JUNE 10th - JULY 10th
आध्यात्म. . . . . . . . .
"आध्यात्म" एक ऐसा वाक्य जिसे सुनने मात्र से ही शान्ति पहुचने लगती है हमारे हृदय को , अब सोचने वाली बात ये है कि जिसे सुनने से इतना सुकून इतनी शान्ति मिलती हो उससे जुड़ने मे ना जाने क्या- क्या चमत्कार होगा !
'अपने अनुभवों को साझा कर रही हूँ मैं - कि आध्यात्म से मेरा जुड़ाव बहुत गहरा हैं और यही सत्य है '
कि आध्यात्म से ही मुझे जीवन जीने की एक नई आस मिली और कामयाबी का शिखर मिला, आज की नयी पिढी आध्यात्म को नहीं मानती वो बस इसे एक बहकावे का नाम देती है इसलिए मेरे ख्याल से जिस प्रकार हम सब के पाठ्यक्रम मे हिन्दी, गणित, संसकृत, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों को पढा़या जाता है,ठीक उसी प्रकार आध्यात्म का भी पाठ्यक्रम जोड़ देना चाहिए क्योंकि आने वाली पिढी हमारे वंशजों को इस बात का ज्ञान हो सके कि आध्यात्म कोई बहलाने या छलावा करने का नाम नहीं है, आध्यात्म का सीधा तात्पर्य हमारी आत्मा से है वही आत्मा जो हमे परमात्मा तक ले जाती है
परमात्मा की खोज. . . . . . . . . .
अब इसका मतलब यह नहीं है कि परमात्मा की खोज मे जंगल मे निकल जाना, पेड़ के निचे बैठ कर तपस्या करना या संन्यास धारण कर लेना क्योंकि "स्वयं का अध्ययन ही आध्यात्म है"
और जिसने खुद को जान लिया अर्थात् अपने अंदर के गुण अवगुण यानि कि जिसे आत्मिक ज्ञान हो गया वही व्यक्ति परमात्मा के समीप पहुँच गया, सीधे और सरल भाषा में कहा जा सकता है कि आध्यात्म हमारे जीवन की एक ऐसी अहम कड़ी है जो हमे प्रभुत्व की ओर ले जाती !
अभी कलयुग का दौर चल रहा ऐसा सुनने में आ रहा लेकिन जहाँ तक मुझे लगता है तो ये गलत है क्योंकि अभी भी ईश्वर को मानने वाले, पूजा पाठ करने वाले व्यक्ति हैं कथा, सतसंग हवन इत्यादि जब तक धरती पर होते रहेंगे जब तक - तब तक कलयुग का असर नहीं हो सकता और जिस दिन ये सब बन्द हुआ ईश्वर जहाँ लोगों के मस्तिष्क से विलुप्त हुए उसी दिन कलयुग अपनी चरम सीमा पर होगा तब धरती पर सिर्फ और सिर्फ कलयुग का राज होगा, इसलिए ईश्वर का जुड़ाव बहुत जरूरी है जीवन क़ो सुचारू रूप से चलाने के लिए
यह जरूरी नहीं है, कि गृहस्थ जीवन का परित्याग करके ही ईश्वर की प्राप्ति की जा सके क्योंकि गृहस्थ जीवन में रहकर भी सन्यस्थ को धारण किया जा सकता है जैसे हमारे सप्त ऋषि और ब्रह्मा विष्णु महेश आदिदेव यह लोग गृहस्थ जीवन के साथ ही सन्यस्थ को स्थापित करके इस सृष्टि को आगे बढा़ये रखने का कार्य किए हैं """""
ईश्वर की प्राप्ति. . . . . . . .
अगर ईश्वर की प्राप्ति हो भी गई हमें तो पता कैसे चलेगा कैसे पता चलेगा कि हम ईश्वर के कितने समीप हैं ?
तो सीधी सी बात है जब हम में जब हम एकदम अकेले हो जाते है दु:ख हमको सताने लगता है यह महसूस होने लगता है कि इस दुनिया में हमारा कोई नहीं है जब हम सब कुछ अपना सारा भार ईश्वर के ऊपर छोड़ देते हैं तो हम धीरे-धीरे ईश्वर के बहुत करीब जाने लगते हैं और जब एक वक्त ऐसा आता है कि हम हमें लगने लगता है जीवन में घटित होने वाली घटनाएं दुख पीड़ा सुख यह सब चीजें बस एक नाटक के तौर पर दिखने लगती हैं तब हम एकदम ईश्वर के समीप पहुंच चुके होते हैं
कर्म. . . . . . . . .
लेकिन अब इसका मतलब यह नहीं कि वह सब एकदम से झट से ईश्वर के इतने करीब पहुंच गए कि बस अब समझ लो हम ईश्वर बन गए ऐसा नहीं होता कर्म करना पड़ता है और कर्म के कोदंड पर हर हाल में चढ़ना पड़ता है तब जाके हमें किसी चीज की प्राप्ति होती है वह ईश्वर हो या कोई भी चीज हो कोई भी वस्तु हो बिना कर्म किए हमें कुछ नहीं मिलता
और सब कुछ हमें अपने भाग्य किया किस्मत के ऊपर नहीं छोड़ सकते अगर हमारे हाथों में रेखाएं हैं तो हमें उन रेखाओं को बदलना होगा ब्रह्मा द्वारा लिखी हुई हमारी किस्मत को बदलना होगा इसलिए हमें कर्म करना होगा कर्म ही सबसे बड़ी प्रधानता है और बिना कर्म किये कुछ नहीं मिल सकता
नारी और तंत्र शास्त्र . . . . . . .
आज के समाज में देखा जाए तो नारी को बहुत ही निंदनीय बना दिया गया है जबकि वह लोगों के लिए बहुत ही अभिनंदन ही होनी चाहिए
जिसने पूरी सृष्टि की संरचना की है नारी को पुरुष का अर्धांग माना गया है और जब भी कोई हवन या पूजा इत्यादि होती है तो उसमें नारी को पुरुष के दाहिने ओर बैठाया जाता है दाहिनी और बैठना शुभ माना गया है और बिना अर्धांग के कोई भी पूजा सफल नहीं होती इसीलिए नारी का होना अनिवार्य रहता है!
और तंत्र शास्त्र में नारी को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है पाठकों के मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि तंत्र शास्त्र क्या है?
तंत्र शास्त्र भी आध्यात्म का ही एक रूप है लेकिन कुछ व्यभिचारी यों ने इसे व्यापार बना के रख दिया है पैसे कमाने का जरिया बना कर रख दिया,इसलिए तंत्र शास्त्र पर से धीरे-धीरे लोगों का विश्वास उठता जा रहा है
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लक्ष्मी सिंह✍️
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sabhay671216
MN ko sukun ki prapti ho gyi
rajsinggh007
Very nice Ise pdh ke baad aatma to ek alg hi shanti mili dhanywaad laxmi singh ji aapne aadhyatm ke bare me hume btaya
laxmi Singh
Description in detail *
Thank you for taking the time to report this. Our team will review this and contact you if we need more information.
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