारे की सुविधाएं , उसे तोह ऐसा लगाने लगा जैसे वो अमेरिका में ही है, या शायद कहीं उससे बेहतर !
उसकी आमना से मुलाक़ात भी कोई दिवा स्वप्न की ही तरह थी। आमना पहले तो कई दिन उससे मिल ही न सकी, क्यूंकि अब वो एक आंत्रेप्रेन्योर (कठोर उद्यमी) हो चली थी जो एक ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफार्म चलती थी, मिलने पे पता चला की उसकी कंपनी तो एक यूनिकॉर्न कंपनी है, जहाँ वो अमेरिका में एक यूनिकॉर्न में काम कर रही थी वहीं उसकी दोस्त आमना एक यूनिकॉर्न की मालकिन थी और उसे यह जान कर जोर का झटका लगा जब उसे पता लगा की भारत दुनिया में यूनिकॉर्न लिस्ट में तीसरे नंबर पर है और उसके ७० % यूनिकॉर्न पिछले एक साल में बने।
उसके कुछ पुराने दोस्त अब रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के लिए काम कर रहे थे और उनसे मिल के उसे पता चला की भारत अब प्रौद्योगिकी, हथियार और अनुसन्धान में सिर्फ आत्मनिर्भर ही नहीं हो रहा बल्कि अब वो दूसरे देशों की इन क्षेत्रों में मदद करने लगा है और अब उसकी टक्कर सीधे अमेरिका और चीन से है। यह वो अब सपेरों वाला भारत नहीं रहा जिसकी पश्चिमी देश हंसी उड़ाया करते थे अब तोह ये वो भारत है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दूसरों को बढ़-चढ़ कर मदद कर रहा है और दुनिया का पेट भरने की हैसियत रखता है। वो आश्चर्यचकित रह गयी की दुनिया अब भारत की तरफ देखता है।
उसे यह एहसास होने लगा की उसका भारत तो प्रगतिशीलता के पथ पर अंधाधुन्द दौड़ने लगा है, जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय विद्वान् का नारा अब देश की रगों में बहने लगा है। उसका दिल अब अंदर ही अंदर कुछ खोज रहा था, वो सफल और कामयाब तो थी पर दिली ख़ुशी वो नहीं थी जिसे वो तलाश रही थी। आमना के साथ बिताये पल उसे यह एहसास करने लगे थे की अब उसे सफलता की उड़ान भरने के लिए विदेशों का रुख करने की ज़रूरत नहीं है, उसके अपने देश में ही वो सारी सुविद्यायें और अवसाव उपलब्ध है जिससे कोई अपने सपनों की उड़ान भर सकता है।
आशिका इस भारत से पहली बार रूबरू हो रही थी जिसमें जहाँ शिक्षा, साक्षरता, स्वछता को नयी उड़ान मिल रही थी वहीँ कुरीतियों और महंगाई को अंकुश में रखा जा रहा है। और उसको इस सपनों के अपने भारत से इश्क़ होने लगा था। और वह अब अपनी जन्मभूमि को अपनी कर्मभूमि बनाने का ठान चुकी थी।
उसने अपने माता पिता के सामने यह बात रखी की वो अब अमेरिका नहीं जाना चाहती और यहीं अपनी मातभूमि पर ही अपने देश और देशवासियों के लिए कुछ करना चाहती है। माँ और पिता में थोड़ी मायूसी तो ज़रूर थी की बेटी एक कामयाब ज़िन्दगी छोड़ एक अलग रास्ता चुनने जा रही है पर ख़ुशी ज़्यादा थी की अब उनकी बेटी सात समुन्दर पार जाने के बजाये उनके साथ ही रहेगी। उसके अमेरिका के दोस्तों ने भी उसे समझाया की वो एक गलत रास्ता चुन रही है, पर उसे अब यह समझ आने लगा था एक एहि उसके सपनों का भारत है और वो इस भारत की उड़ान में अपनी भागीदारी देना चाहती थ।
काबलियत और हुनर उसमें पहले से ही था, अनुभव उसे अमेरिका में मिल गया था और विश्वास उसमें उसके देश को देख कर आ गया था। उसने रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में काम करना शुरू किया, उसने कोडिंग और रोबोटिक्स से एक यन्त्र बनाया जिससे फेफड़ों का कैंसर प्राथमिक स्तर पर ही पहचाना जा सकता था। उसका यह यन्त्र चिकित्सा जगत में एक क्रांति साबित हुआ और न सिर्फ भारत सरकार अपितु पूरी दुनिया में उसे ढेरों खिताबों से नवाज़ा गया। उसने भारत को नयी पहचान दी और पूरे विश्व को यह मजबूर कर दिया की वो भारत को विश्वगुरु माने।
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